- दिलीप ख़ान
बीते दिन-चार दिनों से जेएनयू प्रशासन की तरफ़ से नोटिसों की बौछार हो रही है। रोज़ाना एक नया नोटिस। कभी ‘असंवैधानिक’ भूख हड़ताल ख़त्म करने, कभी ‘बाहरियों’ को नहीं बुलाने तो कभी माइक, स्पीकर नहीं बजाने से जुड़े नोटिस। वीसी जगदेश कुमार की ‘आंदोलन विरोधी’ मंशा इसमें जितनी साफ़ दिख रही है, उसको बाज़ार में बिकने वाले 10 रुपए के खुर्दबीन से देखें तो संघ-विद्यार्थी परिषद के साथ खड़े रहने की मंशा उससे भी ज़्यादा स्पष्ट दिखती है। विद्यार्थी परिषद ने भी वही काम किया, जो वो लोग कर रहे हैं, जिनको इन दिनों नोटिस से मारने की कोशिश की जा रही है। मिस्टर वीसी और एबीवीपी के कारिंदों की छटपटाहट नौवें दिन की भूख हड़ताल के बाद उनसे ज़्यादा तेज़ है जिनकी अंतड़ियां इन नौ दिनों में लगातार सूखती जा रही है। 10 मई के अकादमिक काउंसिल की बैठक से पहले वीसी सबकुछ सामान्य बनाने की कोशिश में तो जुटे हैं, लेकिन ग़लत रास्ते से। जेएनयू प्रशासन और एबीवीपी के बीच के संबंध सरसरी निगाह में ही पकड़ में आ जाएगा।
स्पीकर इस्तेमाल नहीं करने वाला नोटिस |
जो खेल खेला जा रहा है, उसे सब देख-समझ रहे हैं, लेकिन खिलाड़ी गेंद को दर्शकों के बीच उछालकर मुग़ालते में है कि दर्शकों की नज़र सिर्फ़ गेंद पर है। चलिए, बुधवार की रात की घटना देखिए। जब जेएनयू में ABVP वाली जगह पर हलचल बिल्कुल ठुस्स थी तो ठीक बगल में पूर्वोत्तर छात्र मोर्चा जेएनयू के ख़िलाफ़ ज़हरीले डॉजियर का विरोध कर रहे थे। महीनों पुराना ये डॉज़ियर मीडिया में उस वक़्त रिलीज़ किया गया जब जेएनयू चौतरफ़ा संघ के निशाने पर है। डॉज़ियर को बनाने वाले जो लोग हैं उनका संघ की वैचारिकी के साथ संबंध महज एक गूगल सर्च का विषय है। बीजेपी के विधायक ज्ञानदेव आहूजा और जेएनयू की अमिता सिंह के बीच जेएनयू को बदनाम करने के मामले में सैद्धांतिक जुड़ाव है। ज्ञानदेव जेएनयू में कॉन्डोम गिनते रहे और अमिता सिंह जेएनयू को सेक्स रैकेट का अड्डा बताती रहीं। संघ जेएनयू को अलगाववादी तत्वों का अड्डा बताता रहा, अमिता सिंह का डॉज़ियर पूर्वोत्तर और कश्मीरी स्टूडेंट्स को चिह्नित कर अलगाववाद की इस सैद्धांतिकी पर मुहर लगाती रही।
अब ये खोज का विषय है कि ज्ञानदेव आहूजा ने अमिता सिंह से बात कर कॉन्डोम वाला बयान दिया या फिर उस बयान के बाद अमिता सिंह ने डॉज़ियर को मीडिया में लीक करवाया। लेकिन, इनके बीच की मिलीभगत सामान्य अवलोकन भर का मुद्दा है। पूर्वोत्तर छात्र मोर्चा ने इस ज़हरीले और सस्ते डॉज़ियर को जलाने के बाद जब आज़ादी चौक पर कार्यक्रम आयोजित किया तो वहां भाषण देने वालों में वो लोग भी शामिल थे, जिनकी अंतड़ियां सात दिनों की भूख के बाद