09 अक्टूबर 2007
खम्माम से रिर्पोट:-
आंध्र प्रदेश के मोदी गोंडा जिले में जुलाई में हुई पुलिस फायरिंग में कई लोगों की जानें गयी। दख़ल पत्रिका मंच के सदस्य के द्वारा की गयी फैक्ट फाइडिंग पर आधारित रिर्पोट-
यह वक्त घबराये हुए लोगों के
शर्म आंकने का नही
और न यह पूंछने का-
कि सन्त और सिपाही में
देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य कौन है!
अखबार के पन्ने पर जो खबर 29 जुलाई को छायी हुई थी, उससे बेपरवाह, होटल के नौकर ने टेबल पर गिरी चाय को पोंछकर डस्टविन में फेंक दिया। चौराहे के कचड़े से गाय ने उठाकर अपने जबड़ों में उसे निगल लिया। मूंगफली बेंचने वाले के ठोंगों से होती हुई वह खबर किसी दरवाजे के पास पड़ी थी, जिस पर कुत्ते ने मूत दिया। ट्रेन के डब्बे में वह पढ़नें के बाद बिस्तर बनी, झाडू लगाने वाले ने उसे बुहारकर तेज रतार से दौड़ती ट्रेन की पटरियों पर गिराया और वह हवा में धूल के साथ देर तक उड़ती रही।
खबर थी मोदी गोंडा में पुलिस की गोलियों से भूने गये उन लोगों की जो शान्तिपूर्वक धरने पर बैठे हुए थे। मसला था 170 एकड़ जमीन का जो सरकारी कब्जे में थी।
दस हजार की आबादी वाले इस मण्डल में कुल 24 गाँव है, यहाँ के लोग मुख्यता कृषि पर निर्भर है। दरअसल बात यहाँ से शुरू की जाय जब भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने राज्य से शांति वार्ता के दौरान इस जमीन को भूमिहीनों में बांटने की मांग की। उनकी यह मांग पूरी न हो सकी। अलबत्ता अन्य पार्टीयों व उनके कार्यकत्ताZओं की नजर इसपर जरूर गड़ गयी। कुछ माह बाद जमीन का 35 एकड़ कांग्रेस समर्थकों व कार्यकर्ताओं द्वारा जोत लिया गया जिस पर कोई आवाज इसलिए नहीं उठी क्योकि सरकार कांग्रेस की थी। तत्पश्चात मोदी गोंड़ा के प्रधान जो कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (संसदवादी) के सदस्य है, के कुछ कार्यकर्ताओं व समर्थकों ने भी 16 जुलाई को कुछ जमीन जोतनी शुरू की, मनाही होने पर वे 21 जुलाई को धरनें पर बैठे, धरने को बेअसर देखते हुए 24 जुलाई से उन्होने भूख हड़ताल शुरू की। 27 को हुए लाठी चार्ज के विरोध में 28 जुलाई को बंद का आवाहन किया, बन्द को असरदार बनाने के लिये सड़क पर वाहनों को न चलने देने का फैसला लिया गया। 28 को दोपहर बारह बजे के आसपास पुलिस की एक टुकड़ी ने आकर 1घटें के अंदर प्रदर्शन बंद करने का आदेश दिया। धरने पर बैठे लोग अपनी मांगों को लेकर अडिग रहे, फिर पुलिस के द्वारा लाठी चार्ज शुरू किया गया जबाब में लोगों ने पत्थर फेंकना शुरू किया तो पुलिस ने फायरिंग शुरू कर दी, जिससे सात लोग मारे गये कई लोग घायल हो हुए। 20 लोगों की सूची घायलों में उपलब्ध हो पायी।
लोगों के द्वारा पुलिस के खिलाफ थाने में एफ0 आई0 आर0 जैसी हास्यास्पद बात की कार्यवाही की गयी पर एफ0 आई0 आर0 नामंजूर कर दिया गया। उल्टा पुलिस ने ही लोगों के खिलाफ एफ0 आई0 आर0 दर्ज किया। कुछ समय बाद ए0 पी0 सी0 एल0 सी0 (आध्रप्रदेश सिविल लिबर्टी कमेटी) ने किसी तरह से एक एफ0 आई0 आर0 दर्ज करवाया। जिस पर सिवाय एक-दो तबादलों के कोई कार्यवाही नहीं हुई।
