25 दिसंबर 2010

ये युद्ध है और हम इसमें शामिल हैं


-आवेश तिवारी


घोटालों ,भ्रष्ठाचार , आतंक और राजनैतिक वितंडावाद से जूझ रहे इस देश में अदालतों का चेहरा भी बदल गया है ,ये अदालतें अब आम आदमी की अदालत नहीं रही गयी हैं ,न्याय की देवी की आँखों में बन्दे काले पट्टे ने समूची न्यायिक प्रणाली को काला कर दिया है ,जज राजा है ,वकील दरबारी और हम आप वो फरियादी हैं जिन्हें फैसलों के लिए आसमान की और देखने की आदत पड़ चुकी है |बिनायक सेन को उम्र कैद की सजा हिंदुस्तान की न्याय प्रक्रिया का वो काला पन्ना है जो ये बताता है कि अब भी देश में न्याय का चरित्र अंग्रेजियत भरा है जो अन्याय ,असमानता और राज्य उत्प्रेरित जनविरोधी और मानवताविरोधी परिस्थितियों के साए में लोकतंत्र को जिन्दा रखने की दलीलें दे रहा है |सिर्फ बिनायक सेन ही क्यूँ देश के उन लाखों आदिवासियों को भी इस न्याय प्रक्रिया से सिर्फ निराशा हाँथ लगी हैं जिन्होंने अपने जंगल अपनी जमीन के लिए इन अदालतों में अपनी दुहाई लगाई |खुलेआम देश को गरियाने वाले और सशस्त्र क्रान्ति का समर्थन करने वाले खुलेआम देश- विदेश घूम घूम कर हिंदुस्तान के खिलाफ विषवमन करते हैं ,और संवेदनशील एवं न्याय आधारित व्यवस्था का समर्थन करने वालों को सलाखों में ठूंस दिया जाता है |
बिनायक सेन की सजा के आधार बनने वाले जो सबूत छत्तीसगढ़ पुलिस ने प्रस्तुत किये ,वो अपने आप में कम हास्यास्पद नहीं है ,पुलिस द्वारा मदन लाल बनर्जी का लिखा एक पत्र प्रस्तुत किया गया जिसमे बिनायक सेन को कामरेड बिनायक सेन कह कर संबोधित किया गया है ,एक और पत्र है जिसका शीर्षक है कि " कैसे अमेरिकी साम्राज्यवाद के विरोध में फ्रंट बनाये ",इनके अलवा कुछ लेख कुछ पत्र जिन पर बकायदे जेल प्रशासन की मुहर है सबूत के तौर पर प्रस्तुत की गयी |भगत सिंह और सुभाष चद्र बोस जिंदाबाद के नारे लिखे कुछ पर्चे भी इनमे शामिल हैं अदालत ने अपने फैसले में सजा का आधार जिन चीजों को माना है वो छत्तीसगढ़ ,झारखण्ड ,ओड़िसा और उत्तर प्रदेश के किसी भी पत्रकार समाजसेवी के झोले की चीजें हो सकती हैं |बिनायक चिकित्सक हैं नहीं तो पुलिस एक कट्टा ,कारतूस या फिर एके -४७ दिखाकर और कुछ एक हत्याओं में वांछित दिखाकर उन्हें फांसी पर चढवा देती |देश में माओवाद के नाम पर जिनती भी गिरफ्तारियां या हत्याएं हो रही हैं चाहे वो सीमा आजाद की गिरफ्तारी हो या हेमचंद की हत्या सबमे छल ,कपट और सत्ता की साजिशें मौजूद थी |साजिशों के बदौलत सत्ता हासिल करने और
फिर साजिश करके उस सत्ता को कायम रखने का ये शगल अब नंगा हो चुका है |माओवादियों के द्वारा की जाने वाली हत्याएं जितनी निंदनीय हैं उनसे ज्यादा निंदनीय फर्जी मुठभेड़ें और बेकसूरों की गिरफ्तारियां हैं क्यूंकि इनमे साजिशें और घात भी शामिल हैं |
बिनायक सेन एक चिकित्सक हैं वो भी बच्चों के चिकित्सक ,देश में पूरी तरह से जीर्ण शीर्ण हो चुकी बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं को पुनर्स्थापित करने को लेकर उनके जो उन्होंने कभी नक्सली हिंसा का सर्थन नहीं किया पर हाँ ,वो राज्य समर्थित हिंसा के भी हमेशा खिलाफ रहे ,चाहे वो सलवा जुडूम हो या फिर छतीसगढ़ के जंगलों में चलाया जा रहा अघोषित युद्ध |बिनायक खुद कहते हैं "माओवादियों और राज्य ने खुद को अलग अलग कोनों पर खड़ा कर दिया है ,बीच में वो लाखों जनता हैं जिसकी जिंदगी दोजख बन चुकी है ,ऐसे में एक चिक्तिसक होने के नाते मुझे गुस्सा आता है जब इन दो चक्कियों के बीच फंसा कोई बच्चा कुपोषित होता है या किसी माँ का बेटा उसके गर्भ में ही दम तोड़ देता है ,क्या ऐसे में जरुरी नहीं है कि हिंसा चाहे इधर की हो या उधर की रोक दी जाए,और एक सुन्दर और सबकी दुनिया ,सबका गाँव सबका समाज बनाया जाए "


कम से कम एक मुद्दा ऐसा है जिस पर देश के सभी राजनैतिक दल एकमत हैं वो है नक्सली उन्मूलन के नाम पर वन ,वनवासियों और आम आदमी के विरुद्ध छेड़ा गया युद्ध ,भाजपा और कांग्रेस जो अब किसी राजनैतिक दल से ज्यादा कार्पोरेट फर्म नजर आते हैं निस्संदेह इसकी आड़ में बड़े औद्योगिक घरानों के लिए लाबिंग कर रही हैं ,वहीँ वामपंथी दलों के लिए उनके हाशिये पर चले जाने का एक दशक पुराना खतरा अब नहीं तब तब उनके अंतिम संस्कार का रूप लेता नजर आ रहा है |मगर ये पार्टियाँ भूल जा रही है कि देश में बड़े पैमाने पर एक गृह युद्ध की शुरुआत हो चुकी है भले ही वो वैचारिक स्तर पर क्यूँ न लड़ा जा रहा हो ,विश्वविद्यालों की कक्षाओं से लेकर ,कपडा लत्ता बेचकर चलाये जाने वाले अख़बारों ,पत्रिकाओं और इंटरनेट पर ही नहीं निपढ निरीह आदिवासी गरीब ,शोषित जनता के जागते सोते देखे जाने वाले सपनों में भी ये युद्ध लड़ा जा रहा है ,हम बार बार गिरते हैं और फिर उठ खड़े होते हैं |हाँ ,ये सच है , विनायक सेन जैसों के साथ लोकतंत्र की अदालतों का इस किस्म का गैर लोकतान्त्रिक फैसला रगों में दौड़ते खून की रफ़्तार को बढ़ा देता हैं ,ये युद्ध आजादी के पहले भी जारी थी और आज भी है |

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