11 जून 2010

लोकतंत्र में जाति का सवाल

चन्द्रिका
२०११ की जनगणना में जाति गिनाने का सवाल आरक्षण के सवाल से जुड़ा हुआ नहीं है. उच्चतम न्यायालय ने आरक्षण को लेकर ५० प्रतिशत का जो मानक तैयार किया था वह ४९.५ प्रतिशत के साथ लगभग पूरा हो चुका है, लिहाजा जनगणना में अब जाति गिनवाने से जो अहम फायदा पहुंचने वाला है, वह देश में चुनाव लड़ने वाली पार्टीयों को. वह भी इस रूप में कि इसी आधार पर ये पार्टीयां अपने वोट बैंक और जाति आधारित प्रतिनिधियों का खाका तैयार कर सकेंगी. आखिर देश के लोकतांत्रीकरण के कार्यक्रम में वे कौन से तत्व छूट गये कि ६३ वर्षों बाद भी देश की तस्वीर में जातिवीहीन समाज बनाने की कोई स्पष्ट रूपरेखा अभी तक नहीं दिखती. देश के संस्थानों में आरक्षण लागू होने के बाद समाज में व्याप्त जो जातिबोध था वह कम नहीं हुआ. आरक्षण ने निश्चित तौर पर संस्थानों में जो जातीय वर्चस्व था उसे कम किया है, पर विभेद कम-ओ-बेस अभी भी उसी रूप में बरकरार हैं. एक व्यक्ति जो जातीय समाज में जी रहा है वह जब घर से अलग एक संस्थान में कार्य करने के लिये किसी पद पर आसीन होता है तो वह क्या है जो उसे पदासीन होते ही जाति मानसिकता से मुक्त कर देता है, दरअसल, ऐसा होता नहीं. वास्तविक स्थितियाँ यह हैं कि देश के संस्थानों में पदों पर लोग नहीं काम करते बल्कि जातियां ही उस पद की कार्यवाहियों को पूरा करती हैं. किसी संस्थान के दफ्तर में चले जाइये सवर्ण जातियाँ, उपनाम के तौर पर गौरवान्वित होकर गूंजती रहती हैं. भले ही संस्थानों में सभी जातियों के लोग काम करते हों पर जातीय हीनता और श्रेष्ठता का फर्क स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है. जातीय विभेद खत्म करने को लेकर जो हल देश की सरकारों ने अब तक ढूंढ़ा है फिर वह किन स्तरों पर कारगर साबित हुआ है.
जाति को लेकर समाज में विभेद का जो स्वरूप था उसके केवल भौतिक आधार ही नही थे बल्कि यह मानसिक स्तर पर विद्यमान था और इसे समाप्त करने के लिये देश में ऐसे सांस्कृतिक कार्यक्रमों को चलाये जाने की जरूरत थी जो विभेद के इस बोध को ज़ेहन से मिटा सके. व्यवस्था की इस संरचना में ऐसी कोई भी परियोजना नहीं चलायी गयी जो सांस्कृतिक रूप से अम्बेडकर और लोहिया के जातिविहीनता के स्वप्न को पूरा कर सके. देश में अब तक जो भी कार्यक्रम प्रगतिशील मूल्यों की स्थापना के लिये चलाये गये वे एक हद तक वामपंथी पार्टीयों द्वारा, पर एक समय के बाद उन्होंने भी यह संघर्ष व्यवहारिक स्तर पर छोड़ दिया और इसे सिद्धान्तों तक ही सीमित कर दिया. यह तब हुआ जब वामपंथ के एक धड़े ने संसदीय चुनाव में सिरकत करनी शुरू की. इसके पीछे का कारण यह था कि भारतीय समाज के साथ जातिविहीनता का संघर्ष करना, लोगों के बने-बनाये मूल्यों के विरुद्ध जाना था. जो एक रूढ़ीवादी समाज के लिये तात्कालिक रूप से स्वीकृत होने वाला नहीं था. अतः यह चुनावी राजनीति के लिये किसी भी रूप में फलदायी नहीं था क्योंकि चुनाव में सफलता इन्हीं जातीय जोड़-तोड़ से ही मिलने वाली थी. एक हद तक हिन्दी भाषी प्रदेशों में वामदलों की असफलता का कारण यह भी रहा. उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में जातीय संरचना अन्य राज्यों के अपेक्षा और ज्यादा जटिल थी और जातीय सच्चाई को दरकिनार करते हुए किसी भी पार्टी का यहाँ चुनाव में सफल होना मुश्किल था, जो कि आज भी बरकरार है. बहुजन समाज पार्टी या समाजवादी पार्टी अम्बेडकर व लोहिया के विचारों को अपना अधार बना कर अस्तित्व में आये, पर जाति प्रश्‍न पर ये पार्टीयां कभी उस लक्ष्य की ओर मुखरित नहीं हुई जो इन महापुरुषों के स्वप्न में थे. बल्कि जातीय जनगणना के फार्मूले को ही अपना कर ये सत्ताशीन हो सकी, बावजूद इसके कि इनके द्वारा कोई सांस्कृतिक कार्यक्रम जातिबोध मिटाने को लेकर तैयार किये जाते, अपने जातीय समीकरण के आधार पर ही एक कुलीन वर्ग को ही कुछ सुविधायें इन्होंने प्रदान की और दमित जातियों में भी एक कुलीन वर्ग तैयार हो गया. यह दमित और वंचित जातियों की वोट के आधार पर एकजुटता भी थी, पर इसने विभेद की मानसिकता को रत्तीभर भी खत्म नहीं किया, बल्कि दमित जातियों में ही वर्गीय अंतर्विरोध पैदा किये.
सांस्कृतिक आधार पर जातीयबोध बिना संघर्ष के समाप्त नहीं किया जा सकता. यह संघर्ष जाति के आधार पर वर्ग विभाजन के साथ ही चलाया जा सकता है क्योंकि जाति और वर्ग का सवाल कई आधारों पर एकरूप में दिखता है. जातीय स्तरीकरण के तौर पर ही वर्गीय स्तरीकरण की समरूपता को देखा जा सकता है. इसलिये जातिविहीनता के संघर्ष का नेतृत्व सही मायने में वही दल कर सकता है जो चुनावी राजनीति और जातीय जोड़-तोड़ से बाहर आकर एक ऐसे संघर्ष की रूपरेखा तैयार कर सके जिससे समता और समानता आधारित लोकतांत्रिक मूल्यों को स्थापित करने का स्वप्न हो. यह एक अल्पकालिक संघर्ष नहीं होगा बल्कि एक ऐसा संघर्ष होगा जो पीढ़ीगत रूप से व्याप्त मानसिकता को खारिज कर नयी मानसिकता को स्थापित भी करेगा.

4 टिप्‍पणियां: