जब तक हमारे किसान और खेतिहर मजदूर खुशहाल नहीं होंगे तब तक छत्तीसगढ़ आगे नहीं बढ़ सकता। (९ नवम्बर २००० को राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी द्वारा छत्तीसगढ़ की जनता को दिये गये प्रथम सम्बोधन से)
इन वाक्यों के सहारे मैं इतिहास में लौटना चाहता हूँ बल्कि थोड़ा पीछे मुड़कर वहाँ से झांकना चाहता हूँ, जब एक अलग राज्य के रूप में छत्तीसगढ़ बनाया गया और राज्य के किसानों और खेतिहर मजदूरों की खुशहाली को लेकर उपरोक्त दावे किये गये. उसके बाद किसानों की आत्महत्या क्रमशः-
२००१-१४५२
२००२-१२३८
२००३-१०६६
२००४-१३९५
२००५-१४१२
२००६-१४८३
२००७-१५९३ रही है. स्रोत-राज्य अपराध ब्यूरो
इन आंकड़ों के जरिये मैं अभी किसान आत्महत्या के कारणों की चर्चा नहीं कर रहा हूँ, जिसे आगे तफ़्सील से किया जायेगा. बल्कि नये राज्य गठन के बाद किसान व खेतिहर मजदूरों की खुशहाली के दावे के बरक्स इन्हें पेश कर रहा हूँ. इन आंकडों को पेश करते हुए यह दिखाने का प्रयास कर रहा हूँ कि प्रथम मुख्यमंत्री जिनकी खुशहाली के बदौलत छत्तीसगढ़ को आगे ले जाना चाहते थे, वह किस चौराहे पर खड़ा है और किधर जाने को मुड़ा है.
यहाँ मैं पूरे छत्तीसगढ़ की चर्चा नहीं करूंगा, मैं विदेशी कम्पनियों द्वारा वहाँ के खनिज के लूट की बात नहीं करूंगा, न ही उन जंगलों की जिनकी पीठ पर हस्ताक्षर किया जा चुका है. मैं बात करूंगा बिलासपुर के उन किसानों की जिनकी आत्महत्यायें राज्य के अपराध ब्यूरो द्वारा दर्ज की गयी हैं, और जिनके घर जाकर हमने आत्म हत्या के कारणों को जानने की कोशिश की. पर कुछ तथ्य ऐसे हैं जिनके लिये मैं कोई सरकरी स्रोत प्रस्तुत नहीं कर सकता अलावा इसके की आप मेरी बात पर यकीन करें.
गाँव में घूमते हुए कुछ ऐसे किसानों की आत्म हत्या के मामले सामने आये जो राज्य के किसी रिकार्ड में दर्ज नहीं हैं, कारण पूछने पर लोगों ने बताया कि आत्महत्या के बाद राज्य उस व्यक्ति का जीवन तो लौटा नहीं सकता, पुलिस को सूचित करने पर पूरे परिवार का जीवन अलबत्ता सांसत में फंस जाता है. और पुलिस रोज-बरोज उन्हें और उनके सम्बन्धियों को परेशान ही करती है.
छत्तीसगढ़ में किसान आत्महत्या को लेकर वहाँ के बुद्धिजीवियों और पत्रकारों में लम्बी बहसे हो चुकी हैं जिसमे सरकारी आंकडो या फिर अन्य आधारों पर किसान आत्महत्या को स्थापित व ख़ारिज़ किया जाता रहा है पर बिलासपुर के १८ किसानों पर किये गये इस सर्वे से ख़ारिज़ होते दिखते हैं बल्कि एक अन्य तथ्य यह उभर कर आया कि यदि उन आत्महत्याओं को जो सरकारी आंकडे में शामिल नहीं है को सम्मलित किया जाय तो छत्तीसगढ़ में प्रतिदिन ४ किसानों की आत्महत्या का आंकड़ा और बढ़ जायेगा. पर छत्तीसगढ़ में किसानों की आत्महत्या का स्वरूप वह नहीं है जो कि विदर्भ या आंध्र प्रदेश में है यानि ज्यादातर मामले ऐसे हैं जहाँ प्रत्यक्ष तौर पर किसान अपने कृषि संकट से परेशान होकर ही आत्महत्या नहीं कर रहा है. चूकि किसान की पूरी अर्थव्यवस्था कृषि पर टिकी है अतः उसकी बदहाली का आधार भी कृषि ही बनेगी. और इनमे से अधिकांस आत्महत्याओं की कहानी इसी स्वरूप को पुष्ट कर रही है.
