11 फ़रवरी 2008

पाकिस्तान की वर्तमान स्थिति पर एक रिपोर्ट :-



पाकिसतान में आज चुनाव है ऐसे हालात मे पाक पर एक नजरः-
करामत अली पाकिस्तान के एक वरिष्ठ पत्रकार है। पाकिस्तान की बदलती हालाते और बढ़ते सैन्यकरण को पाकिस्तान की जनता के हित में खतरे के रूप में देखते हैं। उनका कहना है कि लोकतंत्र का तकाजा है कि वह अपनी जनता को सुरक्षित रखे, उसके अधिकारो को सुरक्षित रखे। जनता को इस सुरक्षा का अहसास तभी हो सकता है जब पड़ोसी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बंध हों देश की सीमाओं पर युध्द के खतरे कम हों और देश की सम्प्रभुता बरकरार रखी जाये। परंतु हाल के दिनों में पाक की सीमा और देश की आंतरिक शस्त्रीकरण और बढ़ता सैन्यकरण इस बात का संकेत है कि देश की स्थिति, मानवाधिकारों की स्थिति और लोकतंत्र की स्थिति बद से बद्तर हुई है।

पाक की स्थिति भारत से भी ज्यादा खराब है उसका अंदाजा हाल की कुछ घटनाओं से लगाया जा सकता है। इसका कारण यह है कि पाक की सेना देश में प्रत्यक्ष रूप में शासन कर रही है सेना का पूर्णता हस्तक्षेप पिछले कई वर्षों से रहा है, और बढ़ा है। इसका एक उदाहरण आप देखे तो बेनजीर भुट्टो की पीपुल्स पार्टी जब सत्ता मे आयी तो वह बहुमत में नहीं थी। अन्य छोटी पार्टिओं के सहयोग से ऐसा संभव हुआ। ऐसे अवसर पर पाक के आर्मी चीफ ने बेनजीर को डिनर पर बुलाया जिसमे सेना के सभी बडे़ हुक्मरान और उनकी बीबीयॉं भी शामिल थी। डिनर के वक्त आर्मी चीफ ने बेनजीर से कहा की शासन तो आप करिये पर तीन विभाग में कौन रहेगा यह हम तय करेंगें जो भी हो पर बेनजीर से यह बात मनवा ली गई पहला फॉरेंन अफेयर, दूसरा इंडिया पाक रिलेशन तीसरा फाइनेन्स ऑफिसर जाफरी रहेंगे । बेनजीर को खुद नही पता था की यह जाफरी है कौन? दरअसल जाफरी वल्र्ड बैंक के एक अधिकारी थे।
इस तरह पाक आर्मी के कब्जे में वित्त व्यवस्था किसी भी समय थी और है। जिससे वें मिलेट्राईजेशन और न्युिक्लयराइजेशन की बजट बढ़ाने में सफल रहे हैं। और देश की जी.डी.पी. का 6.5 व्यय सेना पर हो रहा है दूसरा अमेरिका को इससे ज्यादा मदद यह मिली की वल्र्ड बैंक का अधिकारी (अमेरिकी प्यादा) पाक का वित्त मंत्री रहा तीसरा अमेरिका को शस्त्र बेचनें में मदद मिली।
पाकिस्तान की सेना का सार्वजनिक उपक्रमों में भी पूरा हस्तक्षेप है देश के अधिकांश विश्वविद्यालयों के कुलपति रिटायर्ड सेनाधिकारी हैं। समाज के हर सोरमे में सेना का हस्तक्षेप है और सेना-सुरक्षा के नाम पर मानवाधिकारों को खत्म किया जाता है। विभाजन के बाद भारत पाक के ट्रेड युनियन एक जैसे थे पर पाकिस्तान के ट्रेड युनियन मे बदलाव आया है। पहले आर्मी में वे लोग यूनियन बना सकते थे जो वदीZधारी नही थे। जिनकी सेना मे एक बड़ी तादाद भी है पर अब वे यूनियन नहीं बना सकते हैं यहां तक कि जो लोग सेना से किसी भी तरह का सम्बध रखते हैं यूनियन नहीं बना सकते। अभी हाल में एक दिलचस्प वाकया घटित हुआ जिसमें कोर्ट ने एक फैसला सुनाया। मामला यह था कि एक एक्वागार्ड कम्पनी के मजदूरो ने यूनियन बनाई थी जिसको कम्पनी ने कोर्ट में यह कहते हुए मामला दाखिल किया कि वह सेना को एक्वागार्ड सप्लाई करती है और नियमत: सेना से सम्बध्द कोई भी विभाग की यूनियन नही हो सकती। कारण वश फैसला कम्पनी के पक्ष में रहा ।
