06 मार्च 2009

अंजन गाँव में हुई साम्प्रदायिक झड़प पर तथ्य संकलन के आधार पर तैयार की गयी एक रिपोर्ट:-


घटनायें जब घट चुकी होती हैं हमारे पास बताने के लिये ढेर सारे तथ्य होते हैं, हमारी मुट्ठीयों में संकलित आंकड़े की एक पोटली होती हैं और चेहरे पर विवशता की छाया। जब चीख-चीख कर हम गोधरा की नृशंसता का बयान कर रहे होते हैं ठीक उसी समय हमारे आस-पास पसरी होती है एक भयावह चुप्पी, एक लम्बी चीख को समेटती हुई। महाराष्ट्र राज्य के अमरावती जिले में एक छोटी सी तालुका है अंजन गाँव जिसकी आबादी तकरीबन ५१००० है. ५१००० कम तो नहीं होते प्रेम करने के लिये या नफ़रत करने के लिये. २३ फरवरी को हुई हिन्दू मुस्लिम सम्प्रदायों के बीच एक झड़प के बाद यहाँ के बयान पेश करने के कई अंदाज़ हो सकते हैं, मसलन पुलिस की दख़लंदाजी ने एक और गोधरा होने से बचाया अंजन गाँव को, या मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर करना. पर सच्चाई कभी एक नहीं होती, दरअसल जरूरी यह होता है कि आप अपनी आँख के किस कोने से कौन सा चश्मा लगाकर घटनाओं को देख रहे हैं. ५१००० की आबादी वाले इस तालुका में मुसलमानों की आबादी १७००० के आस-पास है, २६००० की संख्या में हिन्दू व तकरीबन ६००० बुद्धिस्ट हैं. ये तीनों समुदाय आपस में घनी बस्तियाँ बनाकर इस तरह से रहते हैं कि लोगों में मनमुटाव हो, एक संप्रदाय दूसरे सम्प्रदाय से बातचीत करना बंद कर दे पर घरों की दीवारें हैं कि धूप में अपनी छाया एक दूसरे पर लुढ़का ही देती हैं इस बात का फ़िक्र किये बगैर कि जिस दीवार के कंधे पर वे झुक रही हैं उसके घेरे में किसी अन्य सम्प्रदाय के लोग रहते हैं. इस घनी बस्ती में लोगॊं के घर भले ही छोटे हों, लोगों को रहने के लिये ज़मीन भले ही कम हो पर मंदिरों और मस्ज़िदों को विस्तृत इलाके में बनाया गया है शायद इसलिये कि इश्वर-अल्लाह इतने बड़े होते है कि ज़ाहिराना तौर पर उन्हें बडी़ और विस्तृत जगह की जरूरत है. इस तीन कि.मी. के इलाके में ८ मस्जिदें हैं और मंदिरों की संख्या तो गिनी ही नहीं जा सकती क्योंकि मस्ज़िदों का एक ढांचा होता है पर मंदिर कई बार पेड़ होते हैं, पुलिया होती है या इस पठारी क्षेत्र में कोई भी पत्थर जिसे सिंधूर से रंगा गया है वह मंदिर ही है, उसे हनुमान कह दो या काला पत्थर हो तो शिव जी पर यह बात आज तक मेरी समझ में नहीं आयी कि अपना लिंग छूकर जब लोग इतनी गंदगी महसूस करते हैं कि पानी से हाथ तक धोते हैं तो फिर पत्थर के लिंग पर दूध क्यों बहाते हैं? खैर इलाके की राजनीतिक स्थिति यह है कि कभी यहाँ के सांसद शिवसेना के सदस्य प्रकाश भार साकडे़ जी हुआ करते थे. विधायक के रूप में अब भी वही हैं पर पार्टी बदल दी है और अब कांग्रेस में आ गये हैं पता नहीं विचारधारा बदली की नहीं, अगर कांग्रेस की कोई विचारधारा है तो. पर हां इतना जरूर है कि विचार कपडे़ नहीं हैं जिन्हें तुरंत बदला जा सके. इस मामले पर हमने वहाँ के लोगों, पत्रकारों, शिक्षकों आदि से बात-चीत कर वास्तविक स्थिति का पता लगाने का प्रयास किया. २३ फरवरी को जब यह घटना हुई उस दिन हिन्दुओं का त्योहार "शिवरात्रि" था. गाँव के एक २५ वर्षीय युवा गजानन विट्ठलराव कराडे़ (एस.सी.) जो कि पेशे से कारपेंटर हैं व शिव सेना के सदस्य भी, शाम के वक्त गाँव के एस.