29 मई 2012

जगनमोहन रेड्डी यानी भारत में मीडिया सिर्फ कॉरपोरेट का नहीं है (भाग-1)

मेरी राजनीति, मेरा मीडिया

-दिलीप खान
साक्षी का दफ़्तर। फोटो- द हिंदू (साभार)
साक्षी मीडिया समूह को स्थापित करने के दौरान की गई कथित वित्तीय अनियमितता के आरोप में 27 मई को सीबीआई ने अंतत: कडप्पा के सांसद जगनमोहन रेड्डी को गिरफ़्तार कर लिया। जगन की गिरफ़्तारी का यह फांस बीते एक महीने से सीबीआई तैयार कर रही थी। जांच-पड़ताल अभी जारी है और सीबीआई ने जिन 75 लोगों की सूची तैयार की है उनमें से कुछेक को जगन से पहले ही हिरासत में ले लिया गया है। 8 मई को सीबीआई ने चार बैंको को यह आदेश दिया था कि साक्षी अख़बार चलाने वाले जगति प्रकाशन, साक्षी टीवी चलाने वाली इंदिरा टीवी और जननी इंफ्रा के खातों को सील कर दिया जाए। सीबीआई के इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ जगन ने आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय में अपील याचिका दायर की और 23 मई को न्यायाधीश बी चंद्र कुमार ने फैसला सुनाया कि एसबीआई, आईओबी और ओबीसी बैंक खातों पर सीबीआई द्वारा लगाई गई रोक ख़त्म की जाए। इस अदालती फैसले का आनंद उठाने के लिए अभी भरपूर समय भी नहीं मिला था कि जगन को हिरासत में जाना पड़ा। सीबीआई द्वारा खाता सील करने के फ़ैसले के बाद जो दूसरी घटना घटी वह मीडिया के संबंध में महत्वपूर्ण है। आंध्र प्रदेश सरकार ने सीबीआई कार्रवाई के बिनाह पर यह फैसला किया कि चूंकि जगन के कारोबार में लगे पैसों को लेकर जांच चल रही है इसलिए जनहितमें यही होगा कि साक्षी अख़बार और साक्षी टीवी के सारे सरकारी विज्ञापन रद्द किए जाए। और इस तरह साक्षी को मिलने वाले विज्ञापन बंद हो गए। एक ऐसे अख़बार और टीवी को मिलने वाले विज्ञापन बंद हुए जिनके लिए सारे नियम-कायदों को ताक पर रखते हुए आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री और जगनमोहन रेड्डी के पिता वाईएस राजशेखर रेड्डी ने ज़्यादा ऊंचे मूल्य पर लगातार विज्ञापन मुहैया करवाया और जिनको लेकर विरोधी मीडिया समूह लगातार यह आवाज़ उठाते रहे कि मुख्यमंत्री पिता का नाजायज फायदा उठाने की वजह से ही साक्षी का साम्राज्य खड़ा हुआ है। इस लेख में साक्षी के उदय से लेकर इस समय तक के सफर में आंध्र के मीडिया में मची खींचतान और मीडिया में राजनीतिक पार्टियों व राजनेताओं के निवेश और गठजोड़ की पड़ताल की जाएगी। पूरा लेख लगभग 6000 शब्द का है, इसलिए तीन खंड में इसे ब्लॉग पर प्रकाशित किया जाएगा। 

सीबीआई जांच शुरू होने के समय से ही जगन रेड्डी का पलटवार रहा है कि 12 जून को आंध्र प्रदेश की 18 विधानसभा और गुंटूर लोकसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव को प्रभावित करने के उद्देश्य से वाईएसआर कांग्रेस के ख़िलाफ सत्ताधारी कांग्रेस और तेलुगूदेशम पार्टी मिली-जुली रणनीति पर काम कर रही है। जगन जब भी राजनीतिक बयान देते हैं तो कांग्रेस और तेलुगूदेशम पार्टी को एक पांत में रख देते हैं। इसकी वजह है। वजह यह है कि चूंकि कांग्रेस से बागी होकर ही जगन निकले हैं और कांग्रेस अभी सत्ता में है तो राज्य द्वारा लिए जाने वाले फ़ैसलों पर सवाल उठाने के लिए कांग्रेस को घेरना ज़रूरी है, लेकिन टीडीपी को घेरने में राजनीतिक प्रतिस्पर्धा के साथ-साथ व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा को भी वे मिला देते हैं। इसलिए टीडीपी का जिक्र करते ही इनाडु मीडिया समूह का नाम लेना वो नहीं भूलते। टीडीपी और इनाडु का एकसाथ नाम लिया जाना एक तरह से जगन के लिए नैतिक बचाव का मामला बनता है। जगन यह साबित करना चाहते हैं कि यदि वाईएसआर कांग्रेस के पास साक्षी मीडिया समूह है तो बाकी राजनीतिक दल भी किसी न किसी मीडिया के कंधे पर सवार हैं। आंध्र की राजनीति में मीडिया की भूमिका को परखने पर कई दिलचस्प तथ्य नज़र आते हैं।
वाई एस राजशेखर रेड्डी के दूसरे कार्यकाल के शपथग्रहण के समय से ही रेड्डी गुट का आरोप था कि इनाडु समूह कांग्रेस सरकार (उस समय जगन और राजशेखर रेड्डी कांग्रेस में ही थे) के ख़िलाफ़ गलतबयानी कर रहा है और इसलिए पारिवारिक सहमति के बाद इनाडु के प्रचार को काटने के लिए वाईएसआर ने अपने बेटे जगनमोहन रेड्डी के हाथ में ये ज़िम्मेदारी सौंपी कि वो मीडिया का एक ऐसा समूह विकसित करे जो रेड्डी के ख़िलाफ़ होने वाले प्रचार का काउंटर पेश करे और साथ में रेड्डी की शख्सियत और काम-काज को भी जनता के बीच चमकाए। इसके लिए उन्होंने आंध्र के बीसेक शहरों में औने-पौने दाम पर जगन को ज़मीन मुहैया कराया, नए-नवेले अख़बार को स्थापित अख़बारों के मुकाबले ज्यादा कीमत पर विज्ञापन दिया और जिस भी तरह से संभव हुआ साक्षी के पोषण में जगन का हर कदम पर साथ दिया। अगर 2 सितंबर 2009 को वाईएसआर की हेलिकॉप्टर दुर्घटना में मौत नहीं हुई होती तो साक्षी कहीं ज़्यादा बड़ा समूह होता और जगन कहीं ज़्यादा शक्तिशाली।
23 मार्च 2008 को साक्षी अख़बार की पहली प्रति छपी और पहली बार 1 मार्च 2009 को साक्षी टीवी का प्रसारण हुआ। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक प्रिंट मीडिया के वास्ते 2008-2011 के लिए राज्य सरकार के कुल 200 करोड़ रुपए के विज्ञपान बजट में से 101.63 करोड़ रुपए साक्षी के झोले में आया। यानी आधे से ज़्यादा। इसी तरह उक्त अवधि के लिए कुल 40 करोड़ रुपए के टीवी बजट में से साक्षी टीवी को 17 करोड़ रुपए हासिल हुए। सूचना और जनसंपर्क विभाग द्वारा जारी किए विज्ञापनों के अतिरिक्त साक्षी अख़बार और टीवी को राज्य के अलग-अलग एजेंसियों द्वारा भी विज्ञापन मिले। मिसाल के तौर पर एपीएसआरटीसी, एपी ट्रांसको, एपी जेंको, सिंगरैनी कोलियरीज आदि। इन एजेंसियों से मिला विज्ञापन 300 करोड़ रुपए से भी ज़्यादा का था। विज्ञापन के इस वितरण पर इनाडु और आंध्र ज्योति ने तीखे सवाल उठाए और राज्य भर में यह प्रचार किया कि राजशेखर रेड्डी ने परिवारिक उद्योग खड़ा करने के लिए सरकारी ओहदे का बेजा इस्तेमाल किया है।

साक्षी पर सीबीआई की छापेमारी और विज्ञापन बंद करने के सरकारी फ़ैसले के ख़िलाफ़ प्रदर्शन
करते पत्रकार और वाईएसआर कांग्रेस कार्यकर्ता
