वे जो देशद्रोही हो
गए. जिन्हें आने वाले दिनों में और भी देशद्रोही हो जाना है. जिनके लिए राष्ट्र का
हर प्रतीक विलोम की शब्दावलियों में लिखा जा रहा है. राजधानी में जिनका हर व्याकरण
उल्टा सा पढ़ा जा रहा है. वे सब अपने घरों के भीतर बुदबुदा रहे हैं. जैसे बच्चों को
आने वाले दिनों का किस्सा सुना रहे हैं. उन्हें जब-जब सुरक्षा मुहैया कराई जाती है
तो अपने बच्चों की कुछ और लाशें वे अपने कंधों पर ढोकर दफना आते हैं. गांव और पड़ोस
उन्हें शहीद कहते हैं और अखबार उन्हें कहता है ‘माओवादी’ या ‘देशद्रोही’. अखबार और
सरकार पिछले कई सालों से उनके लिए एक जैसे हो चुके हैं. राष्ट्र की सुरक्षा के नाम
पर जिनके लिए कुछ और सैनिक कुछ और बंदूकें उनके गावों-कस्बों की तरफ कूच कर रही हैं
लगातार. ‘राष्ट्रभक्ति’ के नाम पर जाने कितनी गोलियां उनके सीने में दब चुकी हैं और
कितने जख़्म उभर आए हैं. गड़चिरौली में ११ मई २०१४ को माओवादियों के द्वारा भारतीय सी-
६० सैन्यबलों पर की गई कार्यवाही से जब सभी अखबार, समाचार और सरकार बड़े हमले के रूप
में दिखा रहे हैं ऐसे में सी- ६० के द्वारा ७ जुलाई २०१३ को मेड्री गांव गड़चिरौली में
हुई झूठी मुठभेड़ और नृशंसता को दिखाता यह विडियो देखना जरूरी है. कि देशभक्ति के मायने
उलट जाते हैं. सवाल फिर से वहीं ठहर जाते हैं कि देश के वे कौन लोग हैं जो बंदूक उठाते
हैं और वे बंदूक क्यों उठाते हैं?
चिंतनीय पोस्ट...
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