यह पत्र डॉ विनायक सेन की पत्नी इलीना सेन द्वारा 22 अप्रैल, 2009 को भेजा गया है।
प्यारे साथियो,
मैं कुछ बेहद पीडाजनक अनुभवों को यहां आपके साथ बांट रही हूं। हमारे पास इसके स्पष्ट प्रमाण हैं कि छत्तीसगढ पुलिस विनायक सेन की स्वास्थ्य की देखभाल की जरूरतों में सक्रिय हस्तक्षेप कर रही है. मैं तथ्यों को आपके सामने रख रही हूं.कई वर्षों से हाइपरटेंसिव के मरीज रहे विनायक रायपुर में एकमात्र कार्डियोलॉजी में डीएम डॉक्टर आशीष मलहोत्रा, जो निजी तौर पर चिकित्सा कर रहे हैं, के यहां कार्डियाक एसेसमेंट टेस्ट के दौरान एंजाइना से ग्रस्त पाये गये. वे 2007 में और उसके बाद अपने डॉक्टर द्वारा बतायी गयी दवाएं ले रहे थे. जेल में 2008 के दिसंबर और इस वर्ष जनवरी-फरवरी में कभी-कभी व्यायाम के बाद उन्हें सीने में और बायें हाथ में झुनझुनी दर्द की शिकायत हुई. उन्होंने जेल अधिकारियों को इसकी सूचना दी और जब इस बारे में कुछ भी ठोस नहीं किया गया (जेल अस्पताल में सुविधाएं नहीं हैं) उन्होंने अदालत को इसकी सूचना दी. उनकी ओर से 17 फरवरी, 2009 को एक आवेदन इस आग्रह के साथ अदालत में दाखिल किया गया कि उन्हें अपनी पसंद की सुविधाओंवाले अस्पताल में-सीएमसी, वेल्लोर को तरजीह देते हुए-इलाज कराने की इजाजत जेल अधिनियम-1894 की धारा 39-ए के तहत दी जाये, जो जेल अधीक्षक को कैदी अथवा उसके परिवार द्वारा बांड भरे जाने और अधीक्षक द्वारा रखी गयी शर्तों की बाध्यता के साथ उन्हें अपनी पसंद के इलाज की अनुमति देने में सक्षम बनाता है. 20 फरवरी, 2009 को जज ( इस मामले को देख रहे 11वें अतिरिक्त जिला व सत्र न्यायाधीश बीएस सलूजा) ने जेल अधिकारियों को विनायक सेन के हृदय की स्थिति के बारे में मेडिकल बोर्ड की राय हासिल करने का आदेश दिया, ताकि विनायक के आवेदन पर सही निर्णय लिया जा सके.विनायक 20 फरवरी, 2009 और 17 मार्च, 2009 के बीच कभी रायपुर जिला अस्पताल ले जाये गये, जहां उन्हें देखनेवाले डॉक्टरों ने इसीजी और इकोकार्डियोग्राफ की सलाह दी.17 मार्च को विनायक ने अदालत से शिकायत की कि उनके इलाज के आग्रह पर कोई कार्रवाई नहीं की गयी है और यह कहते हुए वे थोडे भावुक हो गये कि उन्हें लगता है कि कोर्ट के लिए उनके जीवित रहने या मर जाने का कोई अर्थ नहीं है. जज भी समान रूप से विचलित थे और मैं सबूतों के रखे जाने और आरोपित के वापस जेल ले जाये जाने के बाद उनसे निजी तौर पर मिली ताकि मैं उन्हें समझा सकूं कि जितना रेकार्ड किया गया है, विनायक की स्थिति उससे कहीं अधिक की मांग करती है. जज नरम दिखे और 18 मार्च को विनायक से अदालत में पूछा कि वे रायपुर में किस डॉक्टर से दिखाना चाहेंगे, जो यह तय करेगा कि उन्हें वेल्लोर के लिए भेजे जाने की जरूरत है या नहीं और इस पर विनायक द्वारा डॉ आशीष मलहोत्रा का नाम लिये जाने के बाद उन्होंने जेल अधिकारियों को आदेश दिया कि वे विनायक को डॉ मलहोत्रा को दिखायें ताकि यह जाना जा सके कि उन्हें आगे के इलाज के लिए रेफर करने की जरूरत है या नहीं.विनायक 25 मार्च को डॉ आशीष मलहोत्रा को दिखाये गये. अदालत के 18 मार्च के आदेश के आधार पर जेल अधीक्षक ने पुलिस से आग्रह किया कि वह विनायक को दिखाने ले जाने के लिए सुरक्षा गार्ड मुहैया कराये. इसके बाद सशस्त्र पुलिस बल से भरी एक बस विनायक को डॉ मलहोत्रा से दिखाने सुबह 10 बजे के करीब ले गयी और मुझे डॉ मलहोत्रा के यहां से पुरानी रिर्पोंटों के लिए 10.30 में फोन आया. मैंने ऐसा किया और अधिकतर कंसल्टेशन के दौरान मौजूद रही. जेल अधीक्षक के आग्रहवाले पत्र कि वे सीएमसी, वेल्लोर रेफर किया जाने, इसीजी, इकोकार्डियोग्राफ और ट्रेडमिल टेस्ट की आवश्यकता पर स्पष्ट राय दें, वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि विनायक को कोरोनरी आर्टरी डिजीज (सीएडी) है और उन्हें एंजियोग.्राफी और आगे की जांच के लिए वीएमसी, वेल्लोर रेफर कर दिया ताकि एंजियोप्लास्टी/कोरोनरी आर्टरी बाइपास सर्जरी हो सके. मैंने प्रिस्किप्शन की फोटो प्रति अपने रिकार्ड के लिए रख ली, क्योंकि मुझसे पूरी प्रक्रिया के लिए भुगतान करने को कहा गया.मैं विनायक से 26 मार्च को जेल में मिली और दक्षिण भारत में यात्रा के दौरान सुविधाओं पर बात की. मुझे झटका लगा जब अधीक्षक ने कहा कि विनायक की जांच और इलाज वेल्लोर में नहीं, रायपुर में होगा. किसी गलती को महसूस करते हुए मैंने सूचना के अधिकार के तहत एक आवेदन किया कि मुझे जेल और डॉक्टरों के बीच विनायक सेन के इलाज के संदर्भ में हुए पत्राचारों को दिखाय जाये. ये मेरे हाथ में आये अंतिम दस्तावेज हैं.इलाज की कहानी के अंत पर आने से पहले मैं यह बताना चाहूंगी कि जेल ने 31 मार्च को विनायक को रायपुर में एस्कॉटर्स हॉस्पिटल ले जाने की कोशिश की और मेरी पिछली मुलाकात में हुई बातों के अनुसार विनायक ने यह कहते हुए कि, जैसा कि जेल अधीक्षक का भी निर्देश है, वे छत्तीसगढ में कहीं भी इलाज कराने को इच्छुक नहीं हैं क्योंकि इससे उनका जीवन खतरे में पड जायेगा, लिखित तौर पर वहां जाने से इनकार कर दिया. उनका यह जवाब एक टिप्पणी के साथ 31 मार्च को अदालत में आगे के निर्देश के लिए प्रस्तुत किया गया. अदालत ने लोक अभियोजक को इसे भेजते हुए सात दिनों में जवाब देने को कहा. मेरी जानकारी में अब तक ऐसा कोई जवाब नहीं दाखिल किया गया है. विनायक ने डॉ मलहोत्रा द्वारा लिखी गयी दवा (रींीर्ीिंर ीींरींळ)ि लेना शुरू कर दिया और कुछ लाक्षणिक राहत की सूचना दी.