टी. बस स्टैंड की एक दुकान पर अपनी बाइक से आये और सामने की एक पान गुमटी से जब थोडी़ देर बाद लौटे तो उन्हें वहाँ बाइक दिखायी नहीं दी. थोडी़ देर बाद बाइक स्टैंड पर ही एक दुकान के पीछे खडी़ मिली ऎसी स्थिति में गजानन ने मुस्लिम समुदाय को टारगेट करते हुए कुछ गालियाँ देनी शुरू की जिससे वहाँ खडे़ दो मुस्लिम लड़कों जावेद खाँ और यूनुस से झड़प हो गयी पर आस-पास के लोगों ने बीच-बचाव कर मामले को सम्हाल लिया. ठीक इसी रात जहाँ पर यह घटना हुई थी वहाँ पर स्थित एक मंदिर में पथराव हुआ. पथराव के कारण मस्ज़िद के सामानों को क्षति पहुची कारणवस अब पूरा मामला सुबह तक काफी संगीन हो गया. अब यह मामला दो व्यक्तियों का न होकर दो सम्प्रदायों का हो गया और इस स्थिति में दोनों सम्प्रदायों के बीच २४ तारीख की सुबह १० बजे के करीब झड़प हो गयी जिसमे लोगों की तरफ से पत्थरबाजी हुई और तलवारें व इस तरह के आपत्ति जनक सामान भी निकाले गये पर वहाँ के तत्कालीन एस.पी. स्टालिन की सक्रियता के कारण किसी के आहत होने की कोई घटना रोकी जा सकी. पत्थरबाजी के कारण कुछ लोग घायल जरूर हुए और कुछ को चॊटें भी आयी. लोगों के मुताबिक कुछ दुकानों में तोड़ फोड़ भी हुई जिसकी थाने में २६००० रूपये के हानि की रपट दर्ज करवायी गयी. स्थिति के भयावह होने के आसार को देखते हुए एस.पी. स्टालिन द्वारा पूरे क्षेत्र में कर्फ्यू घोषित कर दिया गया और वहाँ के थाना प्रभारी ए.यू. कुरैसी का तबादला कर दिया गया. इसके बावजूद भी ८ दिनों तक पूरे इलाके में कर्फ्यू जारी रहा जिससे वहाँ के व्यापारी से लेकर आमजन काफी परेशान रहे. इस पूरी घटना के दौरान २ मार्च तक तकरीबन २१२ मुस्लिम व २० हिन्दुओं को धारा १४३, ५०४, ५०६,३२३, ४२६,४३५,२७५,२३६, १४७,१४८, १४९, ३२४, ३०६ व १३५ बाम्बे पुलिस एक्ट के तहत गिरफ्तार किया गया. जिनमे से अभी भी अधिकांश लोग अमरावती जेल में बंद हैं जबकि मुख्य आरोपी गजानन विट्ठलराव कराडे़ को शिवसेना के सदस्यों द्वारा जमानत लेने पर रिहा कर दिया गया. परन्तु स्थिति की गम्भीरता का आंकलन इस बात से किया जा सकता है कि वहाँ के मुस्लिम वर्ग के लोग घटना के बारे में कोई भी जानकारी देने से मुकर रहे है. यहाँ तक कि तथ्य संकलन करने गयी टीम के सदस्यों पर कई मुस्लिमों द्वारा यह भी कहा गया कि आप आई.बी. के हो सकते हैं या किसी अन्य संगठन से भी अतः हम आपको जानकारी नहीं दे सकते. जिससे साफ तौर पर पता चलता है कि सरकार से किस तरह का दहसत उनके अंदर है. इसकी एक वज़ह यह भी है कि मुस्लिमों की आबादी आनुपातिक दृष्टि से कम होने के बावजूद भी उनकी गिरफ्तारी भारी संख्या में की गयी है यहाँ तक कि उन मुसलमानों को भी गिरफ्तार किया गया है जो दिशा मैदान के लिये बाहर निकले हुए थे. इस वज़ह से मुस्लिम वर्ग में एक दहसत व खौफ का माहौल बना हुआ है. दूसरी तरफ वहाँ शिव सेना व हिन्दू कट्टरपंथी ताकतों का भी खौफ बना हुआ है. बात-चीत के दौरान श्री राजेन्द्र बंगले ने हमे बताया कि किसी मुसलमान की यह हिम्मत नहीं है कि वह हमारी गली से सिर ऊपर करके निकल जाय, सब चूहे की तरह जाते हैं. पूरे इलाके का ज़ायज़ा लेने के बाद यह तथ्य सामने आया कि यहाँ पर हिन्दू कट्टरपंथी ताकतों ने अपने को उस सामान्य अर्थ में नहीं स्थापित किया है जिन अर्थों में आम तौर पर वे कई जगह अपने को स्थापित करती हैं बल्कि यहाँ कई नये तरीके अपनाये गये हैं. मसलन उच्च शिक्षा का संस्थान सारडा कालेज जो उस क्षेत्र का एक नामचीन कालेज है, शिव सेना के द्वारा स्थापित है जिससे वहाँ के युवाओं की नब्ज़ को बेहतर ढंग से पकडा़ जा सके. इस रूप में पूरे हिन्दू समाज में जिस तरह की कट्टर हिन्दू मानसिकता तैयार की गयी है वह अपने में एक भयावह स्थिति है. साथ में हिन्दू संगठनों द्वारा व्यायामशालायें व साखायें भी चलायी जाती हैं. क्षेत्र के अधिकांसतः युवा बेरोजगार हैं और इन संगठनों से जुड़कर किसी तरह की सक्रियता में अपने को व्यस्त रखना चाहते हैं. गौरतलब बात यह भी है कि इन हिन्दू कट्टरपंथी संगठनों में काम करने वाले अधिकांस युवा ओ.बी.सी. और दलित हैं. पिछले कुछ माह से राजठाकरे की महाराष्ट्र नव निर्माण सेना (मनसे) जो कि शिव सेना का ही एक नया रूप है, आसपास के क्षेत्रों में अपना विस्तार किया है. बल्कि यहाँ तक कि पूरे महाराष्ट्र में कुछ संकीर्ण सवालों को उठाकर एक नया हिन्दूवादी संगठन तैयार किया जा रहा है. ऎसी स्थिति में कई मुस्लिमों से बात करते हुए उनके अंदर एक असहाय युक्त रोष जरूर देखने को मिला. तथ्य संकलन के दौरान यह पता चला कि तकरीबन ५० कि. मी. के क्षेत्र में जिसमे अचलपुर, दरियापुर, निज़ामपुर में साम्प्रदायिक बहुलता के आधार पर छोटे बडे़ कट्टरपंथी संगठन खडे़ हो रहे हैं या साम्प्रदायिक मानसिकता का निर्माण हो रहा है. जिसमे बडे़ स्तर पर युवाओं की भागीदारी है इसके पीछे साफ तौर पर जो कारण दिखायी पडा़ वह यह कि बेरोजगार होने की वज़ह से युवाओं की जो उर्जा है उसे साम्प्रदायिक ताकतें आगे आकर अपने तरीके से इश्तेमाल कर रही हैं. आस-पास के जिलों में भी सड़कों के किनारे लगे पोस्टरों व होर्डिंग्स से पता चलता है कि जनमानस में अपने सम्प्रदाय के प्रति आस्था व सर्वोच्चता का पहला पाठ पढा़या किस तरह से पढा़या जा रहा है. रोज-ब-रोज़ बाबाओं की यात्रायें क्षेत्रों में करायी जा रही हैं ताकि लोग सम्प्रदायों में बंटे रहें और जब तक लोग सम्प्रदायों में बंटे रहेंगे साम्प्रदायिकता फैलाने वाली ताकतें किसी न किसी तरीके से इनका इश्तेमाल आसानी से कर ही लेंगी. पूरे तथ्य संकलन के दौरान एक बात साफ तौर पर निकल कर आयी कि अगर इन साम्प्रदायिक ताकतों के चरित्र को लोगों के बीच जल्द से जल्द नहीं खोला गया, भविष्य में इसकी भयावहता से उन्हें नही मुखातिब कराया गया तो यह असम्भव नहीं कि स्थितियाँ बहुत ही विकट होंगी. दूसरे रूप में एक बडे़ तौर पर यह भी कार्य करने की जरूरत है कि लोगों को धर्म जैसी संकीर्ण मानसिकताओं से उभारा जाये. चूकि धर्म अपने को जितना सहिष्णु कहता है असलियत में वह उतना होता नहीं जिसे अष्टभुजा शुक्ल ने अपने शब्दों में लिखा है. किसी धर्म स्थल के विवाद में तीन हजार लोग बम से दो हजार गोली से एक हजार चाकू से और सौ जलाकर मार डाले जाते हैं चार सौ महिलाओं की इज्जत लूटी जाती है और तीन सौ शिशुओं को बलि का बकरा बनाया जाता है धर्म में सहिष्णुता का प्रतिशत ग्यात कीजिये॥

तथ्य संकलन में सहयोगी सदस्य -चन्द्रिका, रजनेश, अनीस, आशीष

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