छत्तीसगढ़ पुलिस की तरफ से घोषित किये गये माओवादी मास्टरमाइंड लिंगाराम कोडोपी ने खुद को बेगुनाह बताया है। नम आंखों के साथ दिल्ली के प्रेस क्लब में एक प्रेस कानफ्रेंस में लिंगाराम ने कहा कि वो बेगुनाह हैं और उनका कांग्रेस नेता अवधेश सिंह गौतम के घर पर हुए हमले से कोई लेना-देना नहीं है। लिंगाराम नोएडा के इंटरनेशनल मीडिया इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया से पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहे हैं और उनके मुताबिक मई के बाद से वो एनसीआर छोड़ कर कहीं नहीं गये।
एक दिन पहले छत्तीसगढ़ में दंतेवाड़ा के एसएसपी एसआरपी कल्लुरी ने दावा किया था कि छह जुलाई को कांग्रेस नेता के घर पर हुए हमले का मास्टरमाइंड लिंगाराम कोडोपी है। पुलिस ने यह भी दावा किया था कि कोडोपी के रिश्ते अरुंधती रॉय, मेधा पाटकर, हिमांशु कुमार और नंदिनी सुंदर से है। कल्लुरी के उस दावे के बाद सोमवार को लिंगाराम कोडोपी की यह प्रेस कानफ्रेंस हुई। कोडोपी के साथ मानवाधिकार की आवाज़ बुलंद करने वाले जाने-माने वकील प्रशांत भूषण और सामाजिक कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेश थे।
पत्रकारों से बात करते हुए लिंगाराम के आंसू निकल गये। उन्होंने बताया कि उनका माओवादियों से कोई लेना-देना नहीं है। पुलिस बस उन्हें परेशान कर रही है। उनका उत्पीड़न कर रही है। पिछले साल सितंबर में पुलिस ने उन्हें उनके गांव से बिना बात उठा लिया और 40 दिन तक हिरासत में रखा। पुलिसवाले उन्हें जबरन स्पेशल पुलिस ऑफिसर बनाना चाहते थे। और उन्हें तब छोड़ा गया घरवालों ने बिलासपुर हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। लिंगाराम के वकील ने कहा कि उन्हें पूछताछ से इनकार नहीं है, लेकिन उत्पीड़न नहीं होना चाहिए। लिंगाराम ने कहा कि वो माओवादी नहीं है और इस आरोप में पुलिस का उत्पीड़न झेलने की बजाय वो मर जाना पसंद करेंगे।
प्रोफेसर नंदिनी सुंदर ने कहा है कि वो पुलिस के ख़िलाफ़ मानहानि का मुकदमा करने का मन बना रही हैं। यह पुलिसिया रवैया बेहद अपमानजनक और ख़तरनाक है। इस बीच छत्तीसगढ़ के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) विश्वरंजन ने कहा है कि जांच खुफिया जानकारियों के आधार पर चल रही है और एक मुखबिर ने उन्हें जो सूचना दी, उसी के आधार पर एसएसपी कल्लुरी ने बयान दिया था। उन्होंने कहा कि लिंगाराम की गिरफ्तारी बिना पूछताछ के नहीं होगी। किसी सबूत के आधार पर नहीं होगी।
एक दिन पहले छत्तीसगढ़ में दंतेवाड़ा के एसएसपी एसआरपी कल्लुरी ने दावा किया था कि छह जुलाई को कांग्रेस नेता के घर पर हुए हमले का मास्टरमाइंड लिंगाराम कोडोपी है। पुलिस ने यह भी दावा किया था कि कोडोपी के रिश्ते अरुंधती रॉय, मेधा पाटकर, हिमांशु कुमार और नंदिनी सुंदर से है। कल्लुरी के उस दावे के बाद सोमवार को लिंगाराम कोडोपी की यह प्रेस कानफ्रेंस हुई। कोडोपी के साथ मानवाधिकार की आवाज़ बुलंद करने वाले जाने-माने वकील प्रशांत भूषण और सामाजिक कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेश थे।
पत्रकारों से बात करते हुए लिंगाराम के आंसू निकल गये। उन्होंने बताया कि उनका माओवादियों से कोई लेना-देना नहीं है। पुलिस बस उन्हें परेशान कर रही है। उनका उत्पीड़न कर रही है। पिछले साल सितंबर में पुलिस ने उन्हें उनके गांव से बिना बात उठा लिया और 40 दिन तक हिरासत में रखा। पुलिसवाले उन्हें जबरन स्पेशल पुलिस ऑफिसर बनाना चाहते थे। और उन्हें तब छोड़ा गया घरवालों ने बिलासपुर हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। लिंगाराम के वकील ने कहा कि उन्हें पूछताछ से इनकार नहीं है, लेकिन उत्पीड़न नहीं होना चाहिए। लिंगाराम ने कहा कि वो माओवादी नहीं है और इस आरोप में पुलिस का उत्पीड़न झेलने की बजाय वो मर जाना पसंद करेंगे।
प्रोफेसर नंदिनी सुंदर ने कहा है कि वो पुलिस के ख़िलाफ़ मानहानि का मुकदमा करने का मन बना रही हैं। यह पुलिसिया रवैया बेहद अपमानजनक और ख़तरनाक है। इस बीच छत्तीसगढ़ के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) विश्वरंजन ने कहा है कि जांच खुफिया जानकारियों के आधार पर चल रही है और एक मुखबिर ने उन्हें जो सूचना दी, उसी के आधार पर एसएसपी कल्लुरी ने बयान दिया था। उन्होंने कहा कि लिंगाराम की गिरफ्तारी बिना पूछताछ के नहीं होगी। किसी सबूत के आधार पर नहीं होगी।