दुनिया का यह पहला देश होगा जहां रेलवे लाईनों की लम्बाईओं में कमी आयी है कारण पड़ोसी देशों का खौफ रहा है जिसका झूठा प्रचार पाक सरकार हमेशा करती रही है। जिससे देश के लोगों को भी रेलवे सुविधाए ठीक ढंग से मुहैया नही हो पाती। और रेलवे में भी जहां से आमीZ की ट्रेन गुजरती है वहां से सारे ट्रेड यूनियन खत्म किये गये हैं।
भारत और पाक दोनों देश यह कहते रहे हैं कि जंग नही करनी है मसले को शांतिपूर्ण ढंग से हल किया जाना है इसके बावजूद दोनों देश नए हथियारों से लैस हो रहे हैं सेना की खर्च को बढ़ाया जा रहा है , परमाणु परीक्षण किये जा रहे हैं। भारत यदि 150 परमाणु शस्त्र रखने का दावा कर रहा है तो पाक कम-अज-कम 50 या उससे अधिक रखने का प्रयास में जुटा है। इसके पीछे क्या कारण हैं। यदि परमाणु बम पंजाब मे गिरता है तो ऐसा नही है कि वह केवल पंजाब में ही विध्वसं फैलायेगा उसका असर पाकिस्तान तक जायेगा क्योंकि बम कोई सीमा नहीं देखता और न ही किसी देश की सेना उसके प्रभाव को रोक पायेगी। कुल मिलाकर देश की जनता ही तबाह होगी जब कि ऐसा करने में दो चार बम ही काफी है फिर सौ क्या पचास क्या। और एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि इसका फैसला लेने वाले दोनों देशो में पचास से भी ज्यादा लोग नही है जबकि अंजाम अरबों जनता को भुगतना होगा। यह कैसा लोकतंत्र है और कैसा न्याय है। अत: दोनों देशो को अपने सैन्य शस्त्रों को कम करना चाहिए और परमाणु निशस्त्रिकरण करना चाहिए। दरसल ये देश टेरर और वार के नाम पर यूरोप और अमेरिका की सेवा कर रहे हैं।
आपको जानकर आश्चर्य होगा और हसीं भी आएगी की पाकिस्तान मे आज गरीब की परिभाषा इससे तय की जाती है कि किसके पास बंदूक नही है , रॉकेट लांन्चर नही है , बच्चे लेवर कर रहे हैं बिलो पॉवर्टी के नीचे है, इससे नही। गणतंत्र दिवसपर हम अपनी मिलेट्री पावर अस्त्र-शस्त्र का प्रदशZन करते हैं, न कि डेमाके्रसी में सुधार, मानवाधिकार किसानों की बदतर हालातों की चर्चा।
दूसरी बात डिफेन्स पर हो रहे खर्चे पर किसी भी संसद में बहस नही होती जो होनी चाहिए और सेना को कम किया जाना चाहिए। इस बार जब कांग्रेस सत्ता में आयी तो एक मुलाकात के दौरान प्रधानमंत्री का कहना था कि एक दो माह में सियाचीन से आमीZ हटा ली जाऐगी पर हुआ यूं कि एक दो हप्ते बाद आमीZ चीफ का बयान आया कि अभी हालात ऐसे नहीं हैं कि सेना को हटाया जाये और तब से यथास्थिति बनी हुई है। हमें यह नही सोचना चाहिए कि जब आमीZ माशZल लॉ लगाती है तभी शासन करती है बल्कि जब इनके पावर और ये बढ़ते हैं तब भी शासन करते हैं। और श्रीलंका, बंग्लादेश, पाक, भारत सबके सेना की हालत एक जैसी है।
भारत पाक की स्थिति को देखे हुए ऐसा लगता है कि देश मे एक बडे़ जन आंदोलन की जरूरत है जिसके जरिये मिलेट्राइजेशन को कम किया जा सकता है और उस पैसे से देश की अन्य बदतर स्थितियो को सुधारा जा सकता है। सेना में आयात किये जाने वाले शस्त्रो का दस प्रतिशत कमीशन भी हटाया जाना चाहिए।

1 टिप्पणी:

  1. चंद्रिका बाबू कुछ खेल हो गया है. कुछ पढ़ने में नहीं आ रहा है. कुछ दिख ही नहीं रहा है.

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