आरटीआइ के नतीजों पर आते हैं. मुझे अब डॉ मलहोत्रा का 25 मार्च का मूल रेफरल लेटर मिला है. लेकिन जेल अधीक्षक के नाम उनके सवाल को उद्धृत करता 26 मार्च का एक दूसरा पत्र भी था, जिसमें उन्होंने राय दी है कि एंजियोग्राफी की सुविधाएं छत्तीसगढ में एस्कॉटर्स, अपोलो, भिलाई मुख्य अस्पताल, रामकृष्णा अस्पताल और दो अन्य जगहों पर है. उन्होंने यह भी लिखा है कि उन्होंने डॉ सेन को वेल्लोर इसलिए रेफर किया क्योंकि पत्र उनसे ऐसा करने के लिए कहता था. इससे जुडे सवाल ये हैं : डॉ मलहोत्रा के पास दूसरी बार पत्र क्यों भेजा गया÷ यदि जेल अधीक्षक ने ऐसा पत्र भेजा तो किसने उन्हें ऐसा करने पर मजबूर किया÷ यह पूरी तरह अदालत की अवहेलना है. डॉ मलहोत्रा से कोर्ट ने यह जानना चाहा था कि वेल्लोर भेजे जाने की जरूरत है या नहीं, इस पर अपनी राय जाहिर करें. अदालत ने डॉ मलहोत्रा से छत्तीसगढ में मेडिकल सुविधाओं की व्यापकता के बारे में नहीं पूछा था.डॉ मलहोत्रा बेशक दबाव में थे, जब उन्होंने कहा कि उन्होंने विनायक को वेल्लोर रेफर किया था, क्योंकि पत्र उन्हें ऐसा करने को कहता था. किसी मामले में अपने मरीज के साथ हुए या नहीं हुए उनके संवाद विशेषाधिकार प्राप्त सूचना माने जाते हैं.यदि एक डॉक्टर पब्लिक सेक्टर का नहीं है, इस हद तक डराया जा सकता है, जो एस्कॉटर्स, अपोलो आदि के डॉक्टरों को भी कहा जा सकता है, जो कि मेडिकल कॉलेज में स्थापित निजी मेडिकल संस्थान हैं (पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप के बडे उदाहरण, जिनमें सभी मानव संसाधन सार्वजनिक सेक्टर के होते हैं लेकिन ब्रांड नेम और आगे के लिए रेफरल विकल्प निजी होते हैं).इन हालात में विनायक बिल्कुल सही हैं कि उनका जीवन छत्तीसगढ के किसी सरकारी नियंत्रणवाले अस्पताल में खतरे मे पड सकता है.दरअसल मैं अब चिंतित हूं कि पुलिस/अभियोजक का प्लान ए (विनायक को बदनाम करो और दोषी साबित करो) संकेत दे रहा है कि वे अब प्लान बी (छत्तीसगढ में किसी अस्पताल में इलाज के दौरान किसी से कह कर-जैसे कुछ बूंदों के साथ हवा इंजेक्ट कर के- उनकी हत्या कर दो) लागू करने की कोशिश कर रहे हैं.मैं सभी साथियों से अपील करना चाहूंगी कि विनायक की शारीरिक सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए इस सामग्री का प्रकाशन करें, इसके बारे में लिखें, उच्च न्यायालयों और राजनेताओं से अपील करें. यह बहुत जरूरी है.मैं यह कहते हुए अंत करना चाहती हूं कि जिसकी हम मांग कर रहे हैं, पसंद के अस्पताल में इलाज का-वह भारतीय न्यायिक इतिहास के लिए अनजान नहीं है. दरअसल रायपुर सेंट्रल जेल से ही हत्या के आरोप में जेल में बंद शिवसेना नेता धनंजय सिंह परिहार को सरकारी खर्च पर केइएम अस्पताल, मुंबई, शंकर नेत्रालय, चेन्नई और तीन दूसरे अस्पतालों में 2003 में इलाज के लिए ले जाया गया था. पुलिस विनायक सेन को आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बडे खतरे के रूप में चित्रित कर रही है. क्या हम उसे ऐसा करने देने जा रहे हैं÷ इलीना
अंगरेजी से अनुवाद : रेयाज उल हक मूलतः मंथली रिव्यू की वेबसाइट पर
प्यारे साथियो,
