23 नवंबर 2016

नोटबंदी में बड़ी कंपनियों को लूट की छूट

दिलीप ख़ान

गुरुवार से सरकार ने बिग बाज़ार की पेशकश पर नई व्यवस्था लागू की है। अब बैंक और एटीएम के अलावा बिग बाज़ार से भी लोग कैश निकाल सकेंगे। शुरू में देश भर में फैली 258 दुक़ानों में ये व्यवस्था लागू होगी। बाद में इस दायरे को और बढ़ाया जाएगा। स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया इसमें बिग बाज़ार की मदद कर रहा है। देखने-सुनने में शुरुआती तौर पर तो यही लगता है कि इससे लोगों को सहूलियत होगी। लोग बैंक और एटीएम के साथ-साथ पेट्रोल पंप और बिग बाज़ार से भी पैसे निकाल सकेंगे, लेकिन क्या ये वाकई सहूलियत का मामला है? क्या स्टेट बैंक ने सचमुच लोगों की परेशानी कम करने के लिए इस फ़ैसले को मंजूरी दी है? 

बिग बाज़ार में कई बड़े उद्योगपतियों के पैसे

 नोटबंदी के बाद सरकारी संस्थानों को सुदृढ़ करने के बजाए बिग बाज़ार जैसे निजी खिलाड़ियों को बैंक जैसी शक्ति क्यों दी जा रही है? सरकार ने सहकारी बैंकों के लाख विरोध के बावजूद अब तक उन्हें पुराने नोट बदलने की शक्ति नहीं दी है। केरल में विधान सभा का विशेष सत्र बुलाना पड़ा, महाराष्ट्र में तीन ज़िलों के सहकारी बैंकों ने इसे बॉम्बे हाई कोर्ट में चुनौती दे दी। बिहार के सहकारी बैंककर्मियों ने 25 तारीख़ को हड़ताल की धमकी दे दी, लेकिन सरकार के कानों में जूं तक नहीं रेंग रही, जबकि करोड़ों लोग सहकारी बैंकों पर निर्भर हैं। तो ऐसा क्या है बिग बाज़ार में जो सहकारी बैंक में नहीं है?


पहले दिन से ये प्रचार किया जा रहा है कि नोटबंदी से ग़रीब और मध्यवर्ग को दीर्घकालीन फ़ायदा होगा। हम इन आंकड़ों पर अलग से बात कर लेंगे कि ये फ़ैसला कैसे ग़रीब विरोधी है, लेकिन फ़िलहाल हम इस पर ध्यान दें कि बिग बाज़ार को पैसे निकालने का मंच बनाने से किसको फ़ायदा होगा और किसको नुकसान? मान लीजिए आपने बिग बाज़ार से 2000 रुपए निकाले, तो ज़रूरत का सामान चारों तरफ़ देखकर आप ख़रीददारी भी करेंगे। नहीं करेंगे तो उनके कर्मचारी, जिनको इसी काम का वेतन मिलता है, आपको ज़रूर ऑफर करेंगे कि आप फलाना सामान ख़रीद लीजिए। इस तरह बिग बाज़ार से आप निकालने जाएंगे 2000 और घर लेकर आएंगे 1000 या फिर पांच सौ। नकदी के मामले में ख़ाली हाथ भी लौट सकते हैं। जो सामान आप मोहल्ले की किराना दुक़ान से ख़रीदते थे, वो आप बिग बाज़ार से ख़रीदेंगे। वहां आपको न कैश की दिक़्क़त है और न ही कार्ड एक्सेप्ट नहीं होने की। मोहल्ले का छोटा दुक़ानदार आपको ये सुविधा नहीं दे सकता। ये सुविधा बड़ा रिटेल चेन ही दे सकता है। बिग बाज़ार आपको दे रहा है। बिग बाज़ार की बिक्री बढ़ेगी। वैसे ही चारों तरफ़ ख़बरों के ज़रिए ये प्रचार हो रहा है कि 'आप पैसे बिग बाज़ार से भी निकाल सकते हैं'। बिग बाज़ार के लिए बिना पैसा ख़र्च किए इससे बढ़िया विज्ञापन क्या हो सकता है? 