यह एक संक्षिप्त घटनाक्रम था जिसकी तसीस के लिये हम हैदराबाद से सुबह पा¡च बजे निकले। हम कुल सात लोग थे, 220 कि0मी0 की यात्रा तय कर हमें खम्माम पहुंचना था। जहाँ से 15 कि0मी0 दूरी पर बसा था मोदी गोंडा मण्डल, संड़क के चारो तरफ टीलानुमा पहािड़या थी। सड़क के किनारे खेतों में कपास की फसलें लगी हुई थी। हमारी गाड़ी में कोई तेलगू धुन बज रही थी, जिसमें बीच-2 में अग्रेजी के शब्दों की भी दखलंदाजी थी। झोपड़पट्टी, भूख, गरीबी, असमानता को देखकर भारत की अखण्डता में एकता का एहसास हो रहा था जो कन्याकुमारी से जम्मू-कश्मीर तक सर्व व्याप्त है। तस्वीरों को अपनी आंखों में सजोते हुए तीन घंटे का रास्ता तय करके हम खम्माम के लेनिन नगर कस्बे में पहुंचे, जहाँ से हमारे साथ कुछ िशक्षक, वकील मोदी गोंडा के लिये रवाना हुए। इनको साथ में लेने के पीछे कारण यह था कि हम गाँव वालों की तेलगू समझ सकें।
अब हम उस चौराहे पर थे जहाँ लोगों को कुछ दिन पूर्व गोलीयों से भूना गया था। चौराहे पर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (संसदवादी) के झंडे लगे हुए थे, जिसके नीचे सार्ट-कट में cpm.znb. (कम्युनिस्ट पार्टी जिन्दाबाद) लिखा हुआ था, किनारे पर अम्बेडकर की मुर्ति लगी थी जो एक हाथ उठा कर आसमान की तरफ इशारा कर रही थी। जिसे हम नहीं समझ सके। चारो तरफ से लोगों ने हमें घेर लिया। लोग हमें घटनाओं का ब्योरा दे रहे थे।
शर्मीला जी, जिसकी म्युजिक सेंटर की दुकान है जिसके बगल में ही लोग धरनें पर बैठे हुए थे। वे हमें अपने दुकान के नजदीक ले गयी, उन्होने अपनी दुकान की शटर बंद करके गोलियों के छर्रों से सटर में हुए छेद के निशान दिखाये। गोलियों से टूटे पी0 सी0 ओ0 के शीशे दिखायैं हमने आसपास की सभी दुकानों के कांउटर, बाक्स, व अन्य समानों में गोलियों के निशान देखे जगह-2 दीवालों के पलस्तर टूट गये थे।
चौराहे पर, घटना के दौरान मारे गये लोगो की याद में एक 38 फुट ऊचा स्मारक बनाया गया था। जिसकी बीस फुट-लम्बे व बीस फुट चौड़े आधार पर गुम्मदनुमा बनाया गया था। इसमें घटना में मारे गये उन सात लोगों की तस्वीरें मढ़ी गयी थी और नीचे उनके नाम लिखे हुए थे, गाँव के एक व्यक्ति ने तेलगू में लिखे उन नामों को पढ़ कर सुनाया जो इस प्रकार थे (उसकेला गोपया, वनका गोपीया, चिट्दूरीबाबू राव, छगम बाला स्वामी, एलागन तुला वीरन्ना, कट्टूला पेदूदा लक्ष्मी, पुस्थलति कुटुम्बराव) इन सात लोगों में छ: लोग घटना स्थल पर ही मारे गये जबकि छगम बाला स्वामी ने 31 जुलाई को अस्पताल में दर्द से कराहते हुए दम तोड़ा।
स्मारक के बगल में उन सोलह लोगों के भी नाम थे जो इस घटना में घायल हुए थे। लोगों ने हमें बताया की 300 से 400 गोलियां पुलिस के द्वारा चलाई गयी। हम स्मारक में जड़े गये उन सात मृतकों के चित्र देख रहे थे।
रमेश जिसकी उम्र तकरीबन 15 साल होगी, ने हमें बताया कि उसकी मां बट्टू राम बाई के पैर में गोली लगी है जिससे उनके पैर में स्टील का छड़ डाला गया है वे अब चल नहीं सकती। चौरहे पर वे ठेला लगाकर केले बेचती थी। पिता उपेन्द्र जो कि दूध बेंचते है अब घर का काम देखते है। रमेश ने हमसे पूछा कि क्या मैं उसे कोई नौकरी दिला सकता हू! जिसका मेरे पास कोई जबाव न था।