मैं कुछ बेहद पीडाजनक अनुभवों को यहां आपके साथ बांट रही हूं। हमारे पास इसके स्पष्ट प्रमाण हैं कि छत्तीसगढ पुलिस विनायक सेन की स्वास्थ्य की देखभाल की जरूरतों में सक्रिय हस्तक्षेप कर रही है. मैं तथ्यों को आपके सामने रख रही हूं.कई वर्षों से हाइपरटेंसिव के मरीज रहे विनायक रायपुर में एकमात्र कार्डियोलॉजी में डीएम डॉक्टर आशीष मलहोत्रा, जो निजी तौर पर चिकित्सा कर रहे हैं, के यहां कार्डियाक एसेसमेंट टेस्ट के दौरान एंजाइना से ग्रस्त पाये गये. वे 2007 में और उसके बाद अपने डॉक्टर द्वारा बतायी गयी दवाएं ले रहे थे. जेल में 2008 के दिसंबर और इस वर्ष जनवरी-फरवरी में कभी-कभी व्यायाम के बाद उन्हें सीने में और बायें हाथ में झुनझुनी दर्द की शिकायत हुई. उन्होंने जेल अधिकारियों को इसकी सूचना दी और जब इस बारे में कुछ भी ठोस नहीं किया गया (जेल अस्पताल में सुविधाएं नहीं हैं) उन्होंने अदालत को इसकी सूचना दी. उनकी ओर से 17 फरवरी, 2009 को एक आवेदन इस आग्रह के साथ अदालत में दाखिल किया गया कि उन्हें अपनी पसंद की सुविधाओंवाले अस्पताल में-सीएमसी, वेल्लोर को तरजीह देते हुए-इलाज कराने की इजाजत जेल अधिनियम-1894 की धारा 39-ए के तहत दी जाये, जो जेल अधीक्षक को कैदी अथवा उसके परिवार द्वारा बांड भरे जाने और अधीक्षक द्वारा रखी गयी शर्तों की बाध्यता के साथ उन्हें अपनी पसंद के इलाज की अनुमति देने में सक्षम बनाता है. 20 फरवरी, 2009 को जज ( इस मामले को देख रहे 11वें अतिरिक्त जिला व सत्र न्यायाधीश बीएस सलूजा) ने जेल अधिकारियों को विनायक सेन के हृदय की स्थिति के बारे में मेडिकल बोर्ड की राय हासिल करने का आदेश दिया, ताकि विनायक के आवेदन पर सही निर्णय लिया जा सके.विनायक 20 फरवरी, 2009 और 17 मार्च, 2009 के बीच कभी रायपुर जिला अस्पताल ले जाये गये, जहां उन्हें देखनेवाले डॉक्टरों ने इसीजी और इकोकार्डियोग्राफ की सलाह दी.17 मार्च को विनायक ने अदालत से शिकायत की कि उनके इलाज के आग्रह पर कोई कार्रवाई नहीं की गयी है और यह कहते हुए वे थोडे भावुक हो गये कि उन्हें लगता है कि कोर्ट के लिए उनके जीवित रहने या मर जाने का कोई अर्थ नहीं है. जज भी समान रूप से विचलित थे और मैं सबूतों के रखे जाने और आरोपित के वापस जेल ले जाये जाने के बाद उनसे निजी तौर पर मिली ताकि मैं उन्हें समझा सकूं कि जितना रेकार्ड किया गया है, विनायक की स्थिति उससे कहीं अधिक की मांग करती है. जज नरम दिखे और 18 मार्च को विनायक से अदालत में पूछा कि वे रायपुर में किस डॉक्टर से दिखाना चाहेंगे, जो यह तय करेगा कि उन्हें वेल्लोर के लिए भेजे जाने की जरूरत है या नहीं और इस पर विनायक द्वारा डॉ आशीष मलहोत्रा का नाम लिये जाने के बाद उन्होंने जेल अधिकारियों को आदेश दिया कि वे विनायक को डॉ मलहोत्रा को दिखायें ताकि यह जाना जा सके कि उन्हें आगे के इलाज के लिए रेफर करने की जरूरत है या नहीं.विनायक 25 मार्च को डॉ आशीष मलहोत्रा को दिखाये गये. अदालत के 18 मार्च के आदेश के आधार पर जेल अधीक्षक ने पुलिस से आग्रह किया कि वह विनायक को दिखाने ले जाने के लिए सुरक्षा गार्ड मुहैया कराये. इसके बाद सशस्त्र पुलिस बल से भरी एक बस विनायक को डॉ मलहोत्रा से दिखाने सुबह 10 बजे के करीब ले गयी और मुझे डॉ मलहोत्रा के यहां से पुरानी रिर्पोंटों के लिए 10.30 में फोन आया. मैंने ऐसा किया और अधिकतर कंसल्टेशन के दौरान मौजूद रही. जेल अधीक्षक के आग्रहवाले पत्र कि वे सीएमसी, वेल्लोर रेफर किया जाने, इसीजी, इकोकार्डियोग्राफ और ट्रेडमिल टेस्ट की आवश्यकता पर स्पष्ट राय दें, वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि विनायक को कोरोनरी आर्टरी डिजीज (सीएडी) है और उन्हें एंजियोग.्राफी और आगे की जांच के लिए वीएमसी, वेल्लोर रेफर कर दिया ताकि एंजियोप्लास्टी/कोरोनरी आर्टरी बाइपास सर्जरी हो सके. मैंने प्रिस्किप्शन की फोटो प्रति अपने रिकार्ड के लिए रख ली, क्योंकि मुझसे पूरी प्रक्रिया के लिए भुगतान करने को कहा गया.मैं विनायक से 26 मार्च को जेल में मिली और दक्षिण भारत में यात्रा के दौरान सुविधाओं पर बात की. मुझे झटका लगा जब अधीक्षक ने कहा कि विनायक की जांच और इलाज वेल्लोर में नहीं, रायपुर में होगा. किसी गलती को महसूस करते हुए मैंने सूचना के अधिकार के तहत एक आवेदन किया कि मुझे जेल और डॉक्टरों के बीच विनायक सेन के इलाज के संदर्भ में हुए पत्राचारों को दिखाय जाये. ये मेरे हाथ में आये अंतिम दस्तावेज हैं.इलाज की कहानी के अंत पर आने से पहले मैं यह बताना चाहूंगी कि जेल ने 31 मार्च को विनायक को रायपुर में एस्कॉटर्स हॉस्पिटल ले जाने की कोशिश की और मेरी पिछली मुलाकात में हुई बातों के अनुसार विनायक ने यह कहते हुए कि, जैसा कि जेल अधीक्षक का भी निर्देश है, वे छत्तीसगढ में कहीं भी इलाज कराने को इच्छुक नहीं हैं क्योंकि इससे उनका जीवन खतरे में पड जायेगा, लिखित तौर पर वहां जाने से इनकार कर दिया. उनका यह जवाब एक टिप्पणी के साथ 31 मार्च को अदालत में आगे के निर्देश के लिए प्रस्तुत किया गया. अदालत ने लोक अभियोजक को इसे भेजते हुए सात दिनों में जवाब देने को कहा. मेरी जानकारी में अब तक ऐसा कोई जवाब नहीं दाखिल किया गया है. विनायक ने डॉ मलहोत्रा द्वारा लिखी गयी दवा (रींीर्ीिंर ीींरींळ)ि लेना शुरू कर दिया और कुछ लाक्षणिक राहत की सूचना दी.आरटीआइ के नतीजों पर आते हैं. मुझे अब डॉ मलहोत्रा का 25 मार्च का मूल रेफरल लेटर मिला है. लेकिन जेल अधीक्षक के नाम उनके सवाल को उद्धृत करता 26 मार्च का एक दूसरा पत्र भी था, जिसमें उन्होंने राय दी है कि एंजियोग्राफी की सुविधाएं छत्तीसगढ में एस्कॉटर्स, अपोलो, भिलाई मुख्य अस्पताल, रामकृष्णा अस्पताल और दो अन्य जगहों पर है. उन्होंने यह भी लिखा है कि उन्होंने डॉ सेन को वेल्लोर इसलिए रेफर