24 नवंबर 2008

अनुराधा गांधी को याद करते हुए :-रमालू
स्नेह का एक प्रतीक याद करते हुए आँखें नमनाक हैं. तुम्हारे साथ गुजारे हुए दोस्ती के स्नेही पल अभी भी मेरी मुट्ठी में शेष बचे हैं. ११ अप्रेल को ५४ वर्ष की ही उम्र में दुनिया को तुमने विदा कह दिया.अनुराधा गांधी एक मानवतावादी थी. उनके पिता कुर्ग कर्नाटक से थे जो कम्युनिष्ट पार्टी ट्रेड यूनियन के कार्यकर्ता थे.बाद में वकालत के पेशे के साथ वे बाम्बे आ गये.और अनुराधा की पढा़ई लिखाई बाम्बे में हुई.महाराष्ट्र में नागरिक स्वतंत्रता अधिकार के लिये उसने एक अहम भूमिका अदा की उसने क्रांतिकारी आंदोलन में छ्त्रों के नवजवान भारत सभा में आवाह्ननाट्य मंडल को खडा़ करने में भी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाई. १९७० में आज़ादी के बाद एक नयी पीढी़ नये विचारों के साथ उदित हुई. जिसने इस समाज को पूरी तरह समता पर आधारित बनाना चाहा, अनुराधा उस नौजवान शिक्षित पीढी़ की अगली पंक्ति में थी जो अपने समय के विभिन्न आंदोलनों के साथ खडे़ थे. वह उनमे से एक थी जिन्होंने आराम की जिन्दगी छोड़कर समाज में व्याप्त बुराईयों के खिलाफ संघर्ष का रास्ता चुना.मेरा परिचय उनसे तब हुआ जब बाम्बे में अपनी उच्च शिक्षा को समाप्त कर वे क्रान्तिकारी आंदोलन का एक हिस्सा बन लेक्चरर के रूप में नागपुर आयी.आंदोलन में सांस्कृतिक गतिविधियों की अहमियत को समझते हुए १९८३ में उन्होंने ए.आई.एल.आर.सी. (आल इंडिया लीग फार रिवोल्यूसनरी कल्चर) को बनाने में एक सक्रिय योगदान दिया.१९९६ तक वे इसकी सेन्ट्रल कमेटी की मेम्बर रही और इस दौरान उन्होंने कई सफल कार्यक्रम का आयोजन करवाया अपनी गतिविधियों को पूरा करने के लिये वह एक सायकिल से चला करती थी. जल्द ही नागपुर छोड़कर वे आदिवासी क्षेत्र में एक पूर्णकालिक कार्यकर्ता के रूप में चली गयी.मुझे याद आ रहा है १९८३ में जब ए.आई.एल.आर.सी. द्वारा दिल्ली में पहला कार्यक्रम लिया गया विरसम के कुछ वरिष्ठ सदस्यों (आन्ध्र प्रदेश क्रान्तिकारी लेखक संघ) ने हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाये जाने की तरफदारी की थी यह अनुराधा ही थी जिसने बडी़ स्पष्टता के साथ क्षेत्रीय भाषाओं के विकास को ऎतिहासिक परिप्रेक्ष में समझाया और बताया कि मातृभाषा किस तरह से मानवसमुदाय के लिये सहज ग्राह्य होती है व उसकी क्या प्रक्रिया होती है. सारे प्रश्नों के जबाब को व्याख्यायित करते हुए उसने सबको संतुस्ट कर दिया.जुलाई १९८५ की बात है जब ७ क्रंतिकारी संगठन के प्रतिनिधि के रूप में मैं, वरवर राव, गदर, संजीव, और डोला किस्ट राजू हैदराबाद से पूरे भारत भ्रमण पर निकले थे.हमारा पहला ठहराव नागपुर था. यह अनुराधा गांधी थी जो नागपुर की एक दलित बस्ती में किराये के मकान में रहती थी और बडी़ गर्म जोशी के साथ हमारा स्वागत किया था.उसके बाद उन्होंने आंध्रप्रदेश में क्रान्तिकारी आंदोलन पर हो रहे दमन के खिलाफ सीता बर्डी के एक हाल में एक सभा आयोजित करवायी थी. जाने माने समाज सुधारक बाबा आम्टे इसमे मुख्य अतिथि के रूप में सम्मलित हुए थे.महाराष्ट्र के क्रांतिकारी आंदोलन को उभारने में अनुराधा गांधी ने एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा की उन्होंने कई लेखकों संस्कृति कर्मियों छात्रों और युवाओं को संगठित किया इस मायने में उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता. क्रंतिकारी आंदोलन के अखिल भारतीय स्तर पर सेमिनार आयोजित करने में मुख्यतः उनके सुझाव और चर्चाओं में वे बडे़ स्तर की अवधारणा को पेश करती थी. क्रांतिकारी आंदोलन में राष्ट्रीयता, जातिप्रथा, महिला के सवालों को लेकर व आंदोलन में छात्रों और कामगार वर्ग के संगठन में नयी उर्जा की सहायक भूमिका आदि विषय पर. उनके प्रयास व कार्य क्रांतिकारी महिला आंदोलन के लिये मार्ग दर्शक होते थे.क्रांतिकारी आंदोलन के ढांचे को व्यापक बनाने में भी उनके सुझाव मदद करते थे. उन्होंने अंबेडकर के विचारों पर जाति के मसले को हल करने को लेकर एक नयी अंतर्दृष्टि दी. महाराष्ट्र में उन्होंने एक ऎसी व्यवस्था विकसित की जहाँ महिलायें महिलाओं के लिये एक विशिष्ट सत्र आयोजित करें. समस्याओं को चिन्हित कर खास समस्याओं के लिये रिजोल्यूसन बनायें और व्यवहारिकता के लिये एक मार्ग दर्शक सूत्र बनायें. उन्होंने जीवन साथी के रूप में कोबड गांधी को चुना और खुद को व्यवहारिक रूप से वर्गच्युत किया. वह आदिवासियॊं के साथ जंगलों में घूमती थी. जंगलों में घूमते हुए उन्हें मलेरिया हुआ और ब्रेन तक पहुचने के कारण उनकी मौत हो गयी. वह आपने कार्यों को बडी़ दिल्लगी के साथ करती थी. एक एक बेहतर कल के लिये वह लोगों को संगठित करती थी और यह सब करते हुए उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया.

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