11 सितंबर 2009

मीडिया, पूजी और जातिगत वर्चस्व

व्यवसाय का मामला महज़ पूजी से नहीं जुडा़ होता. वर्गीय वर्चस्व के साथ-साथ समाज की वे अन्य संरचनायें भी सम्मलित होती हैं जो किसी भी समाज में मौजूद हैं. भारत जैसे देश में जहाँ जातियाँ अपने जटिल संरचनाओं के साथ मौजूद हैं वहाँ जातिगत वर्चस्व का किसी भी व्यापार में होना एक स्वाभाविक सी बात है। यहाँ पूजीवाद का स्वरूप उत्पादन और मुनाफे के साथ उन तमाम असमानता युक्त विभेदीकृत श्रेणीयों के साथ जुडे़ हैं जो देश के अलग-अलग क्षेत्रों में लागू होते हैं।
ऎसे में मीडिया का व्यवसाय उससे अलग नहीं है. हिन्दी प्रदेश के क्षेत्रों में मालिकानी है सियत से इस कब्ज़ेदारी को साफ तौर पर देखा जा सकता है खासतौर से मीडिया के बडे़ उद्योग जिनमें इंडिया टूडे, आजतक, पंजाब केसरी, दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, अमर उजाला, आज व जी नेटवर्क पर बनिया खत्री एवं माड़वाडि़यों का कब्जा है. हिन्दी भाषी क्षेत्र अपनी रूढी़गत संरचना के साथ मीडिया में भी मौजूद है।
इसका अर्थ सिर्फ यही नहीं लगाया जाना चाहिये कि हिन्दी क्षेत्र की मीडिया में उपरोक्त जातियों का वर्चस्व केवल मीडिया पर उनके कब्जेदारी को दिखाती है बल्कि यह अपने जातियों के हित में काम करने को भी दर्शाती हैं इसके साथ एक पक्ष यह भी जुडा़ होता है कि हिन्दी क्षेत्र के अन्य अधिकांश व्यवसायों पर भी बनिया, माड़वाडी़ व खत्रीयों का ही कब्ज़ा है. ऎसे में जातीय वर्चस्व के आधार पर स्थापित इन व्यवसायियों के अन्य व्यवसायों के अंतर्विरोधों को लोगों तक पहुंचाने वाले माध्यम जातिय हितों के चलते इन्हें परिलक्षित नहीं होने देते. अपने आर्डियंस जोकि मेन स्ट्रीम के रूप में एक बडा़ समुदाय है को इनके परोक्ष-अपरोक्ष समर्थन में खडा़ करते हैं. जबकि दक्षिण भारत में मीडिया मालिकान का सवरूप इससे भिन्न है. ऎसा वहाँ के मीडिया व्यवसायियों की जातीय संरचना को देखते हुए समझा जा सकता है यहाँ इनाडू (कम्मा), डेली थान्थी (नादर), मलयालया मनोरमा ( सायरियन क्रिस्चियन), द हिन्दू व दिनमालर ( ब्रह्मण ), डक्कन क्रानिकल व आन्ध्रभूमि (रेड्डि), डेक्कन हेराल्ड और प्रजावाणी ( इडिगा) सन नेटवर्क और दिनकरण ( इसाई बेल्ललर), एशिया नेट (नायर), टी.वी. ९ राजू, यानि अलग-अलग जातियों के कब्जे हैं।
अतः इस रूप में समाज के जातिगत अंतर्विरोध किसी न किसी माध्यम से आने की सम्भावना बन सकती है. परन्तु इसके बावजूद वर्गीय एकता एक सार्वभौमिकी के रूप में पूजीवादी समाज में विद्यमान रहती है. जिसको पकड़ना व सामने लाना इनके लिये दुरूह होता है क्योंकि इन बडे़ मीडिया व्यवसायों को यही लोग टिकाये हुए हैं. इस रूप में जातिगत वर्चस्व को राज्य के अलग-अलग राष्ट्रों में देखने के आधार भिन्न होते हैं बल्कि इस बात पर निर्भर करते हैं कि वहाँ के समाज की संरचना में ये रूढि़गत भावनायें कितने हद तक मौजूद हैं.

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