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12 फ़रवरी 2012

एसपी अंकित गर्ग ने मुझे नंगा किया..मेरे गुप्तांग में पत्थर भरे।


नक्सली बताकर गिरफ़्तार की गई सोनी सोरी
के मामले में भाजपा और कांग्रेस एक है।

प सब सामाजिक कार्यकर्ताओं, बुद्धिजीवी संगठन, मानवाधिकार महिला आयोग, देशवासियों से एक आदिवासी पीड़ित लाचार एक आदिवासी महिला अपने ऊपर हुए अत्याचारों का जवाब मांग रही है और जानना चाहती है कि
(1) मुझे करंट शॉट देने, मुझे कपड़े उतार कर नंगा करने या मेरे गुप्तांगों में बेदर्दी के साथ कंकड़-गिट्टी डालने से क्या नक्सलवाद की समस्या खत्म हो जाएगी। हम औरतों के साथ ऐसा अत्याचार क्यों, आप सब देशवासियों से जानना है।
(2) जब मेरे कपड़े उतारे जा रहे थे, उस वक्त ऐसा लग रहा था कोई आये और मुझे बचा ले, पर ऐसा नहीं हुआ। महाभारत में द्रौपदी ने अपने चीर हरण के वक्त कृष्णजी को पुकार कर अपनी लज्जा को बचा ली। मैं किसे पुकारती, मुझे तो कोर्ट-न्यायालय द्वारा इनके हाथो में सौंपा गया था। ये नहीं कहूंगी कि मेरी लज्जा को बचा लो, अब मेरे पास बचा ही क्या है? हां, आप सबसे जानना चाहूंगी कि मुझे ऐसी प्रताड़ना क्यों दी गयी।
(3) पुलिस आफिसर अंकित गर्ग (एसपी) मुझे नंगा करके ये कहता है कि तुम रंडी औरत हो, मादरचोद गोंडइस शरीर का सौदा नक्सली लीडरों से करती हो। वे तुम्हारे घर में रात-दिन आते हैं, हमें सब पता है। तुम एक अच्छी शिक्षिका होने का दावा करती हो, दिल्ली जाकर भी ये सब कर्म करती हो। तुम्हारी औकात ही क्या है, तुम एक मामूली सी औरत जिसका साथ क्‍यों इतने बड़े-बड़े लोग देंगे।
[ आखिर पुलिस प्रशासन के आफिसर ने ऐसा क्यों कहा। इतिहास गवाह है कि देश की लड़ाई हो या कोई भी संकट, नारियों का बहुत बड़ा योगदान रहा है। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी, तो क्या उन्होंने खुद का सौदा किया था। इंदिरा गांधी ने देश की प्रधानमंत्री बनकर देश को चलाया, तो क्या उन्होंने खुद का सौदा किया। आज जो महिलाएं हर कार्य क्षेत्र में आगे होकर कार्य कर रही हैं, क्या वो भी अपना सौदा कर रही हैं। हमारे देशवासी तो एक दूसरे की मदद करते हैं - एकता से जुड़े हैं, फिर हमारी मदद कोई क्यों नहीं कर सकता। आप सभी से इस बात का जवाब जानना चाहती हूं। ]
(4) संसार की सृष्टि किसने की? बलशाली, बुद्धिमान योद्धाओं को जन्म किसने दिया है? यदि औरत जाति न होती तो क्या देश की आजादी संभव थी? मैं भी तो एक औरत ही हूं, फिर मेरे साथ ऐसा क्यों किया गया। जवाब दीजिए
