फोटो: साभार बीबीसी |
यूपीए ने जिस सलवा-जुडुम की शुरुआत छत्तीसगढ़ राज्य सरकार के साथ मिलकर की थी. अब उसे क्रमांक में लिखने की जरूरत आन पड़ी है. उसे सलवा जुड़ुम-1 कहा जाएगा. क्योंकि बीजेपी शासन की मदद से सलवा-जुड़ुम -2 की शुरुआत करने की घोषणा स्थानीय नेताओं द्वारा कर दी गई है. इन घोषणाओं से यह भ्रम पैदा होता है कि सलवा-जुड़ुम -१ ख़त्म हो गया था. शायद उसे महेन्द्र कर्मा की मौत के बाद ख़्त्म हुआ मान लिया गया हो या यह 5 जुलाई 2011 को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति सुदर्शन रेड्डी और एसएस निज्जर द्वारा जो आदेश दिया गया था उसके बाद खत्म मान लिया गया रहा हो. आदेश में इसे पूरी तरह से बंद करने को कहा गया था और सरकार को जनसंहारो में संलिप्त बताया गया था. सलवा-जुडुम पर यह फैसला इसके शुरू होने के लगभग 6 साल बाद आया था. इन 6 सालों में हत्या, बलात्कार और आगजनी की जाने कितनी घटनाएं घटी. छः लाख लोग अस्त-व्यस्त हो गए और कई अपने गांव फिर कभी लौटकर नहीं आए. राज्य के इस अभियान के खिलाफ उनमें से कई आदिवासी माओवादियों के साथ भी जुड़े, वे लड़कियां भी जिनके भाई सलवा-जुड़ुम में शामिल थे. और उन्होंने एक मजबूत विरोध जताया. क्या फिर से सलवा-जुडुम-2 का शुरू होना इन घटनाओं का दुहराव होगा. क्या इतिहास खुद को दुहराता है. क्या यह सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की अवहेलना नहीं है. निश्चय ही यह सब सवाल जब तक हल किए जाएंगे. जब तक इन पर नागरिक समाज से आवाज़ें उठनी शुरू होंगी कई कत्लेआम कर दिए जाएंगे. जबकि यह सच है कि सलवा-जुडुम के बंद करने के आदेश के बाद यह कभी बंद नहीं हुआ था. सरकार और विपक्ष के राजनेता इस पर पूरी तरह से खामोश हैं. क्योंकि आदिवासियों के साथ होने वाले सुलूक में संसद का पक्ष-विपक्ष एक साथ खड़ा है. भाकपा माओवादी ने इस पर अपनी प्रेस विज्ञप्ति जारी की है जिसे यहां देखा जा सकता है. विज्ञप्ति: हिन्दी अंग्रेजी
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