अब एक बार बिग बाज़ार की मालिकाना संरचना समझ लेते हैं। बिग बाज़ार को चलाने वाली मदर कंपनी का नाम है फ्यूचर ग्रुप। किशोर बियानी इसके मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं। 2001 में इसकी स्थापना हुई थी और तबसे बिग बाज़ार देश के सैंकड़ों शहरों में अपनी शाखा खोल चुका है। 2015 में एयरटेल के मालिक सुनील भारती मित्तल की कंपनी भारती रिटेल और फ्यूचर ग्रुप मर्ज हो गए। यानी एक हो गए। इस तरह ये कंपनी 15 हज़ार करोड़ रुपए के टर्नओवर वाली कंपनी बन गई। 
सहकारी बैंकों को नोट बदलने की शक्ति नहीं दी गई

मई 2012 में आदित्य बिड़ला समूह को फ्यूचर ग्रुप वालों ने पेंटालूंस की 51.1 फ़ीसदी हिस्सेदारी दे दी थी। 8000 करोड़ रुपए में ये डील हुई। फ्यूचर ग्रुप ने अपने क़र्ज़ का बोझ कम करने के लिए ये फ़ैसला किया। 


जब भारती ग्रुप के साथ फ्यूचर ग्रुप का मिलाप हुआ तो ‘इज़ीडे’ और बिग बाज़ार एक हो गए। ये जो ‘इज़ीडे’ है, ये भारत में वालमार्ट की सहयोगी कंपनी है। यानी बिग बाज़ार का दांव बहुत ऊपर तक लगा हुआ है। नोटबंदी से उपजे हालात में फ़ायदा लूटने के तार यहां से अमेरिका तक जुड़े हुए हैं। अगर आप बिग बाज़ार में उद्योगपतियों की हिस्सेदारी तलाशेंगे तो कई बड़े नाम आपको एक साथ मिल जाएंगे। इनमें किशोर बियानी और सुनील भारती मित्तल के अलावा आदित्य बिड़ला तो हैं हीं, गोदरेज़ भी हैं और वॉलमार्ट भी हैं। फ्यूचर ग्रुप में इटली के जेनरली ग्रुप, फ्रांस के सेलियो, अमेरिका के स्टैपलेस, ब्रिटेन के क्लार्क समेत कई विदेशी कंपनियों ने साझा उपक्रम के तहत पैसे लगा रखा है। यही नहीं, गुजरात और पंजाब में फ्यूचर ग्रुप ‘आधार रिटेल’ चलाती है और इसमें गोदरेज इसका साझेदार है। 

इज़ी डे अब बिग बाज़ार वालों का है
इसी तरह बिग एप्पल को चार साल पहले किशोर बियानी ने ख़रीदा था। यानी KB’s फेयर प्राइस भी इस डील के बाद बिग बाज़ार वालों का हो गया। मुनीष हेमराजन से 62 करोड़ रुपए में ये सौदा पटा था। प्लानेट स्पोर्ट्स नाम की कंपनी भी फ्यूचर ग्रुप की है और इसमें यूरोप की कुछ कंपनियों ने भी पैसे लगा रखे हैं। यही नहीं, EZone online, Fool hall, Home Town, I am in, Central जैसे कई रिटेल स्टोर्स के मालिक किशोर बियानी हैं। 


नोटबंदी के बाद पेटीएम जैसी कंपनियों के धंधे बुलंद हुए तो नरेन्द्र मोदी की फोटो के साथ कई अख़बारों ने कंपनी ने इश्तेहार छापा। पेटीएम में चीनी कंपनी अलीबाबा का बड़ा शेयर है। नोटबंदी का पेटीएम को बड़ा फ़ायदा मिला है। अब बारी बिग बाज़ार की है। 

2 टिप्‍पणियां:

  1. वैसे आपकी बात सही है किंतु बैंकों के बाहर जिनलोगों की लाइन होती है उनमें से आधी से ज्यादा बिग बाजार जाने वाले नहीं दिखते । लेकिन यह भी सही है कि मार्केट तो जरूर बढ़ेगा उनका ।

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  2. सोलह आना सत्य कहा आपने किन्तु सहकारी बैंकों को अधिकार न दिए जाने के संबंध में विस्तार से बताएं तो मेहरबानी होगी

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