चौराहे से 100 मी0 की दूरी पर कोटेश्वर राव का घर था, जिसके हाथ में गोली लगी थी और स्टील के छड़ से उसे बांधा गया था। कोटेश्वर ने हमें बताया कि पहली गोली उसके सर्ट की जेब पर लगी, जेब में डायरी रखी हुई थी जिससे वे बच गये। उन्होंने वह डायरी दिखाई, जो फट गयी थी। कोटेश्वर कह रहे थे कि डायरी न होती तो उस स्मारक में उनका भी फोटो लगा होता।
हम घटना में मृत वीरन्ना की पत्नी ऊषा से मिले, ऊषा 28 बर्ष की एक दुबली-पतली महिला है, जिनके आंखो के ऑसू सूख चुके थे पर तबाही के मंजर व पति के मृत होने का दर्द अभी-भी किसी कोनें में छुपा था। ऊषा अपने 3 व 4 बर्ष के बच्चों के साथ इस वक्त अपनें बहन के घर में रहती थी। ऊषा ने हमें बताया कि वीरन्ना धरनें में शामिल नही थे हादसे के वक्त वे देखने के लिये घर से गये थे और नाहक ही मारे गये।
चौरहे के बगल में भा0 क0 पा0 (संसदवादी) के आफिस में हम गये। हशिये-हथौड़े का एक बड़ा चिन्ह दीवाल पर लाल रंग से पेंट किया हुआ था। चिन्ह देखकर नंदी ग्राम की याद आ गयी जहाँ हशिया किसानों का गला काटने व हथौड़ा मजदूरों का सिर काटने पर उतारू था। आफिस में हमें घटना के समय कैमरें में कैद की गयी कुछ तस्वीरें दिखायी गयी लोगों की अफरा-तफरी, रोते-कराहते चेहरों के साथ फोटो मौन थे। कोई चीख नहीं थी, कोई आवाज नही थी। कैमरे में कैंद किये गये चित्रों को तारतम्यता से घटनानुसार रखा गया था- खेत जोतते किसानों के चित्र, धरने पर बैठे लोग, भूख हड़ताल पर बैठे लोग, बंदी के दिन शांति पूर्वक बैठे लोग, पुलिस के साथ बातचीत करते लोग, पुलिस की गोलियों से भूनें जाते लोग, एस0 एल0 आर0 और ए0 के0 47 लिये सिविल डेªस में पुलिस, इसके बाद सड़क पर बिखरी लाशें थी। एक फोटो ऐसा था जिसमें छ: लाशों को एक साथ रखा गया था, उन्हे भा0 क0 पा0 (संसदवादी) के झंडे से लपेटा गया था। उसे देखकर यह लगा कि इन पार्टीयों के लिये लाश भी वोट मांगेगी। कल उनके बड़े-2 बैनर बनेंगे, सड़क, चौराहे, मुहल्लें, गलियों में वे चिपकाये जायेंगे। गोपीया, बाबू राव, लक्ष्मी, वीरन्ना सब इनके लिए वोट मांगने का काम करेंगे। मृतकों को पाँच लाख रू0 व घायलों को पचास हजार रू0 की रािश सरकार के द्वारा विभिन्न तरीकों से बांटी गयी लेकिन लोगों के यह सवाल भी थे कि क्या जिंदगी की कीमत पैसे से तौली जा सकती है? क्या गोपीया, वीरन्ना को 6 लाख रू0 में लौटाया जा सकता है? क्या कागज के टुकड़ों से ऊषा के आंसू व दर्द पोछें जा सकते है? क्या दमन व हत्या पुलिस की आदत बन चुकी है? धमाके की अवाज वहाँ नही थी। बीते हुए कल के साथ लोगों ने घटना को अपने घरों में, बच्चों ने अपनी चीखों में, सड़क ने अपनी धूल के नीचे दबा दिया था। तबाही के बाद सब कुछ शांत था। स्मारक पर एक दिया जलते-2 बुछ चुका था जिसकी राख इधर-उधर बिखरी हुई थी।
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चन्द्रिका ब्लोग अच्छा चल रहा है.पर तुम बहुत दिनों से कुछ प्रेषित क्यों नहीं कर राहे हो
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