छत्तीसगढ़ में कृषि से जुडे कुछ महत्वपूर्ण आंकड़े-
· राज्य के ८०% लोग कृषि पर निर्भर हैं.
· छत्तीसगढ़ में ५६.४४ लाख हेक्टेयर क्षेत्र में खेती होती है.
· राज्य में ७५% सिर्फ धान की खेती होती है. धान के लिये अन्य फसलों की अपेक्षा अधिक पानी की जरूरत होती है पर सिचाई की व्यवस्था महज़ २०.३% ही है.
· राज्य में औसतन ३८.०७ लाख हेक्टेयर क्षेत्र में धान की फसल उगायी जाती है.
· राज्य में औसतन ४७ लाख मीटरिक टन चावल का उत्पादन होता है.
· धान का उत्पादन प्रति हेक्टेयर १३-१४ क्विंटल है जो राष्ट्रीय औसत का आधा है पर इसके बावजूद छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है क्योंकि यहाँ धान की तकरीबन २२,९७२ प्रजातियां पायी जाती हैं.
बिलासपुर-
· बिलासपुर का क्षेत्रफल ६३७६.७६ वर्ग किलोमीटर है.
· कुल सात तहसीलें (बिलासपुर, मस्तूरी, पेंड्रा रोड, कोटा, तखतपुर, लोरमी, मुंगेली) हैं.
· कुल १० विकास खण्ड (बिल्हा, मस्तूरी, मरवाही, गोरेला-१, गोरेला-२, कोटा, तखतपुर, मुंगेली, पथरिया, लोरमी) हैं.
· कुल जनसंख्या १९९३०४२ है. (९८४०३५-महिला, १००९००७-पुरुष) जिसमे ७५% जनसंख्या आदिवासी, पिछड़े और हरिजनों की है.
बिलासपुर जिले में हुई किसान आत्महत्याओं में से १८ किसानों के यहाँ जाकर उनकी आत्महत्या के कारण जानने की कोशिश की गयी जिसमे यह बात निकल कर सामने आयी कि १८ में से १२ किसानों ने अपनी तंगहाल स्थिति व अभावग्रस्तता से आजिज आकर आत्महत्या का रास्ता चुना. ये १२ किसान निम्न लिखित हैं-
विक्रम सूर्यवंशी- मटियारी गाँव
हेमंत पटेल- दर्राभाटा
भीखमलाल ढोगेश्वर- निपनिया
अयोध्या प्रसाद पटेल- दर्राभाटा
ज्ञानदास- खाड़ा
जेठूराम- गुड़ी
रामसिंह पोर्ते- लूतरा
फिरन सिंह- खाड़ा
चंदन सिंह गोड़- भरारी
वेदराम मरावी- खुरदुर
दाइद अहमद- बरेला
गिरिवर- बरेला थे.
ये कुल १२ किसान छोटे दर्जे के किसान थे. जिनके पास २-३ हेक्टेयर तक जमीने थी. घरवालों व आसपड़ोस से बात करने के बाद इनकी आत्महत्या के पीछे जो बात मुख्य रूप से उभर कर आयी वह अलग-अलग परिदृष्य की थी पर उनकी प्रकृति एक थी, वह थी तंगहाली. आत्महत्या के अलग-अलग कारणों की वज़ह अभाव ग्रस्तता थी. जिसके कारण इनके घर में आपसी कलह बढी या पति-पत्नी के बीच लड़ाईयां हुई. और इन सब का निदान इन किसानों ने आत्महत्या में खोजा. इनमे से कुछ किसान ऎसे भी थे जो दिहाड़ी के मजदूर या आस-पास के किसी रोजगार परक कार्य में भी लगे हुए थे पर ये रोजगार इनके अभाव ग्रस्त जिन्दगी में कोई सुधार न ला सके. इनमे से अधिकांस किसान अपने घर के मुखिया थे और घर में आने वाले आय का एक मात्र सहारा. आत्महत्या के बाद इनके घर की स्थिति और भी बदहाल हो चुकी है और अधिकांस घर कर्ज में डूब गये हैं. इनकी मौत के बाद न तो सरकार की तरफ से कोई मुवावजा मिल सका है न ही कोई अन्य सहयोग.
इसके अलावा एक अन्य किसान राजकुमार जोकि नरगोड़ा के निवासी थे उनकी आत्महत्या का जो कारण उभर कर आया वह एक सामंती समाज के व्यक्ति को आत्मसम्मान को ठेस लगने से था जिसमे उनकी बहू क्षमा उपाध्याय के द्वारा दहेज मांगने के आरोप में थाने में रिपोर्ट दर्ज करायी गयी. पुलिस की पूछताछ और गाँव में बदनामी के चलते इन्होंने अपनी आत्महत्या कर ली.
जबकि भरारी के किसान बाबूलाल की कहानी कुछ अलग है. इन्होंने घर चलाने के लिये पहले अपनी जमीन का हिस्सा बेंचा पर मंहगायी के कारण स्थितियां और भी बिगड़ती गयी. जिसके चलते ग्रामीण बैंक से इन्हें कर्ज लेना पड़ा. कर्ज धीरे-धीरे बढ़ता रहा और चुकता करने की कोई स्थिति नहीं बन पायी और इन सब से तंग आकर एक दिन उन्हें आत्महत्या करनी पड़ी.
बिन्द कुंवर बाई एक महिला थी जो बरेला की निवासी थी. इनके पति जन्तराम खेती में कोई काम नहीं करते थे. अतः घर और खेती दोनों को ये संभालती थी. पति अक्सर सराब पीकर आता था और कुंवर बाई को मारता पीटता था इस पति प्रताड़ना से अज़िज़ आकर बिंद कुंवर बाई ने एक दिन जहर खाकर आत्महत्या कर ली. जबकि आरती कुमार जोकि बरेला के निवासी हैं . इन्होंने खेती में भाईयों से हुए विवाद के आधार पर ट्यूबेल के बटवारे के झगड़े के कारण आत्महत्या की.
इससे अलग दो किसान उमेद कुमार जरहागाँव के निवासी थे, तीरथ राम जोकि बरेला के निवासी थे को असाध्य रोग था जिसका इलाज कराने के पैसे भी उनके पास नहीं थे और वे इतने पीड़ा की स्थिति में जी रहे थे कि इससे बेहतर विकल्प के रूप में उन्होंने न जीने का फैसला किया और आत्महत्या कर ली.
इस संक्षिप्त विवरण के माध्यम से यह देखा जा सकता है किसानों के द्वारा हो रही आत्महत्याओं में सभी के पीछे का कारण महज़ कृषि नहीं है पर १८ में से १२ किसानों के मौत का संबध उनकी आर्थिकी जिस पर टिकी है जिसके वज़ह से वे अभाव ग्रस्त हो रहे हैं वह कृषि ही है. अतः छत्तीसगढ़ में किसान आत्महत्या को पूरी तरह से झुठलाया नहीं जा सकता बल्कि मटियारी के सूनूराम सूर्यवंशी जैसे किसान जिनकी आत्महत्यायें सरकार के किसी आंकड़े में दर्ज नहीं हैं दर्ज किये जाने और उनके आत्महत्या के कारणों की तफ्सील से जाच किये जाने की जरूरत है.
आंकड़ों के स्रोत- देशबंधु प्रकाशन विभाग/ संदर्भ छत्तीसगढ़/सं. आलोकपुतुल
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