किया क्योंकि पत्र उनसे ऐसा करने के लिए कहता था. इससे जुडे सवाल ये हैं : डॉ मलहोत्रा के पास दूसरी बार पत्र क्यों भेजा गया÷ यदि जेल अधीक्षक ने ऐसा पत्र भेजा तो किसने उन्हें ऐसा करने पर मजबूर किया÷ यह पूरी तरह अदालत की अवहेलना है. डॉ मलहोत्रा से कोर्ट ने यह जानना चाहा था कि वेल्लोर भेजे जाने की जरूरत है या नहीं, इस पर अपनी राय जाहिर करें. अदालत ने डॉ मलहोत्रा से छत्तीसगढ में मेडिकल सुविधाओं की व्यापकता के बारे में नहीं पूछा था.डॉ मलहोत्रा बेशक दबाव में थे, जब उन्होंने कहा कि उन्होंने विनायक को वेल्लोर रेफर किया था, क्योंकि पत्र उन्हें ऐसा करने को कहता था. किसी मामले में अपने मरीज के साथ हुए या नहीं हुए उनके संवाद विशेषाधिकार प्राप्त सूचना माने जाते हैं.यदि एक डॉक्टर पब्लिक सेक्टर का नहीं है, इस हद तक डराया जा सकता है, जो एस्कॉटर्स, अपोलो आदि के डॉक्टरों को भी कहा जा सकता है, जो कि मेडिकल कॉलेज में स्थापित निजी मेडिकल संस्थान हैं (पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप के बडे उदाहरण, जिनमें सभी मानव संसाधन सार्वजनिक सेक्टर के होते हैं लेकिन ब्रांड नेम और आगे के लिए रेफरल विकल्प निजी होते हैं).इन हालात में विनायक बिल्कुल सही हैं कि उनका जीवन छत्तीसगढ के किसी सरकारी नियंत्रणवाले अस्पताल में खतरे मे पड सकता है.दरअसल मैं अब चिंतित हूं कि पुलिस/अभियोजक का प्लान ए (विनायक को बदनाम करो और दोषी साबित करो) संकेत दे रहा है कि वे अब प्लान बी (छत्तीसगढ में किसी अस्पताल में इलाज के दौरान किसी से कह कर-जैसे कुछ बूंदों के साथ हवा इंजेक्ट कर के- उनकी हत्या कर दो) लागू करने की कोशिश कर रहे हैं.मैं सभी साथियों से अपील करना चाहूंगी कि विनायक की शारीरिक सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए इस सामग्री का प्रकाशन करें, इसके बारे में लिखें, उच्च न्यायालयों और राजनेताओं से अपील करें. यह बहुत जरूरी है.मैं यह कहते हुए अंत करना चाहती हूं कि जिसकी हम मांग कर रहे हैं, पसंद के अस्पताल में इलाज का-वह भारतीय न्यायिक इतिहास के लिए अनजान नहीं है. दरअसल रायपुर सेंट्रल जेल से ही हत्या के आरोप में जेल में बंद शिवसेना नेता धनंजय सिंह परिहार को सरकारी खर्च पर केइएम अस्पताल, मुंबई, शंकर नेत्रालय, चेन्नई और तीन दूसरे अस्पतालों में 2003 में इलाज के लिए ले जाया गया था. पुलिस विनायक सेन को आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बडे खतरे के रूप में चित्रित कर रही है. क्या हम उसे ऐसा करने देने जा रहे हैं÷ इलीना
अंगरेजी से अनुवाद : रेयाज उल हक मूलतः मंथली रिव्यू की वेबसाइट पर
chndirika tum apane blog par achchhi samagri upalbdh kara rahe ho, karaate rahana aur sachchai ke sath,
जवाब देंहटाएंsattu patel
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