-दिलीप
खान
घटना-1. दिल्ली के मंडी हाऊस में सौ-डेढ़ सौ लोग
बिसाड़ा की घटना
के बाद देश में बढ़ रही सांप्रदायिकता के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने के लिए जमा हुए। मंडी हाऊस
से नरेन्द्र मोदी के आवास तक प्रदर्शन होना था। पुलिस ने हिरासत में लिया और उसके बाद संसद
मार्ग थाने की चारदीवारी के भीतर ही नारे लगते रहे, भाषण होते रहे। बाहर सड़क पर लोग अपने
दैनिक काम के लिए हमेशा की तरह जाते रहे। गाड़ियां चलती रहीं, चाय बिकती रहीं, थाने के बाहर पुलिस वाले खैनी मलते रहे, रजनीगंधा खाते रहे। जो दृश्य अंदर था
उसका छटांक भी
छनकर बाहर नहीं आ पा रहा था। बाहर का पूरा नजारा उसी तरह शांत, चुप और असरहीन दिख रहा था, जिस तरह बिसाड़ा की घटना के बाद
प्रधानमंत्री दिख रहे थे। नरेन्द्र मोदी थाने के बाहर कण-कण
में मौजूद दिख रहे थे। बाहर का भारत बिल्कुल शांत था, चुप था। बिसाड़ा से कोई फर्क नहीं पड़ने
का हलफ़नामा भरने को तैयार था।
घटना-2. लगातार कहा जा रहा है कि दादरी अब एक
जगह नहीं है। दादरी
के पैरों में पहिए लग गए हैं और वो देश भर में तेज़ी से घूम रहा है। बहुत कम समय में
मैनपुरी होते हुए दादरी दोबारा जम्मू-कश्मीर पहुंच चुकी है। पहले एमएलए इंजीनियर राशिद की
बीजेपी विधायकों द्वारा पिटाई हुई, फिर कुछ लोगों को जलाने
की कोशिश। गाय लगातार राजनीतिक और हिंसक जानवर में तब्दील होती जा रही है। इस बार गाय पर
सवार लोगों का जत्था उधमपुर के एक होटल के बाहर पहुंचा और ट्रक फूंककर
रास्ते से निकल गया। कोयले से भरा ट्रक धू-धूकर जल उठा और साथ में दो लोग भी।
एक चालीस फ़ीसदी जला और दूसरा सत्तर फ़ीसदी। ड्राईवर बच गया। गाय ने ख़ुद पर
सवार लोगों से ये कहा होगा कि नहीं, ट्रक में मेरा मांस नहीं, कोयला है, लेकिन सवारों ने अनसुनी की और फिर से कोरी अफ़वाह पर
एक घटना और घटी। बीजेपी की सहयोगी पीडीपी ने बढ़ रही सांप्रदायिक तनाव पर चिंता जताते हुए
कहा कि 'मोदी जी विकास के नाम
पर जीतकर
आए हैं, लेकिन सांप्रदायिक
तनाव का विकास कर रहे हैं, जिसमें
भारत टिक
नहीं पाएगा'. मुझे
ठीक-ठीक पता नहीं कि भारत कितना टिकेगा, कितना नहीं, लेकिन
ये ज़रूर है कि ऐसी घटनाएं अब टिकाऊ होने वाली हैं। ट्रक जलाने की घटना कोई नई नहीं है।
2013 में धारूहेड़ा में एक
साथ लगभग पचास ट्रकों को बजरंग दल वालों ने 'गोमांस' की अफ़वाह के आधार पर जला दिया था। बाद
में कस्टम
के अधिकारियों ने जांच की तो आरोप ग़लत साबित हुआ।
घटना-3. साहित्य अकादमी में उदय प्रकाश ने
पुरस्कार लौटाने की शुरुआत की और अब नयनतारा सहगल, अशोक वाजपेयी, शशि देशपांडे, कृष्णा सोबती और सारा जोसफ़ ने भी अकादमी को पुरस्कार
लौटा दिया। (अब तो 9 और लेखकों ने पुरस्कार लौटाने की घोषणा कर दी है) सच्चिदानंदन ने सभी पदों से इस्तीफ़ा दे दिया, लेकिन अकादमी के अध्यक्ष विश्वनाथ
प्रसाद तिवारी नाम के व्यक्ति को इनसे कोई फर्क़ पड़ता नहीं दिख रहा। वो
कर्नाटक में हुई एक गोष्ठी को अकादमी की तरफ़ से पर्याप्त कदम मान रहे हैं जोकि
एमएम कलबुर्गी
की 'मौत' (हत्या नहीं) के बाद उठाया जाना चाहिए
था। लेखकीय स्वतंत्रता,
स्वायत्तता और आलोचना का पूरा स्वर
तिवारी जी के साउंडप्रूफ़ चैंबर में नहीं पहुंच पा रही। तिवारी जी
राजनीतिक बयान नहीं दे पाएंगे, हो सकता है पान की
गिलौरी मुंह को ये इजाजत ना देती हो! दीनानाथ बतरा पान नहीं खाते, लिहाजा वे आगामी अध्यक्ष के तौर पर
बेहतर साबित होंगे!!
इन घटनाओं का आपस में
रिश्ता आप तलाशिए, ये
आपका काम है, मोदी जी का नहीं। वो फिर
कभी एक स्टेटमेंट देकर देश की अखंडता बचा लेंगे। अखंड भारत वैसे भी उनका ऑरिजिनल नक्शा है। फिलहाल वो बिहार बना रहे हैं.
Amazing!!! I liked this blog sooo much it's really awesome I liked your creativity your way.... Consequently, the India Post office Recruitment 2020 board has announced and recruited a lot of posts for various levels
जवाब देंहटाएं