दैनिक संबंद बनाम त्रिपुरा राज्य के फैसले में अदालत का मानना था कि एक ही श्रेणी के अलग-अलग अख़बारों को अगर राज्य सरकार विज्ञापन देने में भेद-भाव बरतती है तो एक तरह से सरकार के इस कदम को संविधान की धारा 14 और 19 का उल्लंघन माना जाएगा। इस लिहाज से देखें तो वाईएसआर ने साक्षी को जमाने में मीडिया में एक धड़े को दबा दिया और अदालत ने अभिव्यक्ति की आज़ादी (मीडिया के संबंध में) की जो व्याख्या पेश की, उससे दूर खड़े होकर उन्होंने जगन का साथ दिया। वाईएसआर ने न सिर्फ़ साक्षी की मदद की बल्कि अपने सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी इनाडु पर लगाम कसना भी चालू किया और यही वह दौर है जब ब्लैकस्टोन ने इनाडु से अपना शेयर वापस खींचा था।
लेकिन कार्रवाई के तौर पर राज्य सरकार द्वारा इस समय साक्षी के विज्ञापन निरस्त किए जाने को बदले की भावना के तौर पर देखा जा रहा है। इसके दो पहलू हैं। पहला, बीते साल-दो साल से साक्षी ने कांग्रेस पर इनाडु और आंध्र ज्योति से भी ज़्यादा तीखे सवाल उठाने शुरू कर दिए थे। जगन की कांग्रेस हाईकमान से इस बात को लेकर नाराजगी थी कि मुख्यमंत्री के तौर पर उन्हें क्यों नहीं चुना जा रहा। कांग्रेस द्वारा दरकिनार किए जाने के बाद जगन ने वाईएसआर कांग्रेस नाम की नई पार्टी बना ली और कांग्रेस पार्टी पर हमला जारी रखा। इस वजह से सरकार की नज़र में साक्षी चुभ रहा था। दूसरा, अगर साक्षी को ज़्यादा विज्ञापन देना अदालती फैसले के मुताबिक इनाडु और आंध्र ज्योति के साथ नाइंसाफ़ी है तो साक्षी का विज्ञापन बंद किया जाना भी उसी फैसले के मुताबिक साक्षी के साथ नाइंसाफ़ी है।
ऐसा नहीं है कि इनाडु का रिकॉर्ड बहुत पाक-साफ़ है। लेकिन आंध्र के भीतर और बाहर साक्षी को लेकर पत्रकार बिरादरी में एक उफ की भावना शुरू से थी, लोगों ने देखा कि किस तरह साक्षी का साम्राज्य खड़ा हुआ है। इसलिए साक्षी के विज्ञापन बंद किए जाने के मसले पर साक्षी समूह के नौकरीपेशा पत्रकारों के अलावा गिने-चुने पत्रकार ही उसके पक्ष में उतरे, जबकि जिस समय आरबीआई एक्ट के तहत इनाडु की सिस्टर कंपनी मार्गदर्शी फाइनेंसियर्स एंड मार्गदर्शी चिट फंड जांच के दायरे में आई थी तो एन राम और कुलदीप नैयर जैसे संपादकों ने इसे मीडिया पर हमला करार देते हुए पूरे घटनाक्रम की पुरजोर निंदा की थी और अपने-अपने अख़बारों के बाहर एडिटर्स गिल्ड तक में अभियान चलाया था। ध्यान देने वाली बात यह है कि आरबीआई एक्ट के तहत इनाडु अख़बार या किसी भी तरह मीडिया पर सीधे-सीधे हाथ नहीं रखा गया था। चिट फंड कंपनी की जांच हो रही थी, लेकिन संपादकों ने इसे मीडिया पर हमला करार दिया। बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने यह फ़ैसला सुनाया कि रामोजी राव के बैंक खातों को सील किया जाना उचित नहीं है। साक्षी के खातों को जब सील किया गया तो इसके सामने मार्गदर्शी की नजीर थी। इसलिए उसे उम्मीद थी कि खातों पर लगी पाबंदी हट जाएगी। हां, साक्षी के बचाव में बड़ी संख्या में पत्रकार सामने नहीं आए। आंध्र में जो-कुछ प्रदर्शन हुआ वो सिर्फ साक्षी में ही छप कर रह गया। हालांकि हैदराबाद उच्च न्यायालय ने जगति प्रकाशन, इंदिरा टीवी और जननी इंफ्रा के खातों पर लगे प्रतिबंध को वापस लेने का फैसला सुनाया। साक्षी को राहत तो मिली, लेकिन जनसमर्थन नहीं मिला। साक्षी का अतीत ही साक्षी की बेचारगी का प्रमुख कारण है। जगनमोहन ने खुले तौर पर अपने अख़बार को मुखपत्रमें तब्दील कर दिया और अख़बार के भीतर राजनीतिक विचारधारा के स्तर पर जो न्यूनतम विविधता होनी चाहिए उसे लगभग ख़त्म कर दिया।