बैठ चुकी थीं। लेकिन, न तो रामा नागा और न ही उमर ख़ालिद के भाषण में कहीं भी कमज़ोर होते शरीर की कोई छाया दिख रही थी। जैसे-जैसे भाषण आगे बढ़ा, वैसे-वैसे उत्साह और आवाज़ का स्तर ऊंचा होता गया। दो मिनट में ही कोई भी भांप सकता था कि आंदोलन जज़्बे और राजनीतिक प्रतिबद्धता से चलता है। राजनीतिक प्रतिबद्धता अगर शून्य हो तो खा-पीकर भी नारों के लिए कंठ से आवाज़ नहीं फूटती।
डॉज़ियर को लेकर पूर्वोत्तर छात्र मोर्चे का विरोध |
वीसी के साथ जिस एबीवीपी की चर्चा शुरू में की गई है वो बेहद ज़रूरी है। ज़रूरी इसलिए क्योंकि भाषण का दौर ख़त्म होने के बाद कबीर का गायन ठीक बगल में चल रहा था और उसे सुनते और दोस्तों से गप्पें मारते हुए मैं एबीवीपी वाले ‘इलाक़े’ के क़रीब बैठा था। एक मिनट के लिए घड़ी देखी तो पाया कि 11.23 बज रहा है। घड़ी से नज़र हटी नहीं थी कि किसी गाली को कान में घुसता पाया। हरे रंग की धारीदार टीशर्ट में एबीवीपी का एक कारिंदा किसी को लगातार तेज़ आवाज़ में गाली दे रहा था। प्रतिक्रिया में सामने वाला उसे मोदीभक्त कहकर आगे निकल गया। मुझे लगा कि एबीवीपी के बाक़ी लोग उस लड़के को भद्दी गालियों के लिए डाटेंगे या कम से कम चुप कराएंगे, लेकिन हुआ उल्टा। एक मोटा सा महंथ टाइप आदमी कुर्सी पर बैठा था, जिसके अगल-बगल क़रीब दसेक लोग बैठकर खींसे निपोड़ रहे थे। वो लड़का जितनी गालियां देता, ये दर्जन भर लोग उतना ही हंसते। आख़िरकार एक ने उसे चुप कराने की जहमत उठाई तो वो उसी पे फट पड़ा। ये सिलसिला क़रीब 15-20 मिनट तक चलता रहा और आख़िरकार हरी टीशर्ट वाले ने ये पाकर कि उसे सब नज़रअंदाज़ कर रहे हैं, आकर टेबल पर बैठ गया।
मैं क़रीब दस साल से जेएनयू को जानता हूं, लेकिन पहली बार किसी को बिना किसी शर्म के ऐसी भद्दी गालियां पब्लिकली देते सुना। वहां के लोगों का कहना था कि वो लड़का पहले भी ऐसी हरकत कर चुका है। बहरहाल, मैंने नज़र दौड़ाई कि क्या इस वक़्त एबीवीपी वाले हिस्से में कोई लड़की है? नहीं मिली। मैं जब भी लड़कियों को एबीवीपी में देखता हूं मुझे हैरत होती है कि ये कैसे इस संगठन में रह लेतीं हैं। जहां गालियों पर चटकारे लिए जाते हों, भारत माता के अलावा असहमत हर व्यक्ति की मां को सैक्सुअल ऑब्जेक्ट में तब्दील करने की छटपटाहट हो, वहां एक लड़की का एबीवीपी के पक्ष में खड़ा होना इस संगठन की सबसे अटपटी बात लगती है। इसलिए मैं मानता हूं कि जो भी लड़की एबीवीपी में है वो सारे सिद्धांतों और मूल्यों को छोड़कर सचमुच एबीवीपी के लिए दिल से समर्पित होगी! कोई गाली, कोई सवाल, कोई मसला और कोई हरकत शायद न उसे डिगा सके और न शायद समझा सके। आस्था किसी भी वैचारिक सवाल से नहीं डिगती!
