15 जून 2012

दबेगी कब तलक आवाजे आदम हम भी देखेंगे.

लेखक-पत्रकार सीमा आजाद जेल में हैं और हम उनकी आवाज से रू ब रू हैं. ये उन दिनों के गाए गीत हैं, जब सीमा इलाहाबाद में छात्र राजनीति में सक्रिय थीं. शहर की किसी छत पर दोस्तों के बीच गाए गए इन गीतों के जरिए नाइंसाफियों के खिलाफ और जनता के संघर्षों के पक्ष में बोलती हुई सीमा. इस दौर में जब सीमा और उनके साथी विश्व विजय को बेइंसाफियों की मुहाफिज इस व्यवस्था की एक अदालत ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई है, इस आवाज को एक युद्धबंदी की आवाज की तरह नहीं, जनता से जबरन अलग कर दिए गए एक योद्धा की तरह सुना जाना चाहिए. और सुधीर ढवले, कबीर कला मंच के साथियो, जीतन मरांडी और उत्पल समेत उन सारे संघर्षरत कलाकारों-लेखकों-पत्रकारों के पक्ष में एकजुट हुआ जाना चाहिए, जिनको चुप कराने में व्यवस्था का शोर और व्यवस्थापरस्त लेखकों-पत्रकारों की चुप्पी लगी हुई है.

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