-इलीना सेन, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा में स्त्री अध्ययन विभाग में प्रोफ़ेसर.
इन दिनों सामान्य बातचीत और आम सामाजिक जीवन में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का महत्व बहुत अधिक हो गया है. निम्न साक्षरता और कम शिक्षा स्तर वाले इस देश में सूचना प्रौद्योगिकी तक तेज पहुंच (रिपोर्ट बताती है कि प्रति १००० लोगों पर संडास की तुलना में मोबाइल फ़ोन अधिक हैं) और स्वस्थ मनोरंजन के साधनों तक पहुंच की कमी के बीच, इस बात से हमें हैरान नहीं होना चाहिए. इसमें एक तरफ़ तो बॉलीवुड से थोक के
भाव में निकलने वाली फ़िल्मों और धारावाहिकों में स्त्री शरीर को अंधाधुंध तरीके से वस्तु की तरह नुमाया किया जाता है, दूसरी तरफ़ दोपहर बाद और देर शाम के सोप ओपेरा में महिला किरदारों को ’अत्यधिक पारंपरिक’ परिधानों में प्रस्तुत किया जाता है. इसमें चटक लाल सिंदूर की रेखा महिलाओं के ललाट से लेकर बीच खोपड़ी तक खिंची रहती है. महिला किरदारों की इस छवि को आम तौर पर अत्यधिक अधीन, दूसरों पर निर्भर और आत्मविश्वास की पूर्ण कमी से लिपटे लबादे में प्रस्तुत किया जाता है. इन कार्यक्रमों के निर्माता यह कहते फिरते हैं कि स्त्रीत्व की ’भारतीय’ परंपरा को सहेजने के प्रति उनका यह अंशदान है. कुछ इस तरह गोया हिमालय की अडिग गौरव को वे सहेज रहे हो. भूमंडलीकरण की वजह से हुए परिवर्तनों की दिशाहीन तरीके से कोरा नकल मारते दसियों लाख लोग इसके प्रति आश्वस्त हो जाते हैं.
इन कपटी सुरक्षा को हासिल करने के प्रयास पूरी तरह परिणामहीन नहीं होते. निर्धन शहरी झोपड़पट्टियों में टीवी और फ़िल्म के किसी किरदार की तरह एक युवती के पहनावे और व्यवहार को आज कोई भी देख सकता है. हालांकि इन्हीं झोपड़पट्टियों में कोई भी व्यक्ति वे सारी चीज़ें भी देख सकता हैं जो भारतीय महिलाओं की भारतीय बिरासत की वास्तविक स्थितियों को बयां करते हैं. पानी भरने के लिए सामुदायिक जल स्रोत के पास
कतारबद्ध होने, पानी से भरे कई बरतनों को लादकर घर तक लाने, बीपीएल से मिलने वाले राशन की उपलब्धता और बकाया भुगतानों की जांच करने, बच्चों की देखभाल करने से लेकर बेहद कम दर मे बाहरी घरों में असुरक्षित-सा काम करने जैसे रोजमर्रा के जीवन का अंग बनी कठोर शारीरिक मेहनत के अतिरिक्त महिलाओं को अपने पतियों द्वारा छोड़े जाने से लेकर रोज़-रोज़ अपने शराबी पतियों से शारीरिक मार का भी सामना करना पड़ता है. पिछले दशक में भारतीय अर्थव्यवस्था की रोज़गारविहीन वृद्धि (भूमंडलीकरण का एक उत्पाद) का कई विश्लेषकों ने दस्तावेज़ीकरण किया है. २००९-१० के संबंध में नेशनल सैंपल सर्वे के आंकड़े यह दिखाते हैं कि मज़दूर भागीदारी ४२ फ़ीसदी से घटकर ३९ फ़ीसदी पर आ गई है. इससे यह साबित होता है कि शाइनिंग इंडिया की जीडीपी की चमत्कारिक उपलब्धि सेवा और वित्तीय सेक्टर पर आधारित है. ग़रीबी, अनिश्चितता और बिखरे परिवारों से भारत के ग्रामीण और शहरी दोनों इलाके इक्कीसवीं सदी में भी अटे पड़े हैं. भारत दुनिया में सबसे ज़्यादा मातृत्व और शिशु मृत्यु दर वाले देशों में से एक है. बाल कुपोषण लगातार चोटी पर बरकरार है अल्पपोषित महिलाएं मुसलसल अल्पवज़नी बच्चों को जन्म दे रही हैं. जीवन की घोर अनिश्चितताओं और पारिवारिक जिम्मेवारियों, जिनसे महिलाएं तकरीबन नहीं बच पातीं, की वजह से संपत्तिविहीन घरों से वे मेट्रोपोलिटन का रुख करती हैं. आगामी संतति के लिए इन महिलाओं के जीवन और संघर्षों को बैबी हलदार जैसी महिलाओं ने अपनी लेखनी से सुरक्षित किया है. और निश्चित तौर पर इन महिलाओं की मेहनत और पसीनों के बगैर कुलांचे भरता भारतीय मध्यवर्ग उस स्थिति में नहीं होता जहां आज वह खड़ा है.
