-दिलीप ख़ान
मैंने उम्मीद की थी
कि यही कोई सौ-दो सौ लोग जुटेंगे, लेकिन इंडिया गेट पर शाम के सात बजते-बजते
सात-आठ सौ लोग इकट्ठा हो चुके थे और आधे घंटे के भीतर लखनऊ और बाकी जगहों से आने
वाले लोग भी इसमें शामिल हो गए। जुलूस जब घूमकर गेट के ठीक सामने पहुंचा तो मैंने
अनुमान लगाया कि दो हज़ार से ज़्यादा लोग सैयद मोहम्मद अहमद काज़मी की गिरफ़्तारी
के ख़िलाफ़ नारे लगा रहे थे। छोटे वाले लाउडस्पीकर, जोकि बीच में काम करना बंद कर
दिया, के सहारे बारी-बारी से लोगों को संबोधित करने वाले नेता, बुद्धिजीवी,
सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार जब लोगों से मुखातिब हो रहे थे तो इसके समानांतर
अलग-अलग कोनों में अमरीका मुर्दाबाद और इज़रायल मुर्दाबाद के नारे भी साथ-साथ अपनी
उपस्थिति दिखा रहे थे। कह लीजिए कि लोगों के भीतर आक्रोश को साफ़ पढ़ा जा सकता था।
एकदम बीच में बैठकर या किनारे खड़े होकर। असर बराबर का पड़ रहा था।
जामिया मिलिया
इस्लामिया में पढ़ाई कर रहे खुर्शीद अंसारी के चेहरे पर आक्रोश और पीड़ा का
मिला-जुला भाव था, ‘‘देश में किसी भी घटना के बाद मुसलमानों को
उठाकर ये साबित क्या करना चाहते हैं? कई ऐसे वारदात हैं
जिसमें आतंक [वादी]
के नाम पर पकड़े गए लोग बाद में बेकसूर साबित हुए। मालेगांव से लेकर अभी हाल में
रिहा हुए मो. आमिर तक का नाम इस कड़ी में गिनाया जा सकता है, लेकिन जो नया ट्रेंड
देखने को मिल रहा है वो ये कि अब हाई-प्रोफाइल लोगों को गिरफ़्तार कर पूरी कौम के
भीतर ख़ौफ़ को और गहरा किया जा रहा है।’’
इंडिया गेट पर काज़मी के समर्थन में प्रदर्शन करते लोग |
हाल के महीनों में
आतंकवादी के नाम पर गिरफ़्तार हुए लोगों के छूटने से लोगों के भीतर संघर्ष और
लड़ाई का भाव ज़्यादा मज़बूत हुआ है। ऐसी गिरफ़्तारियों से भारतीय राज्य का
सांप्रदायिक चेहरा तो उभर कर सामने आया ही है साथ ही इसने सांप्रदायिकता को दो
स्तर पर मज़बूत करने का भी काम किया है। पहला, हर दाढी-टोपी वाले लोगों को
गैर-मुस्लिम धार्मिक लोगों के बीच शक की निगाह से देखा जा रहा है और प्रगतिशील
बनते-बनते चूक जाने वाले लोग ये सवाल उठाते फिरते हैं कि अगर मुस्लिम कौम ठीक-ठाक
है तो आखिरकार क्यों तकरीबन हर केस में मुसलमान ही गिरफ़्तार होते हैं। दूसरा, ऐसी
हर गिरफ़्तारी के बाद पूरे मुस्लिम समुदाय में धर्म के नाम पर एकजुट होने की
संभावना लगातार बढ़ती जाती है। इंडिया गेट पर काज़मी की रिहाई की मांग करने वाले
लोगों को भी दो अलग-अलग खांचों में बांटकर साफ़ देखा जा सकता है। एक तो वे थे जो
धर्मनिरपेक्ष, तरक्कीपसंद, फ़ासीवाद-विरोधी और राजकीय दमन के ख़िलाफ़ बोलने में
यक़ीन करते हैं। दूसरे वो थे, जो काज़मी की गिरफ़्तारी को धर्म की ज़मीन पर खड़े
होकर देख रहे थे और इस तरह धार्मिक गोलबंदी के जरिए सरकार पर दबाव बनाने की तैयारी
में हैं।
इमाम बुखारी के
बेटे ने इंडिया गेट से आवाज़ लगाई कि यदि काज़मी को जल्द ही नहीं छोड़ा जाता है तो
देश भर के मुसलमान इस सवाल पर प्रदर्शन करेंगे और जामा मस्जिद से इसकी नई शुरुआत
होगी। दूरदर्शन और ईरानी रेडियो सहित कई जगहों पर काम कर चुके एम.ए. काज़मी की
गिरफ़्तारी को लेकर पुलिस ने जो वजहें बताईं हैं वो बेहद कमज़ोर है। पुलिस के
मुताबिक काज़मी के घर से ‘लावारिस’ स्कूटी बरामद हुई है। परिवार वालों का कहना है कि वो स्कूटी काज़मी के
भाई की है और उनके यहां साल भर से पड़ी हुई थी। पुलिस ने जो दूसरी वजह बताई है वो
ये कि काज़मी के नंबर से ईरान फोन किया गया। काज़मी इराक युद्ध कवर करने के अलावा
ईरानी रेडियो के लिए काम कर चुके हैं तो जाहिर है कि उस इलाके में वो लगातार बात
करते रहते हैं। तीसरा तर्क पुलिस का ये है कि काज़मी ने बम फोड़ने वाले को अपने घर
में शरण दी है। पुलिस का सबसे हास्यास्पद तर्क यही है क्योंकि अब तक बम फोड़ने
वाले शख्स की न तो शिनाख्त हुई है और न ही उसके बारे में कुछ भी स्पष्ट विवरण ही
पुलिस दे पाई है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि जब बम फोड़ने वाले का ही
पता नहीं है तो उसको शरण देने वाले को किस बिनाह पर गिरफ़्तार किया गया। ये कुछ उस
तरह की कवायद है गोया टायर हाथ लगने की वजह से कोई साईकिल खरीदने की सोचे!
