चन्द्रिका
(मूलरूप से जागरण में प्रकाशित)
हर वक्त के
अपने मूल्य होते हैं. वक्त बदलता है और मूल्य बदल जाते हैं.
विकास हमारे वक्त का ऐसा मूल्य बन चुका है जिसे फिलहाल सामूहिक तौर पर
लोगों में स्वीकृति मिली हुई है. जबकि विकास के कई आयाम हैं और
इसके कई परिणाम. परिणाम वर्तमान के भी हैं और भविष्य के भी हैं.
जिसे विकास कहकर आज बढ़ावा दिया जा रहा है जरूरी नहीं कि आने वाले भविष्य
में उसको उसी तरह स्वीकार किया जाए. भाजपा द्वारा स्किल इंडिया
की अवधारणा भी इसी विकास की बात से निकल कर आई है. लोगों में
स्किल पैदा कर सरकार उन्हें बेहतर बनाने का दावा पेश कर रही है. उसे हमारे एजुकेशन का एक नया पैटर्न बताया जा रहा है. फिर वह क्या फर्क है जो स्किल और एजुकेशन को अलग कर रहा है. क्या एजुकेशन के बजाय सिर्फ स्किल पैदा करना एक विकसित समझ है.
दरअसल यह
हमारी शिक्षा और ज्ञान के मायने को बदलने की एक कवायद है. उसके स्वरूप को बदला जा रहा है. इस तरह से बदला जा रहा
है कि जिसके तात्कालिक असर भले न दिखें पर आने वाले वक्त में हम एक मूढ़ समाज बनाने
की तैयारी कर रहे हैं. एक ऐसा समाज जो एक ही दिशा में सोचने वाला
हो, एक ही जैसा सोचने वाला हो. एक यूनीलीनियर
दुनिया बनाने की परियोजना का यह एक हिस्सा है. जो उस ज्ञान परंपरा
को ख़त्म कर दे जिसके तहत बहुआयामी और आलोचनात्मक सोच विकसित होती है. जो लोकतंत्र के विचार को और मजबूत बनाती है.
शिक्षा के
बजट में लगातार कटौती की जा रही है. शोध करने और विमर्ष
करने के दायरे भी कम किए जा रहे हैं. यूजीसी नोटीफिकेशन
2016 के तहत सभी विश्वविद्यालयों में शोध को सीमित कर दिया गया है.
जे.एन.यू. जैसे शोध आधारित देश के अग्रणी संस्थानों में 80% से
ज्यादा सीटें इस वर्ष कम कर दी गई हैं. देश के अन्य केंद्रीय
विश्वविद्यालयों के भी हालात कुछ ऐसे ही है. यह सरकार के विकास
की नई दिशा है. जो ज्ञान के उस दायरे को कमजोर करना चाहती है
जहां असहमति और मतभिन्नता का स्पेस निर्मित होता है. वह अपनी
अलग-अलग योजनाओं के जरिए उस कल्याणकारी राज्य की परियोजना को
ख़त्म कर रही है जिसके तहत शिक्षा, स्वास्थ्य को नागरिक अधिकार
बनाया जाना था. वर्तमान सरकार और इसके पहले की सरकारें दोनों
में ही इस योजना को लेकर कोई अंतर नहीं दिखता. वे निजीकरण को
बढ़ावा और राज्य द्वारा लोगों को दी जाने वाली सुविधाओं में कटौती कर रही हैं.
जब सरकार शिक्षा के बजट कम करेगी तो संस्थानों के लिए अपने संसाधन सीमित
करने के अलावा कोई चारा नहीं बचता. शोधार्थियों को शोध के लिए
दी जाने वाली सीमित राशि भी देना उनके लिए मुश्किल हो जाएगा. लिहाजा वे संस्थानों के लिए कुछ इस तरह के नियम बनाएंगे कि शोध और अध्ययन में
कम लोग दाख़िला पा सकें. इसलिए शिक्षा में बजट की कटौती लोगों
के ज्ञान की कटौती भी है. यहां मूल समस्या सरकार की मंसा में
है. निजीकरण को बढ़ावा देने वाली उस प्रक्रिया में है.
पब्लिक संसाधनों का सीमित होना या उच्च शिक्षा में सीटों का कम होना
तो बस इसका उत्पाद भर है. जो निजीकरण के ख़िलाफ नहीं हैं,
जिन्हें शिक्षा में बजट कटौती से परेशानी नहीं है. उन्हें केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में और कम पैसों में अपने बच्चों के न पढ़
पाने का कोई मलाल नहीं होना चाहिए.
जबकि पढ़ने
वाली आबादी बढ़ रही है. शिक्षा के संस्थान भी बढ़े हैं पर संस्थानों
की यह बढ़ोत्तरी निजी क्षेत्रों में हुई है. दुनिया के बड़े निवेशक
व्यापारी एक नए निवेश के रूप में शिक्षा को देख रहे हैं और उसमे निवेश कर रहे हैं.
जबकि उनके पास कोई कल्याणकारी योजना नहीं है कि वे समाज के लोगों को
शिक्षित करना चाहते हैं. उनका यह भी उद्देश्य नहीं है कि वे दुनिया
में ज्ञान की कोई परंपरा विकसित करना चाहते हैं. वे इसे एक लाभ
के क्षेत्र के रूप में ही देख रहे हैं. उनके लाभ दोहरे हैं.
आर्थिक लाभ के अलावा वे अपने मुताबिक मानव संसाधन को निर्मित कर रहे
हैं. एक वर्ग के बच्चे, एक तरह के मूल्य,
एक तरह का माहौल, एक खास तरह के कंक्रीट,
जैसा कि निजी संस्थानों में दिखता है. शिक्षा के
संस्स्थानों में किताबों के अलावा हमारे ज्ञान निर्माण में इस परिवेश की भी भूमिका
होती है. यह एक मशीन सा है जो एक सांचे से एक ही तरह का पुर्जा
पैदा करती है. वह वहीं फिट होगा जहां उसकी जगह है. वहां आलोचनात्मक समझदारी या संवेदनशीलता नहीं पनप सकती. वे बहुआयामी नहीं हो सकते. निजी क्षेत्र को इसकी जरूरत
भी नहीं है कि सवाल और आलोचना पैदा हो. यह उसकी व्यवस्था के लिए
ही परेशानी बनती है. तो राज्य लोगों के लिए शिक्षा की जो क्राइसिस
पैदा कर रहा है वह निजी क्षेत्र के लिए लाभदायक बन रहा है.
इसलिए सरकार
के द्वारा शिक्षा के बजट में कटौती और निजी संस्थानों के बढ़ने का सीधा संबंध है. जब सरकार शिक्षा मुहैया नहीं कराएगी तो व्यवसायी उसे अपना नया क्षेत्र बनाएंगे.
यह योजना हमारे समाज के ज्ञान को भी कमजोर करेगी. क्योंकि समाज विज्ञान के विषयों के अध्ययन अध्यापन में भी कमी आएगी.
ये ऐसे विषय हैं जो रोजगार से ज्यादा अपने समाज को समझने और उसे नई दिशा
में आगे बढ़ाने के चिंतन को विकसित करते हैं. इनका प्रत्यक्ष लाभ
नहीं दिखता. व्यवसायिक शिक्षा में ऐसे विषय संस्थानों के दायरे
से बाहर होंगे. केवल कम्पनियों और फैक्ट्रियों की जरूरत के मुताबिक
स्किल्ड लोग तैयार किए जाएंगे.
नए विकास
में ज्ञान और शिक्षा देने के बजाय स्किल्ड बनाने की घोषणा सरकार ने कर ही दी है. यह वर्तमान सरकार के विकास की योजनाओं में से एक है. अंग्रेजी का यह स्किल्ड हिन्दी का कारीगर है. भाषा कई
बार हमारे भीतर भ्रम पैदा करती है और चीजें उलट-पुलट जाती हैं.
जाहिर सी बात है कि सरकारी उपक्रम कम होते गए हैं तो सरकार जो कारीगर
तैयार कर रही है वह भी व्यवसायियों के लिए ही है. ऐसे में ज्ञान
का मायने यही बन रहा है कि राज्य हमे व्यवसायियों के हाथो में सौंप रहा है.
शिक्षित होने के लिए और शिक्षित होने के बाद भी. क्योंकि स्किल्ड बनाने के जरिए हमारे शिक्षा और ज्ञान की अवधारणा को ही बदला
जा रहा है. शिक्षित होने और स्किल्ड होने के मायने एक जैसे नही
हैं. कारीगर बनाना और ज्ञान अर्जित करना दोनों एक चीज नहीं है.
ज्ञान का संबंध सीधे-सीधे नौकरियां पाने से ही
नहीं था. बल्कि वह अपने समाज को समझना और सीखना था. आगे आने वाली पीढ़ी को अपने सीखे अनुभवों से और उन्नत करना था. इसे बदला जा रहा है. यह विकास के नाम पर दिया जाने वाला
एक झांसा है. अपनी जरूरत के मुताबिक लोग स्किल्ड हो ही जाते हैं.
किसी स्किल का होना कोई बुरी बात भी नहीं है. जरूरी
सवाल यह है कि हमें क्यों स्किल्ड बनाया रहा है? हम किसके लिए
स्किल्ड हो रहे हैं? क्या हमारे पढ़ने-लिखने
और ज्ञान को इस स्किल्ड के जरिए अपदस्त तो नहीं किया जा रहा है.
इसलिए एक
तरफ विकास की बात करना और दूसरी तरफ स्किल इंडिया के जरिए लोगों से ज्ञान को छीनकर
उनको कारीगर बनाना एक विकसित समझ नहीं है. यह एक तरह से ज्ञान
और तार्किक सोच समझ को रोकना है. जहां हम अपने समाज में एक विषय
पर विभिन्न मत रखते थे और वे मतभेद के अन्तर्विरोध ही थे जो हमारे समाज और ज्ञान को
और आगे बढ़ाते थे. उसे ख़त्म करने की कवायद का ही नाम है स्किल
इंडिया. जिसका असर हमारे समाज को लंबे समय में दिखेगा.
फिलहाल तो जो चमक रहा है उसे हर कोई सोना ही कहने को आतुर दिख रहा है.
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन सैम मानेकशॉ और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है।कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
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