दिल्ली जैसे तमाम बड़े शहर इसके गवाह हैं. वैश्विक यातायात की संभावना बनने के बाद मंदी और संकट की इस घड़ी में कुछ महिलाएं समृद्ध खाड़ी देशों अथवा अन्य विदेशी देशों में काम की तलाश में रहती हैं. वे वहां पर धनाढ्य भारतवंशियों और विदेशियों के पास घरेलू देखरेख का काम देखती हैं. समय-समय पर इन महिलाओं की दयनीय जीवन और खस्ताहाल स्थितियों की कहानियां लोगों के बीच उजागर होती रहती हैं. इन महिलाओं की पीड़ा उसी रूप में घर पहुंचती रहती है जिस तरह रिज़ाना नफ़ीक की दारुण कथा हमारे बीच पहुंची थी. हालांकि वह भारतीय नहीं है, फिर भी उसकी कहानी दुबई और बैंकॉक हवाई अड्डे के जरिए काम करने के लिए सीमापार पहुंचने को हाथ-पैर मारती दसियों लाख भारतीय युवतियों में से किसी की भी हो सकती है, जो इस उम्मीद में उड़ान भरती है कि वे अपने परिवार वालों को कुछ पैसे घर भेज सके. रिज़ाना नफ़ीक एक श्रीलंकाई युवती थी, जोकि घरेलू नौकरानी का काम करने के उद्देश्य से सऊदी अरब गई थी. २००५ में १७ वर्ष की उम्र में नफ़ीक पर अपने सऊदी मालिक के नवजात शिशु की हत्या करने का आरोप लगाया गया. इस घटना को बच्चे के माता-पिता में से किसी ने भी नहीं देखा था, तो भी
तथाकथित ’स्वीकारोक्ति’ के बाद उस पर मुकदमा चलाया गया, उसे पीटा गया, दोषी क़रार दिया गया और अंततः सऊदी अधिकारियों द्वारा उसे बख्शीश में मौत की सजा सुनाई गई. वह आज भी सऊदी की जेल में उस दिन की बाट जोह रही है जब सार्वजनिक तौर पर उसका सर धड़ से अलग कर दिया जाएगा.इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में दिखने वाली चमकदार परंपरा से लिपटी भारतीय महिलाओं की दुनिया और हमारे देश की अधिसंख्य महिलाओं की दुनिया निश्चित तौर पर दो अलग-अलग छोर हैं. कठोर मेहनत करने वाली महिलाएं इसमें एक छोर पर भूमंडलीकरण के उबलते बरतन में पिघल रही है. पारंपरिक जीवनयापन की सुरक्षा, समुदाय और पारिवारिक सौहार्द्रता के बग़ैर भूमंडलीकरण से पैदा हुई स्थिति में हरे-थके घुड़सवार सेना की तरह वे इसमें शामिल हो गई हैं और भूमंडलीकरण से जन्में नए अवसरों का लाभ उठाने की कोशिश में शिद्दत से लगी हुई हैं. इस प्रक्रिया में उनकी पितृसत्तात्मक हिंसा से, लंबे समय में जम चुकी कानून व्यवस्था की हिंसा से और जातीय तथा वर्गीय स्थिति की वजह से होने वाली हिंसा से मुठभेड़ होती है. जब बाज़ार की ताक़त आधे कपड़े पहने महिलाओं को जूते बेचते दिखाती है तो वे पितृसत्ता में गहरे स्तर तक जड़ जमाए हुए महिला शरीर के प्रति घृणा को भुना रही होती है. जिस समय व्यावसायिक फ़िल्मों और टेलीविज़न के जरिए महिलाओं को अपने हाल पर स्थिर रखने वाली परंपरा की तगड़ी खुराक भारतीय दर्शकों की थाल में परोसी जाती है, उसी वक़्त यही पितृसत्ता उन्हें एक वैचारिक पिंजरे में कैद कर देना चाहती है, जोकि अब तक ऐतिहासिक तौर पर पितृसत्तात्मक सांस्कृतिक मूल्यों को हस्तांतरित करने में सहायक साबित हुई है. इस नकली ’भारतीयता’ में कुछ भी खास भारतीय नहीं हैं. दूसरे सांस्कृतिक मुहावरे में इसी प्रक्रिया को दूसरी भाषा में बताया जा सकता है. भारतीय महिलाओं के लिए सामाजिक न्याय के साथ इस मामले को जोड़कर देखने वाले हम जैसे लोग इसे इस रूप में लेते हैं कि भारतीय होने के लिए इसकी किस दुनिया और किस सच्चाई के साथ पहचान की जाती है. --- (हिंदी अनुवाद: दिलीप ख़ान)