अरुंधती और मेधा के ख़िलाफ भूमिका बना रही है पुलिस
अगर यह खबर सही है तो छत्तीसगढ़ पुलिस एक बेहद खतरनाक साजिश रच रही है। यह साजिश है मानवाधिकार की आवाज उठाने वाले लोगों की ईमानदारी और नीयत पर सवाल उठा कर उन्हें फंसाने की। इंडियन एक्सप्रेस की खबर और पीटीआई की तरफ से जारी रिपोर्ट के मुताबिक छत्तीसगढ़ पुलिस ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की है। इस प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि छह जुलाई को बस्तर में कांग्रेस नेता के घर पर हुए हमले की साजिश रचने वाले शख्स का अरुंधती रॉय, मेधा पाटकर और गांधीवादी तरीके में यकीन रखने वाले एनजीओ वनवासी चेतना आश्रम के हिमांशु कुमार से रिश्ता है। इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक पुलिस की तरफ से भेजे गये बिना हस्ताक्षर वाली प्रेस रिलीज में दावा किया गया है कि कांग्रेस नेता अवधेश गौतम के घर पर हमले की साजिश लिंगाराम को़डोपी में रची थी। को़डोपी दिल्ली और गुजरात में आतंकी गतिविधियों की ट्रेनिंग ले चुका है। माओवादी नेता चेरुकरी राजकुमार उर्फ आजाद के मारे जाने के बाद को़डोपी को छत्तीसगढ़ का प्रभारी बना दिया गया है।
सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने पुलिस के इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है। उनका कहना है कि छत्तीसगढ़ में बहुत से लिंगाराम हैं और वो नहीं जानती की पुलिस किसकी बात कर रही है। उन्होंने कहा कि पुलिस के आरोप फर्जी हैं और उनमें कोई दम नहीं है।
यह पहला मौका नहीं है जब छत्तीसगढ़ पुलिस ने मानवाधिकार की आवाज उठाने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं पर निशाना साधा है। इससे पहले भी पुलिस के आला अधिकारी अरुंधती रॉय और हिमांशु कुमार पर नक्सलियों से साठगांठ के आरोप लगाते रहे हैं। लेकिन अब उन्होंने मेधा पाटकर को भी इसमें लपेट लिया है। मतलब साफ है… जो भी नक्सलवाद के खिलाफ चल रहे अभियान में पुलिस और प्रशासन के साथ नहीं है, बारी-बारी उन सभी के खिलाफ कार्रवाई की भूमिका तैयार की जा रही है।
अगर यह खबर सही है तो छत्तीसगढ़ पुलिस एक बेहद खतरनाक साजिश रच रही है। यह साजिश है मानवाधिकार की आवाज उठाने वाले लोगों की ईमानदारी और नीयत पर सवाल उठा कर उन्हें फंसाने की। इंडियन एक्सप्रेस की खबर और पीटीआई की तरफ से जारी रिपोर्ट के मुताबिक छत्तीसगढ़ पुलिस ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की है। इस प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि छह जुलाई को बस्तर में कांग्रेस नेता के घर पर हुए हमले की साजिश रचने वाले शख्स का अरुंधती रॉय, मेधा पाटकर और गांधीवादी तरीके में यकीन रखने वाले एनजीओ वनवासी चेतना आश्रम के हिमांशु कुमार से रिश्ता है। इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक पुलिस की तरफ से भेजे गये बिना हस्ताक्षर वाली प्रेस रिलीज में दावा किया गया है कि कांग्रेस नेता अवधेश गौतम के घर पर हमले की साजिश लिंगाराम को़डोपी में रची थी। को़डोपी दिल्ली और गुजरात में आतंकी गतिविधियों की ट्रेनिंग ले चुका है। माओवादी नेता चेरुकरी राजकुमार उर्फ आजाद के मारे जाने के बाद को़डोपी को छत्तीसगढ़ का प्रभारी बना दिया गया है।
सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने पुलिस के इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है। उनका कहना है कि छत्तीसगढ़ में बहुत से लिंगाराम हैं और वो नहीं जानती की पुलिस किसकी बात कर रही है। उन्होंने कहा कि पुलिस के आरोप फर्जी हैं और उनमें कोई दम नहीं है।
यह पहला मौका नहीं है जब छत्तीसगढ़ पुलिस ने मानवाधिकार की आवाज उठाने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं पर निशाना साधा है। इससे पहले भी पुलिस के आला अधिकारी अरुंधती रॉय और हिमांशु कुमार पर नक्सलियों से साठगांठ के आरोप लगाते रहे हैं। लेकिन अब उन्होंने मेधा पाटकर को भी इसमें लपेट लिया है। मतलब साफ है… जो भी नक्सलवाद के खिलाफ चल रहे अभियान में पुलिस और प्रशासन के साथ नहीं है, बारी-बारी उन सभी के खिलाफ कार्रवाई की भूमिका तैयार की जा रही है।
mohalla live se.
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