राज्यसभा सांसद मो. अदीब ने ये आश्वासन दिया है
कि वो संसद के भीतर इस सवाल को उठाएंगे और पूरी कोशिश करेंगे कि काज़मी को पूरे
सम्मान के साथ रिहा किया जाए। इससे दो दिन पहले 100 से ज़्यादा पत्रकारों और
समाजिक कार्यकर्ताओं ने काज़मी की गिरफ्तारी की भर्त्सना की। प्रधानमंत्री मनमोहन
सिंह, सोनिया गांधी सहित कई नेताओं को भी चिट्ठी लिखी गई है। जर्नलिस्ट यूनियन फॉर
सिविल सोसाइटी ने काज़मी को तत्काल रिहा करने और मामले की जांच कराने की अपील की
है। इंडिया गेट पर लोगों के भीतर जिस तरह की बातचीत चल रही थी और नारों का जो शक्ल
था उससे ये साफ़ लग रहा था कि मुस्लिमों को ज़्यादा लंबे समय तक वोट का स्रोत मानने
वाली पार्टियों से उनका मन बिल्कुल उखड़ा हुआ है कि मुस्लिम अब देश के भीतर
आतंकवाद के नाम पर हो रही फ़र्ज़ी गिरफ़्तारियों के प्रति न सिर्फ़ सतर्क हो रहे
हैं बल्कि एक सूत्र में ये आपस में बंध भी रहे हैं कि अमरीका के ‘वार ऑन टेरर’, नाटो के ‘रेसपांसिबिलिटी
टू प्रोटेक्ट’ और इज़रायल की इराक़-ईरान विरोधी नीतियों
को न सिर्फ यहां के मुसलमान समझ रहे हैं बल्कि वैश्विक मामलों में खुद को ग्लोबल
आइडेंटिटी के बतौर भी देख रहे हैं।
काज़मी की
गिरफ़्तारी कई मायनों में नई किस्म की है और आतंकवाद को लेकर देश (दुनिया) के खुफिया
विभाग के नए प्रचलन की तरफ़ भी इशारा कर रही है। पाकिस्तान और बांग्लादेश में
हेडक्वार्टर रखने वाले आतंकी संगठनों के साथ पहले ही कई भारतीयों के नाम नत्थी किए
जा चुके हैं। आंतरिक आतंकवादी वाला फॉर्मूला भी बीते कई सालों से चल रहा है लेकिन
ये पहला वाकया है जब सीधे-सीधे ईरान और अरब के साथ ‘भारतीय
आतंकवाद’ का लिंक जोड़ा जा रहा है। इस मामले में काज़मी की
गिरफ़्तारी का जितना असर भारत के लोगों पर पड़ेगा उससे ज़्यादा असर ईरान पर पड़ने
वाला है।
मुझे ठीक-ठीक याद
है कि इज़रायली दूतावास के सामने हुए बम विस्फ़ोट के बाद और गिरफ़्तीर से पहले जब
राज्यसभा टीवी के लिए हमने एमए काज़मी को ‘मीडिया और आतंकवाद’ पर बात करने बुलाया था तो शो रिकॉर्ड होने के बाद मुझसे बातचीत करते हुए
वो भी आतंकवाद के नाम पर होने वाली गिरफ़्तारियों को ईरान की तरफ़ शिफ्ट करने को
लेकर इशारा कर रहे थे। उस समय मैंने दूर-दूर तक ये कयास नहीं लगाया था कि जिस
व्यक्ति से इज़रायली दूतावास के सामने हुए बम विस्फ़ोट पर मैं बात कर रहा हूं उसी
को हफ़्ते भर बाद उसी मामले के साजिशकर्ता के तौर पर गिरफ़्तार कर लिया जाएगा! मैं काज़मी की समझदारी का कायल हूं और जिस मामले को लेकर उनकी
गिरफ़्तारी हुई है उसके नाकाफ़ी, अस्पष्ट और फ़र्ज़ी सबूतों की वजह से इस बात की
संभावना और ज़्यादा देख रहा हूं कि इफ़्तिख़ार गिलानी की तरह काज़मी भी जल्द ही
रिहा होंगे। सांसद मो. अदीब ने जुलूस में लोगों के सामने भारतीय राज्य की बर्बरता
पर टिप्पणी करते हुए कहा, ‘जब काज़मी जैसे लोग
पकड़े जा सकते हैं तो समझ लीजिए कि हमे और आपको कभी भी पकड़ कर जेल में ठूंसा जा
सकता है।’
आतंकवाद को लेकर
दुनिया भर में वैश्विक राजनीति का चेहरा देश के लोगों और ख़ासकर मुसलमानों के बीच
अब उघड़ने लगा है और यही वजह है कि इंडिया गेट पर जो नारे सबसे तेज़ आवाज़ में
सबसे ज़्यादा बार लगाए जा रहे थे वो थे- अमेरिका मुर्दाबाद, इज़रायल मुर्दाबाद और
विदेशी इशारों पर देश चलाना बंद करो।
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