[url=http://lambada.com]llambada[/url]
जवाब देंहटाएंmoderowany katalog www moderowany katalog stron internetowych [URL=http://www.p.kwiaciarniaczestochowa.eu/internet/katalogi-stron/ogolnotematyczny-katalog-stron-s431.html ]katalog stron[/URL] internetowy katalog stron moderowany katalog stron www katalog stron moderowany katalog stron www [URL=http://www.heke.pl/internet-i-komputery/moderowany-katalog-stron-internetowych,s,204/ ]seo katalog[/URL] katalog seo seo katalog moderowany katalog www moderowany katalog stron [URL=http://katalog.wplab.pl/komputer,internet/moderowany,katalog,stron,s,365/ ]przyjazny katalog stron www[/URL] katalog stron katalog seo przyjazny katalog stron www internetowy katalog stron [URL=http://www.forast.pl/internet,i,komputery/moderowany,katalog,www,s,4717/ ]moderowany katalog stron seo[/URL] katalog seo moderowany katalog stron www internetowy katalog stron katalog seo [URL=http://www.techniczny.us/internet-i-komputery/moderowany-katalog-stron-seo,wwws,3435/ ]katalog stron www[/URL] moderowany katalog stron www moderowany katalog stron moderowany katalog stron internetowych katalog seo [URL=http://www.e-car4you.pl/firmy,wg,branz/katalog,seo,s,570.html ]moderowany katalog stron www[/URL] internetowy katalog stron internetowy katalog stron katalog stron www moderowany katalog stron seo [URL=http://www.nieruchomosci-mazowieckie.net/internet,i,komputery/seo,katalog,stron,s,1708/ ]katalog stron www[/URL] seo katalog stron seo katalog stron moderowany katalog stron moderowany katalog stron seo [URL=http://www.ojejyou.eu/firmy-wg-branz/katalog-stron-www-s-3740.html ]katalog seo[/URL] seo katalog katalog stron katalog seo katalog stron [URL=http://www.fastseo.pl/internet,i,komputery/internetowy,katalog,stron,s,836/ ]moderowany katalog stron[/URL] moderowany katalog stron seo moderowany katalog stron moderowany katalog www seo katalog stron [URL=http://seocat.pl/internet,i,komputery/moderowany,katalog,stron,internetowych,s,18003/ ]moderowany katalog stron seo[/URL] moderowany katalog stron seo moderowany katalog stron www seo katalog stron moderowany katalog www
जवाब देंहटाएं