09 अक्टूबर 2015

बिहार: प्रचार के हाल

-दिलीप ख़ान
नीतीश कुमार ने आज (यानी शुक्रवार को) पांच जनसभाओं को संबोधित किया। पांचों उन इलाक़ों में, जहां पहले दौर में वोटिंग होनी है। ज़ाहिर है महागठबंधन उन इलाक़ों में आख़िरी-आख़िरी में ज़्यादा ज़ोर लगा रहा है जहां प्रचार ख़त्म होने वाले हैं। यानी अंतिम समय में मतदाताओं के जेहन को अपने पक्ष में कर वोट में तब्दील करने की नीयत से ही नीतीश कुमार ये रैलियां कर रहे हैं। लालू प्रसाद यादव के प्रचार पर ग़ौर करें तो वो भी धुआंधार रैलियां कर रहे हैं, लेकिन तमाम व्यस्तताओं के बावजूद अपने बेटों की सीट पर नियमित जाना नहीं भूल रहे। 

इस पूरे चुनाव में प्रचार के तौर-तरीकों पर ग़ौर करें तो नीतीश और लालू ने स्पष्ट तौर पर शैली और मुद्दों का बंटवारा कर लिया है। लालू यादव लगातार आरक्षण जैसे मुद्दों के साथ जनता से मुखातिब हो रहे हैं तो वहीं नीतीश कुमार केंद्र बनाम राज्य की बात को हर मंच से दोहरा रहे हैं। वो जानते हैं कि बिहार में उनकी सुशासन बाबू वाली छवि अभी सतह से ग़ायब नहीं हुई है और मतदाताओं का एक हिस्सा आज भी मोदी और नीतीश में किसको चुने, इस पर पसोपेश में है। नीतीश कुमार उन मतदाताओं तक ही अंतिम वक़्त में पहुंचकर वोट अपनी झोली में झटकना चाह रहे हैं।


   कौन सी पार्टी कितनी सीटों पर लड़ रही चुनाव
            (पहले दौर की 49 सीटें) 

पार्टी
उम्मीदवार
बीएसपी
41
बीजेपी
27
सीपीआई
25
जेडीयू
24
आरजेडी
17
एलजेपी
13
सीपीआई(एम)
12
कांग्रेस
8
आरएलएसपी
6
एनसीपी
6
अन्य पार्टियां
210
निर्दलीय
194
कुल
583


बीजेपी के दर्जन भर से ज़्यादा केंद्रीय कैबिनेट मंत्री लगातार मैदान में हैं लेकिन नरेन्द्र मोदी को छोड़कर कोई असरदार साबित नहीं हो पा रहा। नरेन्द्र मोदी की मुश्क़िल ये है कि वो हर ज़िले में चुनावी कैलेंडर के हिसाब से रैली कर नहीं सकते। शुक्रवार को उन्होंने जिन दो ज़िलों में रैली की वहां दूसरे दौर में चुनाव होने हैं। महागठबंधन के दो बड़े चेहरे, नीतीश और लालू, चुनावी कैलेंडर के लिहाज से हर उस इलाक़े में पहुंच रहे हैं जहां प्रचार अभियान ख़त्म होने वाला है।

बिहार में पूरा मामला दिल्ली चुनाव की याद दिलाता है जहां अरविंद केजरीवाल ने केंद्र में मोदी, दिल्ली में केजरीवाल की तर्ज पर लोगों से वोट मांगे थे। बीजेपी ने दिल्ली की हार के बाद बिहार में इसी रणनीति को लागू किया है। बीजेपी लगातार जनता को आगाह कर रही है कि नीतीश कुमार हैं तो ठीक, लेकिन आरजेडी के साथ मिलकर बिहार का विकास कैसे करेंगे’? बीजेपी ने पूरे प्रचार के दौरान लालू यादव को जात-पात की खाई को बढ़ाने वाले नेता के तौर पर पेश किया। इस पूरे मामले में ऐसा लग रहा है कि आरजेडी के वोटर तो अपनी पार्टी के साथ मज़बूती से खड़ा रहेगा, लेकिन जेडीयू अपने वोट का एक हिस्सा गंवा देगी।

पहले दौर के ज़िलों में 2010 के नतीजे

ज़िला
बीजेपी
जेडीयू
आरजेडी
एलजेपी
कांग्रेस
सीपीआई
जेएमएम
समस्तीपुर
2
6
2
0
0
0
0
जमुई
0
3
0
0
0
0
1
नवादा
2
3
0
0
0
0
0
शेखपुरा
0
2
0
0
0
0
0
लखीसराय
2
0
0
0
0
0
0
मुंगेर
0
3
0
0
0
0
0
बांका
1
3
1
0
0
0
0
भागलपुर
3
3
0
0
1
0
0
खगड़िया
0
3
1
0
0
0
0
बेगूसराय
3
3
0
0
0
1
0
कुल-49
13
29
4
0
1
1
1

पसोपेश में पड़े मतदाताओं को अपने पक्ष में करना जेडीयू के लिए सबसे मुश्क़िल काम है। जिस तरह का कैडर वोटर आरजेडी के पास है और जैसा बीजेपी ने हाल के वर्षों में विकसित किया है, उतना ठोस वोटरों का समूह जेडीयू के पास दिखता नहीं। इसकी एक बड़ी वजह स्पष्ट राजनीतिक कार्यक्रम का अभाव रहा है। आरजेडी और बीजेपी के राजनीतिक दर्शन से बिहार की जनता पूरी तरह वाक़िफ़ है। जेडीयू इन दोनों के बीच डोलड्रम सरीखा मालूम पड़ती है। अब 12 अक्टूबर से मतदान का सिलसिला शुरू होने वाला है, लिहाजा राजनीतिक दर्शन जैसी चीज़ें विकसित करना चुनावी राजनीति में मुश्क़िल काम है, तो आख़िरी वक़्त में जिस भी तरीके से मतदाताओं का बड़ा वर्ग जेडीयू के पक्ष में आ जाए, जेडीयू के लिए ये सबसे बड़ी क़ामयाबी होगी। वैसे, सबसे ज़्यादा हानि इसी पार्टी को होने वाली है।

वैसे समूचे बिहार में दो-ध्रुवीय मुक़ाबलों के बीच बेगूसराय में वामपंथी पार्टियों की एक मात्र सीट बछवारा के नतीजे पर लोगों का ध्यान टंगा हुआ है। फ़िलहाल सीपीआई के अबधेश कुमार राय इस सीट से विधायक हैं। बिहार में पहली बार 6 वामपंथी पार्टियां मिलकर चुनाव लड़ रही हैं, लेकिन बछवारा और तेघड़ा पर ही कड़ी टक्कर देने की स्थिति फ़िलहाल दिख रही है।


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