26 मई 2009

जन संघर्षों की जीतः

सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ की जेल में बंद नागरिक अधिकारों के लिए काम करने वाले डॉ विनायक सेन को सोमवार को ज़मानत दे दी है.
न्यायाधीश मार्कण्डेय काटजू और दीपक वर्मा की खंडपीठ ने अपने फ़ैसले में कहा कि डॉ सेन को निजी मुचलके पर स्थानीय अदालत से ज़मानत दे दी जाए.
डॉ सेन पिछले दो वर्षों से छत्तीसगढ़ की जेल में बंद हैं. राज्य सरकार का आरोप है कि उन्होंने राज्य में सक्रिय माओवादियों की मदद की है और उनके समर्थक रहे हैं.
पर डॉक्टर बिनायक शुरु से राज्य सरकार के आरोपों का खंडन करते रहे हैं और कहते रहे हैं कि वो नक्सलियों का साथ नहीं देते लेकिन वो साथ ही राज्य सरकार की ज्यादतियों का भी विरोध करते रहे हैं.
बिनायक सेन की ज़मानत के बारे में जानकारी देते हुए सामाजिक कार्यकर्ता कविता श्रीवास्तव ने बीबीसी संवाददाता पाणिनी आनंद को बताया, "बिनायक को ज़मानत की ख़बर मानवाधिकारों के लिए लड़ाई कर रहे लोगों के लिए इस मामले में पहली जीत है. सोमवार को सुप्रीम कोर्ट से आदेश मिला है जिसे आज ही एक कार्यकर्ता के हाथों रायपुर भेजा जा रहा है. मंगलवार को इस आदेश के आधार पर बिनायक रिहा किए जा सकते हैं."
उनकी बेटी अपराजिता सेन ने बीबीसी को बताया, "मेरे लिए और पूरे परिवार के लिए आज का दिन एक भावुक दिन है. दो वर्षों से बिना किसी अपराध के मेरे पिताजी हिरासत में रहे. अब मेरे परिवार को एकसाथ मिलने का मौका मिला है. मैं जल्द से जल्द उनसे मिलना चाहूंगी."
बिनायक का व्यक्तित्व
पेशे से चिकित्सक डॉ बिनायक सेन छात्र जीवन से ही राजनीति में रुचि लेते रहे हैं. उन्होंने छत्तीसगढ़ में समाजसेवा की शुरुआत सुपरिचित श्रमिक नेता शंकर गुहा नियोगी के साथ की और श्रमिकों के लिए बनाए गए शहीद अस्पताल में अपनी सेवाएँ देने लगे.
इसके बाद वे छत्तीसगढ़ के विभिन्न ज़िलों में लोगों के लिए सस्ती चिकित्सा सुविधाएँ उपलब्ध करवाने के उपाय तलाश करने के लिए काम करते रहे.
डॉ बिनायक सेन सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता तैयार करने के लिए बनी छत्तीसगढ़ सरकार की एक सलाहकार समिति के सदस्य रहे और उनसे जुड़े लोगों का कहना है कि डॉ सेन के सुझावों के आधार पर सरकार ने ‘मितानिन’ नाम से एक कार्यक्रम शुरु किया.
इस कार्यक्रम के तहत छत्तीसगढ़ में महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता तैयार की जा रहीं हैं.
स्वास्थ्य के क्षेत्र में उनके योगदान को उनके कॉलेज क्रिस्चन मेडिकल कॉलेज, वेल्लोर ने भी सराहा और पॉल हैरिसन अवॉर्ड दिया और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वास्थ्य और मानवाधिकार के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए जोनाथन मैन सम्मान दिया गया.
डॉ बिनायक सेन मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल की छत्तीसगढ़ शाखा के उपाध्यक्ष भी हैं.
इस संस्था के साथ काम करते हुए उन्होंने छत्तीसगढ़ में भूख से मौत और कुपोषण जैसे मुद्दों को उठाया और कई ग़ैर सरकारी जाँच दलों के सदस्य रहे.
नक्सली आंदोलन और बिनायक
उन्होंने अक्सर सरकार के लिए असुविधाजनक सवाल खड़े किए और नक्सली आंदोलन के ख़िलाफ़ चल रहे सलमा जुड़ुम की विसंगतियों पर भी गंभीर सवाल उठाए.
सलवा जुड़ुम के चलते आदिवासियों को हो रही कथित परेशानियों को स्थानीय और राष्ट्रीय मीडिया तक पहुँचाने में भी उनकी अहम भूमिका रही.
छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाक़े बस्तर में नक्सलवाद के ख़िलाफ़ चल रहे सलवा जुड़ुम को सरकार स्वस्फ़ूर्त जनांदोलन कहती है जबकि इसके विरोधी इसे सरकारी सहायता से चल रहा कार्यक्रम कहते हैं. इस कार्यक्रम को विपक्षी पार्टी कांग्रेस का भी पूरा समर्थन प्राप्त है.
छत्तीसगढ़ की भारतीय जनता पार्टी सरकार ने 2005 में जब छत्तीसगढ़ विशेष जनसुरक्षा अधिनियम लागू करने का फ़ैसला किया तो उसका मुखर विरोध करने वालों में डॉ बिनायक सेन भी थे.
उन्होंने आशंका जताई थी कि इस क़ानून की आड़ में सामाजिक कार्यकर्ताओं और पत्रकारों को परेशानी का सामना करना पड़ सकता है.
उनकी आशंका सही साबित हुई और इसी क़ानून के तहत उन्हें 14 मई 2007 को गिरफ़्तार कर लिया गया था .
बीबीसी हिन्दी से साभार

3 टिप्‍पणियां:

  1. यह लोकतंत्र पर विश्वास करने वालों की काले क़ानूनों पर जीत है।

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  2. भारत के कानून पर मुझे पूरी आस्था है। आतंकवाद का कोई भविष्य नहीं। जमानत का अर्थ सजा से मुक्ति नहीं होता और निर्दोष होना भी नहीं होता।

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  3. निश्चित ही यह जनतेंत्र की विजय है। लेकिन अब उस काले कानून की बारी आनी चाहिए जिस की मदद से छत्तीसगढ़ सरकार बिनायक को बंद रख सकी।

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