एक बरस बीत चुके हैं और सरकारी
गठित समिति अपने गति से कार्यवाई चला रही है. ताड़मेटला के आसपास कई और घटनाएं इस बीच
घटित हुई हैं. सलवा-जुडुम बंद हो चुका है और सलवा-जुडुम चालू भी है. देश के लिए लगातार 'सबसे
बड़ा खतरा' ये आदिवासी बने हुए हैं. इस पूरे परिदृश्य को, जले हुए गांवों को और लोगों
के जंगल में भाग जाने से खाली हुए गांवों को हमने अपनी आंखों से देखा है. माड़वी जोगी
को अपनी कहानी बताते-बताते रोते हुए हमने सुना है. मोरपल्ली की एमला गुडे और माड़वी
गुडे ने बताया था कि उनके साथ क्या हुआ. सरकार की कमेटी कुछ भी कह सकती है, मैं उस
पर यकीन नहीं करने वाला. जबकि टी.एम.टी.डी. कमेटी जांच के अंतिम दौर में है… माओवादियों
ने एक प्रेस विज्ञप्ति भेजी है जिसे यहां प्रकाशित किया जा रहा है.
प्रेस विज्ञप्ति
25 जून 2012
चिंतलनार में मचाए गए सरकारी आतंक पर टीएमटीडी आयोग की सुनवाई एक ढकोसला है!
क्रांतिकारी आंदोलन को कुचलने की मंशा से लुटेरे शासक वर्ग जनता
पर भीषण दमन अभियान चला रहे हैं। इसी का हिस्सा है कि 2011 में 11 से 16 मार्च तक मोरपल्ली,
तिम्मापुरम, ताड़िमेटला और पुलानपाड़ गांवों पर मुख्यमंत्री रमनसिंह के आदेश पर दंतेवाड़ा
जिले के तत्कालीन एसएसपी कल्लूरी के निर्देश पर पुलिस, अर्धसैनिक और कोया कमाण्डो के
संयुक्त बलों ने एक भारी हमला किया था।
10 मार्च की रात में चिंतलनार से निकले सरकारी सशस्त्र बलों ने
11 मार्च की सुबह मोरपल्ली गांव पर धावा बोल दिया। गांव में मौजूद सभी घरों में उन्होंने
आग लगा दी। माड़िवी शूला की गोली मारकर हत्या कर दी। गांव में तबाही मचाकर चिंतलनार
लौटने से पहले कई महिलाओं पर यौन अत्याचार भी किया था।
दोबारा 13 मार्च को पुल्लानपाड़ गांव पर हमला किया गया जिसमें सीआरपीएफ-कोबरा
और जिला बल ने भी हिस्सा लिया। उसके बाद गांव तिम्मापुरम में भी उनका हमला चला था।
तिम्मापुरम से पेद्दा बोड़िकेल जाते समय हमारी पीएलजीए ने उन पर जवाबी हमला किया जिसमें
तीन कोया कमाण्डो मारे गए और सात घायल हो गए। रात को सरकारी बल फिर तिम्मापुरम लौट
गए जहां उन्होंने आतंक का नंगा नाच किया। पूरे गांव को जलाकर राख कर दिया। पुल्लानपाड़
गांव के मन्नू यादव की हत्या कर उसकी लाश चिंतलनार ले गए थे।
16 मार्च को ताड़िमेटला गांव पर सरकारी बलों ने हमला किया जहां पर
218 घरों को जलाकर भारी तबाही मचाई थी।
इस तमाम घटनाक्रम को लेकर छत्तीसगढ़ प्रदेेश समेत देश भर में भी काफी
हल्ला हुआ। आम जनता के साथ-साथ मानवाधिकार संगठनों, बुद्धिजीवियों और सभी जनवादियों
ने इस पाशविक कार्रवाई की कड़ी निंदा की। दोषी अधिकारियों को सजा देने की मांग की। विपक्षी
कांग्रेस पार्टी ने भी इस मुद्दे को विधानसभा में उठाई थी। इस बर्बरतापूर्ण कार्रवाई
और उसके बाद स्वामी अग्निवेश जैसे जाने-माने लोगों पर हुए हमलों को लेकर आदिवासियों
के कुछ शुभचिंतकों ने देश की सर्वोच्च अदालत में जाकर इसकी जांच की मांग उठाई।
इस पृष्ठभूमि में सुप्रीम कोर्ट के ओदश पर छत्तीसगढ़ सरकार ने 12
मई को एक जांच आयोग का गठन किया। बिलासपुर उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति टीपी शर्मा
को इस आयोग का अध्यक्ष बनाया गया। जस्टिस टीपी शर्मा रमनसिंह का वफादार हैं। कुख्यात
छत्तीसगढ़ विशेष जन सुरक्षा कानून को नोटिफाई करने का ‘श्रेय’ भी उन्हीें को जाता है।
इसमेें जरा भी शक नहीं है कि इस आयोग के गठन से चिंतलनार इलाके के पीड़ित आदिवासियों
को न न्याय मिलेगा और दोषियों को न सजा मिलेगी। इस आयोग का नाम बहुत ही अजीबोगरीब तरीके
से टीएमटीडी (ताड़िमेटला, मोरपल्ली, तिम्मापुरम और दोरनापाल) आयोग रखा गया है और आजकल
इसकी सुनवाई के नाम पर जगदलपुर में एक नौटंकी चलने लगी है। इसका गठन महज एक ढोंग था
और वर्तमान में जारी उसकी सुनवाई भी जनता को भरमाने का हथकण्डा ही है।
इस बीच सर्वोच्च न्यायालय के ही एक और आदेश पर ताड़िमेटला कांड पर
सीबीआई की जांच भी बिठाई गई और उसकी भी जांच की प्रक्रिया चल रही है। इससे भी पीड़ित
जनता को न्याय मिलने की कोई उम्मीद नहीं है। आखिर सीबीआई भी उसी राजसत्ता का एक पुरजा
है जिसने चिंतलनार क्षेत्र की जनता पर कहर बरपा था।
इतिहास गवाह है कि आज तक ऐसे जांचों से शोषित जनता को कभी न्याय
नहीं मिला। चाहे 2002 में गुजरात में हुए मुसलमानों का कत्लेआम हो, 1984 वाले सिख विरोधी
‘दंगों’ का मामला, हर बार सीबीआई ने सत्ताधीशों का बचाव ही किया है। अभी-अभी कामरेड
चेरुकूरी राजकुमार उर्फ आजाद की फर्जी मुठभेड़ को भी सीबीआई ने ‘असली’ करार देकर हत्यारों
का बचाव किया।
अभी टीएमटीडी आयोग के सामने उपस्थित पुलिस के अधिकारी पूरी निर्लज्जता
के साथ बयान दे रहे हैं कि घरों में आग नक्सलवादियों ने लगाई थी। आने वाले दिनों में
यह आयोग भी इसी बयान से मिलता-जुलता कोई निष्कर्ष निकालेगा तो भी कोई आश्चर्य नहीं
होगा। इसलिए हम तमाम जनता और जनवाद के प्रेमियों से अपील करते हैं कि टीएमटीडी आयोग
वाली सरकारी जांच के इस ढकोसले का विरोध करें और चिंतलनार बर्बरकाण्ड के लिए जिम्मेदार
मुख्यमंत्री रमनसिंह, तत्कालीन एसएसपी कल्लूरी समेत सभी नेता, पुलिस, अर्धसैनिक बलों
के अधिकारियों और कोया कमाण्डों को कड़ी सजा देने की मांग करें।
गणेश उईके
सचिव,
दक्षिण रीजनल कमेटी - दण्डकारण्य
भाकपा (माओवादी)
saaree sthitiyan behad dukhad hain.
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