मेरी शिक्षा को भी गाली दी गयी। मैंने एक गांधीवादी स्कूल माता रुक्मणि कन्या आश्रम डिमरापाल में शिक्षा प्राप्त की है। मुझे अपनी शिक्षा की ताकत पर पूरा विश्वास है, जिससे नक्सली क्षेत्र हो या कोई और समस्या फिर भी शिक्षा की ताकत से सामना कर सकती हूं। मैंने हमेशा शिक्षा को वर्दी और कलम को हथियार माना है। फिर भी नक्सली समर्थक कहकर मुझे जेल में डाल रखा है। बापूजी के भी तो ये ही दो हथियार थे। आज महात्मा गांधी जीवित होते, तो क्या उन्हें भी नक्सल समर्थक कहकर जेल में डाल दिया जाता। आप सभी से इसका जवाब चाहिए।
ग्रामीण आदिवासियों को ही नक्सल समर्थक कह कर फर्जी केस बनाकर जेलों में क्यों डाला जा रहा हैऔर लोग भी तो नक्सल समर्थक हो सकते हैं? क्या इसलिए क्योंकि ये लोग अशिक्षित हैं, सीधे-सादे जंगलों में झोपड़ियां बनाकर रहते हैं या इनके पास धन नहीं है या फिर अत्याचार सहने की क्षमता है। आखिर क्यों?
हम आदिवासियों को अनेक तरह की यातनाएं देकर, नक्सल समर्थक, फर्जी केस बना कर, एक-दो केसों के लिए भी 5-6 वर्ष से जेलों में रखा जा रहा है। न कोई फैसला, न कोई जमानत, न ही रिहाई। आखिर ऐसा क्यों हो रहा है। क्या हम आदिवासियों के पास सरकार से लड़ने की क्षमता नहीं है या सरकार आदिवासियों के साथ नहीं है। या फिर ये लोग बड़े नेताओं के बेटा-बेटी, रिश्तेदार नहीं हैं इसलिए। कब तक आदिवासियों का शोषण होता रहेगा, आखिर कब तक। मैं आप सभी देशवासियों से पूछ रही हूं, जवाब दीजिए।
जगदलपुर, दंतेवाड़ा जेलों में 16 वर्ष की उम्र में युवक-युवतियों को लाया गया, वो अब लगभग 20-21 वर्ष के हो रहे हैं। फिर भी इन लोगों की कोई सुनवाई नहीं हो रही है। यदि कुछ वर्ष बाद इनकी सुनवाई भी होती है, तो इनका भविष्य कैसा होगा। हम आदिवासियों के साथ ऐसा जुल्म क्यों? आप सब सामाजिक कार्यकर्ता, बुद्धिजीवी संगठन और देशवासी सोचिएगा।
नक्सलियों ने मेरे पिता के घर को लूट लिया और मेरे पिता के पैर में गोली मार कर उन्हें विकलांग बना दिया। पुलिस मुखबिर के नाम पर उनके साथ ऐसा किया गया। मेरे पिता के गांव बड़े बेडमा से लगभग 20-25 लोगों को नक्सली समर्थक कहकर जेल में डाला गया है, जिसकी सजा नक्सलियों ने मेरे पिता को दी। मुझे आप सबसे जानना है कि इसका जिम्मेदार कौन है? सरकार, पुलिस प्रशासन या मेरे पिता। आज तक मेरे पिता को किसी तरह का कोई सहारा नहीं दिया गया, न ही उनकी मदद की गयी। उल्टा उनकी बेटी को पुलिस प्रशासन अपराधी बनाने की कोशिश कर रही है। नेता होते तो शायद उन्हें मदद मिलती, वे ग्रामीण और एक आदिवासी हैं। फिर सरकार आदिवासियों के लिए क्यों कुछ करेगी?
छत्तीसगढ़ मे नारी प्रताड़ना से जूझती
स्व हस्ताक्षरित
श्रीमती सोनी सोरी
(मोहल्ला लाइव से कट पेस्ट)

09 फ़रवरी 2012

सोनी सोरी को उत्पीडित करने वाले पुलिस को राष्ट्रपति द्वारा वीरता सम्मान देने के विरोध में नागरिक अपील


महामहिम राष्ट्रपति जी,

''अमर रहे गणतंत्र हमारा ''

दुःखभरे ह्रदय से आप को यह पत्र लिखते हुए हमें ध्यान है कि देश और दुनिया के अनेक चिंतित नागरिक समूहों, स्त्री अधिकार संगठनों और मानवाधिकार समूहों ने दंतेवाडा के पुलिस सुपरिटेन्डेंट अंकित गर्ग को वीरता पदक दिए जाने के फैसले से जुडी हुयी चिंताओं की ओर आप का ध्यान आकर्षित किया है . हमें यकीन है कि आप इन चिंताओं पर गहराई से विचार करने की प्रक्रिया में हैं . हमें विश्वास है कि इस प्रसंग में आप के द्वारा लिया गया निर्णय राष्ट्र के गौरव , नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों और उन की मानवीय गरिमा को मज़बूत बनाने वाला सिद्ध होगा.

इस प्रसंग में राष्ट्र के जिम्मेदार और सरोकार -सजग नागरिकों के बतौर हम खास तौर पर जिन विन्दुओं को आप के ध्यान में लाना चाहते हैं , वे इस प्रकार हैं -

१- आदिवासी शिक्षिका सोनी सोरी ने सर्वोच्च न्यायालय को लिखे अनेक पत्रों में यह बात दुहराई है कि दंतेवाडा पुलिस स्टेशन में ०८ अक्टूबर २०११ को अंकित गर्ग की उपस्थिति में उन की आज्ञा से उन्हे शारीरिक यातनाये दी गयीं .इन यातनाओं में अमानवीय यौन हिंसा भी शामिल थी. सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर कलकता के एन आर एस सरकारी अस्पताल द्वारा की गयी मेडिकल जांच में इन आरोंपों को सही पाया गया है . अस्पताल द्वारा जारी जांच- रपट में पीडिता के गोपन अंगों में पत्थर के टुकड़ों की मौजूदगी को दर्ज किया गया है . इस रपट का गंभीरता से संज्ञान लेते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने पीडिता को दंतेवाडा पुलिस की अभिरक्षा में सुरक्षित न मान कर उन्हे रायपुर केन्द्रीय कारागार में स्थानांतरित करने के आदेश जारी किये हैं . इस से स्पस्ट है कि आरोपित किन्तु पुरस्कृत एस पी के खिलाफ मानवाधिकारों , संवैधानिक दायित्वों , राष्ट्रीय गरिमा और सरकारी सेवा नियमों के गंभीर उल्लंघन का मामला ठोस प्रमाणों पर आधारित है .इस प्रसंग में यह तथ्य भी आप के ध्यान में होगा कि मीडिया द्वारा एक स्थानीय पुलिस अधिकारी का वह टेप भी जारी किया गया है , जिस में उस ने स्वीकार किया है कि शिक्षिका के खिलाफ सक्रिय माओवादी कार्यकर्ता होने के आरोप निराधार और मनगढंत हैं . शिक्षिका और उस का परिवार अतीत में स्वयं माओवादी हिंसा का शिकार रहा है.लेकिन इस सिलसिले में सब से महत्वपूर्ण बात यह है कि किसी महिला के साथ किसी भी परिस्थिति में इस तरह का दुर्व्यवहार हमारे सांस्कृतिक मूल्यों और संवैधानिक आदर्शों का घनघोर अवमूल्यन है.

२- ऐसी परिस्थिति में आरोपित पुलिस सुपरिटेन्डेंट को राजकीय सम्मान देने का निर्णय राष्ट्र की गरिमा और सुरक्षा दोनों ही दृष्टियों से अत्यंत हानिकारक है , क्योंकि इस घटना के निहितार्थीं को निम्नलिखित रूपों में पढ़ा जा सकता है --

क) भारतीय राज्य एक आदिवासी नागरिक की मानवीय गरिमा , उस के संवैधानिक अधिकारों और न्याय की उस की आकांक्षा के अवमूल्यन को वह महत्व देने के लिए राजी नहीं है , जिस की अपेक्षा किसी भी आधुनिक लोकतांत्रिक राज्य से की जाती है . यह एक ऐसा अवांछित सन्देश है , जो भारतीय राज्य - राष्ट्र और उस के वंचित नागरिकों के बीच एक शत्रुतापूर्ण रिश्ते का संकेत देता है.
ख) भारतीय राज्य राजकीय निकायों से सम्बंधित दमन , उत्पीडन , असंविधानिक आचरण और भ्रष्ट व्यवहार के आरोपों पर आवश्यक गंभीरता के साथ ध्यान देने के लिए राजी नहीं है .
ग )भारतीय राज्य सरकारी अफसरों द्वारा एक स्त्री के स्त्रीत्व को क्रूरतापूर्वक अपमानित करने के खालिस पितृसत्ताक आचरण के विषय में सम्यक रूप से चिंतित नहीं है .
घ) इस देश के श्रेष्ठतम सांस्कृतिक मूल्यों और अंतर्राष्ट्रीय नागरिक मान्यताओं की हिफाजत की अपनी जिम्मेदारी के प्रति भारतीय राज्य की गंभीरता संदेह के परे नहीं है.

३- ऐसी स्थिति हमें जालियांवाला बाग हत्याकांड के बाद ब्रिटिश हाउस आव लॉर्ड्स द्वारा जनरल डायर को सम्मानित करने की उस घटना की याद दिलाती है , जिस की स्मृति भारतीय जन साधारण के लिए उस ह्त्या कांड से भी कहीं अधिक दुखदायी रही है . उसे एक औपनिवेशि सत्ता द्वारा एक जीवित राष्ट्र की आत्मिक ह्त्या के रूप में देखा गया , जिस का उद्देश्य निकृष्टतम नस्ली वर्चस्व को स्थापित करना था. राष्ट्रीय अपमान की इसे चेतना ने हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को वह क्रांतिकारी आवेग प्रदान किया , जिस ने हमें आज़ादी की मंजिल तक पहुंचाया. आज़ाद भारत में एक स्त्री नागरिकके अपमान और यौन उत्पीडन के गंभीर आरोपों का सामना कर रहे पुलिस अफसर को व्यापक जनविरोध के बावजूद राजकीय सम्मान देना हमारी आज़ादी और हमारी लोकतांत्रिक संस्कृति -दोनों के विषय में गंभीर चिंताएं और बेचैनियाँ उत्पन्न करता है.
अतएव हमारी प्रार्थना है कि आप एस पी अंकित गर्ग को वीरता पदक प्रदान करेने के निर्णय पर पुनर्विचार करते हुए इसे निरस्त करने की कृपा करें .
(आशुतोष कुमार की फेसबुक वाल से)

05 दिसंबर 2011

गुप्तांगों में एसपी ने पत्थर भर डाले थे !


हिमांशु कुमार
माननीय न्यायाधीश महोदय,
सर्वोच्च न्यायालय,
नईदिल्ली
यह पत्र मैं आपको सोनी सोरी नाम की आदिवासी लड़की के सम्बन्ध में लिख रहा हूँ, जिसके गुप्तांगो में दंतेवाडा के एस.पी. ने पत्थर भर दिये थे और जिसका मुकदमा आपकी अदालत में चल रहा हैІ उस लड़की की मेडिकल जाँच आपके आदेश से कराई गई और डाक्टरों ने उस आदिवासी लड़की के आरोपों को सही पाया और डाक्टरी रिपोर्ट के साथ उस लड़की के गुप्तांगो से निकले हुए तीन पत्थर भी आपको भेज दिये І
कल दिनांक 02-12-2011 को अपने वो पत्थर देखने के बाद भी उस आदिवासी लड़की को छत्तीसगढ़ के जेल में ही रखने का आदेश दिया और छत्तीसगढ़ सरकार को डेढ़ महीने का समय जवाब देने के लिए दिया हैІ
जज साहब मेरी दो बेटियाँ हैं अगर किसी ने मेरी बेटियों के साथ ये सब किया होता तो मैं ऐसा करने वाले को डेढ़ महीना तो क्या डेढ़ मिनट की भी मोहलत न देता! और जज साहब अगर यह लड़की आपकी अपनी बेटी होती तो क्या उसके गुप्तांगों में पत्थर डालने वालों को भी आप पैंतालीस दिनों का समय देते? और क्या उससे ये पूछते कि आपने मेरी बेटी के गुप्तांगों में पत्थर क्यों डाले? पैंतालीस दिन के बाद आकर बता देना और तब तक तुम मेरी बेटी को अपने घर में बंद कर के रख सकते हो !
पत्थर डालने वाले उस बदमाश एस. पी. को पता है कि उसकी रक्षा करने के लिये आप यहाँ सुप्रीमकोर्ट में बैठे हुए हैं इसलिए वह बेफिक्र होकर खुलेआम इस तरह की हरकत करता है और आपके कल के आदेश ने इस बात को और पुख्ता कर दिया है, कि इस तरह से हरकत करने वालों की रक्षा सुप्रीमकोर्ट लगातार उसी तरह करता रहेगा जिस प्रकार वो अंग्रेजों के समय से सरकारी पुलिस की रक्षा के लिए करता रहा हैІ
जज साहब ये अदालत उस आदिवासी लड़की की रक्षा के लिए बनायी गयी थी उस बदमाश एस.पी. के लिए नहीं І ये इस लोकतांत्रिक देश की सर्वोच्च न्यायालय है और इसका पहला काम देश के सबसे कमजोर लोगों की रक्षा सबसे पहले करने का है !आपको याद रखना पड़ेगा कि इस देश के सबसे कमजोर लोग महिलायें, आदिवासी, दलित, भूख से मरते हुए करोडों लोग हैं और इस अदालत को हर फैसला इन लोगों के हालत को बेहतर बनाने के लिए देना पड़ेगाІ लेकिन आजादी के बाद से इन सभी लोगों को आपकी तरफ से उपेक्षा और इनकी दुर्गति के लिए जिम्मेदार लोगों को संरक्षण दिया गया हैІ
मेरे पिताजी इस देश के आजादी के लिए लड़े थेІ उन सभी आजादी के दीवानों के क्या सपने थे? उन लोगों ने कभी कल्पना भी की होगी कि आज़ादी मिलने के बाद एक दिन इस देश की सर्वोच्च न्यायालय एक आदिवासी बच्ची के बजाय उसपर अत्याचार करनेवाले को संरक्षण प्रदान करेगीІ
हमें बचपन से बताया गया इस देश में लोकतंत्र है.इसका मतलब है करोडों आदिवासियों, करोडों दलितों, करोडों भूखों का तंत्र І लेकिन आपके सारे फैसले इन करोडों लोगों को बदहाली में धकेलने वाले लोगों के पक्ष में होते हैं І आपको जगतसिंहपुर उडीसा में अपनी जमीन बचाने के लिए गर्म रेत पर लेटे हुए औरतें व बच्चे दिखाई नहीं देते? उनके लिए आवाज उठाने वाले कार्यकर्ता अभय साहू को जमीन छीनने वाले कंपनी मालिकों के आदेश पर सरकार द्वारा गिरफ्तारी आपको दिखाई नहीं देती?
आपकी अदालत में गोम्पाड गांव में सरकारी सुरक्षाबलों द्वारा तलवारों से काट डाले गये सोलह आदिवासियों का मुकदमा पिछले दो साल से घिसट रहा हैІ इस अदालत में उन आदिवासियों को लाते समय मुझे एक नक्सलवादी नेता ने चुनौती दी थी और कहा था कि इन आदिवासियों की हत्या करने वाले पुलिसवालों को अगर तुम सजा दिलवा दोगे तो मैं बंदूक छोड़ दूँगाІ
लेकिन मैं हार गयाІ इस अदालत में आने के सजा के तौर पर पुलिस ने उन आदिवासियों के परिवारों का अपहरण कर लिया और वे लोग आज भी पुलिस की अवैध हिरासत में हैं І आपने दोषियों को अब तक सजा न देकर इस देश की सरकार को नहीं जिताया, आपने मुझे चुनौती देने वाले उस नक्सलवादी को जीता दियाІ अब मैं किस मुंह से उस नक्सलवादी के सामने इस देश के महान लोकतंत्र और निष्पक्ष न्यायतंत्र की डींगे हांक सकता हूँ? और उसके बन्दूक उठाने को गलत ठहरा पाऊँगा ?
अगर इस देश में तानाशाही होती तो हमें संतोष होता, हम उस तानाशाही के खिलाफ लड़ रहे होते, परन्तु हमसे कहा गया कि देश में लोकतंत्र है ! परन्तु इस तंत्र की प्रत्येक संस्था, विधायिका, व्यवस्थापिका और न्यायपालिका मिलकर करोडों लोगों के विरुद्ध और कुछ धनपशुओं के पक्ष में पूरी बेशर्मी के साथ कार्य कर रहे हैंІ इसे हम लोकतंत्र नहीं लोकतंत्र का ढोंग कहेंगे और अब हम लोकतन्त्र के नाम पर इस ढोंगतंत्र को एक दिन के लिए भी बर्दाश्त करने को तैयार नहीं हैं І
आज मैं प्रण करता हूँ कि आज के बाद किसी गरीब का मुकदमा लेकर आपकी अदालत नहीं आऊंगाІ अब मैं जनता के बीच जाऊंगा और जनता को भड़काऊगा कि वह इस ढोंगतंत्र पर हमला करके इसे नष्ट कर दें ताकि सच्चे लोकतन्त्र की ईमारत खड़ी करने के लिए स्थान बनाया जा सकेІ
अगर आप इस लड़की को इसलिए न्याय नहीं दे पा रहे हैं कि उससे सरकार नाराज हो जाएगी और उससे आपकी तरक्की रुक जायेगी І तो ज़रा इतिहास पर नजर डालिए ! इतिहास गलत फैसला देने वाले न्यायाधीशों को कोई स्थान नहीं देता І सुकरात को सत्य बोलने के अपराध की सजा देने वाले न्यायाधीश का नाम कितने लोगों को याद है?
जीसस को चोरों के साथ सूली पर कीलों के साथ ठोक देने वाले जज को आज कौन जानता है? आपके इस अन्याय के बाद सोनी सोरी इतिहास में अमर हो जायेगी और इतिहास आपको अपनी किताब में आपका नाम लिखने के लिए एक छोटा सा कोना भी प्रदान नहीं करेगा І
हाँ अगर आप संविधान की सच्ची भावना के अनुरूप इस कमजोर, अकेली आदिवासी महिला को न्याय देते हैं तो सत्ताधीश भले ही आपको तरक्की न दें लेकिन आप अपनी नजरों में, अपनी परिवार के नजरों में और इस देश के नजरों में बहुत तरक्की पा जायेंगेІ
अगर आप इस पत्र को लिखने के बाद मुझे गिरफ्तार करते हैं तो मुझे गिरफ्तार होने का जरा भी दुःख नहीं होगा क्योंकि उसके बाद मैं कम से कम अपनी दोनों बेटियों से आँख मिलाकर बात तो कर पाउँगा,और कह पाउँगा कि मैं सोनी सोरी दीदी के साथ होनेवाले अत्याचारों के समय डर के कारण चुप नहीं रहा, और मैंने वही किया जो एक पिता को अपनी बेटी के अपमान के बाद करना चाहिए थाІ (जनज्वार से साभार) 