वीसी की अपील!! |
बुधवार को दिन में ही एबीवीपी ने अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल ख़त्म कर दी लेकिन गालियों की दुक़ान खोलकर बैठे लोगों का मंतव्य समझ से परे है कि जब उनके मुताबिक़ प्रशासन ने उनकी मांगे मान लीं, तो धरने पे बैठे किसलिए है? मांग प्रशासन ने मानी या एबीवीपी ने इससे कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि दोनों की रिपोर्टिंग अथॉरिटी एक ही है। सीधे-सीधे अगर कहा जाए तो दोनों के बीच रुठम-रुठाई के बाद समझौता हो गया। अगर एबीवीपी ने मानी तो सात दिनों का ड्रामा किसलिए? अगर प्रशासन ने मानी तो बाक़ी लोगों की क्यों नहीं मानी? बाक़ी लोगों की हड़ताल को 'असंवैधानिक' कैसे क़रार दिया?
आठवीं रात जितने लोग फिर से एड ब्लॉक पर दिखे उससे शायद समझ में ये तो आया होगा कि एचएलईसी की फ़र्जी रिपोर्ट की पोलपट्टी जेएनयू ही नहीं, बल्कि बाहर भी खुल चुकी है। मानवीय संवेदना की मैं न तो जगदेश कुमार से उम्मीद करता हू्ं और न ही लगता है कि वो मेरे इस भरोसे को झुठलाएंगे। वीसी ने 'स्वास्थ्य' की परवाह करते हुए भूख हड़ताल पर बैठे छात्र-छात्राओं को डायलॉग के लिए बुलाया और कहा कि एचएलईसी की रिपोर्ट को वे लोग मान लें। चलते-चलते एक सवल वीसी से पूछता हूं कि क्या आप इस फर्जी रिपोर्ट को मानते हैं? रिपोर्ट की सारी पड़ताल में बहत्तर छेद होने के बावजूद और इसके भी बावजूद कि वो आपके पक्ष में जाती है, क्या आपने सज़ा का ऐलान रिपोर्ट के आधार पर किया? रिपोर्ट में जिनका ज़िक्र तक नहीं है उनको किस आधार पर आपने सज़ा सुनाई? कोई तो आधार होगा? आप ये क्यों चाहते हैं कि आंदोलन करने वाले सारे लोग रिपोर्ट को मान लें और इकलौते आप उस रिपोर्ट से बढ़कर सज़ा सुनाए? कहां से ऐसा करने का आदेश मिला है?
'बाहरियों' से आहत प्रशासन! |
अमिता सिंह समेत जो दर्जन भर शिक्षक इस यूनिवर्सिटी को लगातार बदनाम करने में जुटे हैं और जो यहां के छात्र-छात्राओं के बारे में अश्लील और बेहद आपत्तिजनक बातें कहते रहे हैं, उनपर कार्रवाई क्यों नहीं करते आप? क्या इसलिए कि 'ऊपर वाले' ने ऐसा नहीं करने का आदेश दिया है? आप न स्टूडेंट्स की सुनते हैं, न शिक्षकों की और न ही कर्मचारियों की, तो आप सुनते किसकी हैं? जिनको इस वक़्त सुन-सुनकर आपने ये चैम्बर हासिल किया है वो आपकी सीवी ख़राब कर देंगे। इतिहास में आप किस तरह याद किया जाना पसंद करेंगे ये तय करने का आपके पास इस वक़्त एक मौक़ा है। सुधर जाएंगे वीसी साहब तो आपकी सीवी भी थोड़ी ठीक हो जाएगी वरना बीबीसी के एक इंटरव्यू में आरएसएस वाले सवाल पर आपकी जो सहमति भरी हिचकिचाहट थी, उससे हमें ये उम्मीद भी बेमानी लगती है। आप और एबीवीपी मिलकर जेएनयू को जो बनाना चाहते हैं उस आइडिया को वहां के स्टूडेंट्स ख़ारिज करते रहेंगे और एक दिन आपका कार्यकाल ख़त्म हो जाएगा। न यहां के रहेंगे और न वहां के।
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जवाब देंहटाएंदिलीप जी आपने जेएनयू में होने वाली घटना को बहुत ही विस्तारर्पुवक बताया है जो की सच है ये सिर्फ राजनीति में होने वाले हथकंडो का ही एक प्रारूप था जो की सुनियोजित प्रतीत होता है आप इसी प्रकार से अपनी भावनाओ को शब्दनगरी पर भी प्रकाशित कर सकते हैं .....
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