साक्षी जब आंध्र के 23 शहरों में उतरा तो वाईएसआर उसके सबसे बड़े हीरो थे। अख़बार की नज़र में सुपरमैन। इसी तरह चंद्र बाबू नायडू राज्य के वास्ते सबसे ग़लत इंसान। इसके ठीक उलट इनाडु की नज़र में चंद्रबाबू नायडू राज्य के तारणहार थे तो वाईएसआर प्रगति में अवरोधक। जाहिर है सबका अपना-अपना मीडिया था और अपनी-अपनी ख़बर। 2009 के आम चुनाव में साक्षी टीवी ने एनटी रामाराव की एक वीडियो फुटेज को बार-बार दिखाया जिसमें वो अपने दामाद चंद्र बाबू नायडू की आलोचना कर रहे थे। साक्षी अख़बार और टीवी ने पूरे चुनाव के दौरान वाईएसआर के मुखपत्र के तौर पर काम किया और इसी वजह से साक्षी को चुनाव आयोग की तरफ़ से नोटिस भी भेजा गया, जिसमें कांग्रेस और वाईएसआर की कुछ कवरेज को पेड न्यूज़ की श्रेणी में रखते हुए साक्षी से सवाल किया था। विरोधी पार्टियों ने चुनाव आयोग से इस बाबत कार्रवाई करने की अपील की थी। टीडीपी ने प्रेस काउंसिल के अध्यक्ष को चिट्ठी भी लिखी कि साक्षी का रवैया नायडू और उनकी पार्टी को लेकर भेदभाव का रहता है और इस तरह मीडिया में मिली अभिव्यक्ति की आज़ादी का इस्तेमाल किसी व्यक्ति विशेष पर निशाना साधने में हो रहा है।
लेकिन शिकायत सिर्फ़ एक पक्ष से नहीं हो रही थी। जगन मोहन की पार्टी ने भी चुनाव आयोग से शिकायत की कि आंध्र प्रदेश में इनाडु, टीवी9, एबीएन (आंध्र ज्योति का टीवी चैनल) और स्टूडियो एन (चंद्रबाबू नायडू के परिवार द्वारा संचालित) पेड न्यूज़ में मशगूल हैं। जगन ने आरोप लगाया कि ये सभी मीडिया समूह सिर्फ़ टीडीपी उम्मीदवारों के जुलूस को ही प्रमुखता से उभार रहे हैं, इसलिए जो ख़बरें छपती हैं या प्रसारित होती हैं उनके ख़र्चे को टीडीपी उम्मीदवारों की खर्च सूची में जोड़ा जाना चाहिए। इस तरह जगन और रामोजी राव (इनाडु के मालिक) के बीच का हिसाब बराबर हो गया। आंध्र प्रदेश में पेड न्यूज़ की चर्चा बीते 5 साल से बेहद गरम है। कई रूपों में और कई शहरों में। आंध्र के कुछ मीडिया समीक्षकों का ये मानना है कि संयोग, जगन का भाग्य या फिर पूर्व निर्धारित योजना में से जो भी हो लेकिन पिछले चुनाव में अख़बारों और टीवी चैनलों पर पंखे के विज्ञापन में बेतहाशा वृद्धि देखी गई। ओरिएंट, खेतान जैसी नामी कंपनियों अलावा कई गुमनाम और लोकल टाइप की पंखा कंपनियों के विज्ञापन से साक्षी सहित वो सारे अख़बार पटे हुए थे, जिनपर जगन का आरोप होता है कि वो उनके ख़िलाफ़ खड़े हैं। इस तरह गर्मी में चुनाव होने से जगनमोहन रेड्डी का चुनाव चिह्न पंखा लोगों की नज़रों में हर अख़बार और टीवी के जरिए छाया रहा। कडप्पा में पंखे ही पंखे दिख रहे थे। सड़क पर, होर्डिंग्स में, पर्चों में, जगन के विज्ञापन में और पंखा कंपनियों की विज्ञापन में। क्या साक्षी, क्या इनाडु पंखा के मामले में सब एक थे।

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