18 जुलाई 2011

जरूरी अपील

जन कलाकार जीतन को न्याय चाहिए !

वो जो कल तक आम लोगों के बीच मेहनतकश समुदाय के दुःख-दर्द और उनकी जिन्दगी के जद्दो-जहद को अपना सांस्कृतिक स्वर देता था... खेत-खलिहानकारखाने-खदान से लेकर गांव, देहात, कस्बों, शहरों में अपनी सांस्कृतिक मण्डली के साथ घूम-घूमकर, पतनशील व मानव विरोधी संस्कृति के बरखिलाफ जन संस्कृति के गीत गाता है... जल-जंगल-जमीन तथा जीवन पर अधिकार के लिए हूल-उलगुलान के सपनों को शोषित-वंचित आदिवासी एवं मेहनतकश जन समुदाय के बीच जगाता रहा तथा लूट-झूठ की सत्ता से हताश, निराश और परेशान  दिलों में अपनी धन-धरती पर अधिकार और मर्यादापूर्ण जीवन के लिए परिवर्तन  का जोश भरता रहा... और रात के विरुद्ध प्रात के लिए, भूख के विरुद्ध भात के लिए नये राज-समाज गढ़ने के अभियान में चेतना का संगीत सजाता रहा..... उस जन कलाकार जीतन मरांडी को झूठे केस में फंसाकर कलाकर से कातिल ठहराया गया और फांसी का हुक्म सुनाया गया। जीतन मरांडी ने अपसंस्कृति के विरुद्ध जन संस्कृति के लिए सदैव मांदर, ढोल, नगाड़ाबांसुरी और कलम-कूची को अपना हथियार बनाया। लेकिन उसे झूठे गवाहों के बल पर उग्रवादी साबित किया गया। एक जन कलाकार के रूप में उसने संस्कृतिकर्म की वही राह अपनायी जिसे कबीर, भारतेन्दू हरिश्चन्द्र से लेकर मुंशी प्रेमचन्द और नागार्जुन की रचना-सांस्कृतिक परम्परा ने दिखलायी। वही संकल्प रखा जिसे सिद्धू-कानू, बिरसा मुण्डा और भगत सिंह के आदर्शों ने सिखलाया। जो यही काली ताकतों को नहीं भाया। प्रसिद्ध गीतकार शैलेन्द्र ने वर्षों पूर्व लिखा था –

"
भगत सिंह इस बार न लेना काया भारतवासी की
देशभक्ति के लिए आज भी सजा मिलेगी फाँसी की"

आज जीतन मरांडी के साथ यही चरितार्थ हो रहा है। उसने देश की
सम्प्रभुता-स्वतंत्रता और लोकतंत्र  का अपहरण करनेवाली शासन-व्यवस्था और
सत्ता-संस्कृति के विरुद्ध जन संस्कृतिकर्म की मशाल जलायी। आईये, जन कलाकार जीतन
मरांडी को सही न्याय दिलाने तथा उसे फांसी की सजा से मुक्त कराने के जन अभियान
में हर स्तर पर सक्रिय भूमिका में हम सब आगे आयें!

निवेदक

जन कलाकार जीतन रिहाई मंच
अनिल अंशुमन,
संयोजक

संदर्भ: विभिन्न जनान्दोलनों में सक्रिय रहने वाले जनकलाकार जीतन मरांडी पर यों तो कई झूठे मुकदमे सरकार-प्रशासन द्वारा पहले ही लादे जाते रहे हैं। 2008 में गिरिडीह जिले के चिलखारी जनसंहार कांड के प्रमुख अभियुक्तों में स्थानीय
प्रशासन व भ्रष्ट राजनेता-बिचौलियों    ने साजिश कर जीतन मरांडी को फंसा दिया। 2009 में रांची से जीतन को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया। गिरीडीह की निचली अदालत में एकतरफा एवं झूठी गवाही दिलवाकर 23 जून 2011 को फांसी की सजा सुनायी गयी। चूंकि जीतन मरांडी झारखण्ड में कोरपोरेट लूट और झूठ की सरकारों की जनविरोधी नीतियों संघर्ष की सांस्कृतिक आवाज बुलंद करते थे और ग्रामीण-आदिवासी जनता में लोकप्रिय थे। इसलिए वे लूट-झूठ की शक्तियों की आंखों की किरकिरी बन गये थे।

प्रचारित-प्रसारित:
झारखण्ड जन संस्कृति मंच, संपर्क: 09939081850,
anshuman.anil@gmail.com

विज्ञप्ति ई-मेल द्वारा प्राप्त- दख़ल