tag:blogger.com,1999:blog-3857696409871553743.post5954529151668912350..comments2024-03-07T17:45:04.957+05:30Comments on दख़ल की दुनिया: समय की नब्ज़ पर राहुल गांधी के स्वरआलोक श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/08498808385035641834noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-3857696409871553743.post-24803409344414981742011-02-09T20:15:45.875+05:302011-02-09T20:15:45.875+05:30बेहद उम्दा और रोचक। सिलसिलेवार पढ़ता चला गया। राहुल...बेहद उम्दा और रोचक। सिलसिलेवार पढ़ता चला गया। राहुल गाँधी की कलाई पकड़ मस्त नब्ज़ टटोला है। जिस व्यवस्था के सार्थक विकल्प के लिए युवा राजनीतिज्ञ लोगों के बीच ‘कैम्पेन’ कर रहे हैं, भ्रष्ट्नों का पता जनता को बोलकर नोट करा रहे हैं, लोगों को उसके खिलाफ जागरूक कर रहे हैं; क्या उसमें उनकी पार्टी का हाथ आकंठ नहीं डूबी है? अगर, हाँ तो सबसे पहले इस हाथ का इलाज जरूरी है। व्यवस्थागत प्रताड़नाआंे से निपटने या उबरने के लिए प्रथमतः उस सनातनी पार्टी को सत्ताच्यूत करना होगा, जिसने भारतीय युवाओं को अभी तक सर्वाधिक बरगलाया है। या फिर राहुल गाँधी ज्यादा से ज्यादा युवाओं को टिकट बाँटकर युवा-भारत के निर्माण की राह प्रशस्त करें। अधिकाधिक युवाओं को राजनीति में लाने के पैराकार राहुल गांधी अगर आगामी उत्तर प्रदेश चुनाव में टिकट बँटवारे का यह ‘मॉडल’ नहीं उतारते तो समझिए यूपी चुनाव में उनकी पार्टी की खटिया खड़ा होना तय है। क्योंकि जनता के भीतर भरा हुआ रोष-आक्रोश प्रचंड है।<br /><br />राजीव रंजन प्रसाद, शोध-छात्र, प्रयोजनमूलक हिन्दी(पत्रकारिता), बीएचयूRajeev Ranjanhttp://www.issbaar.blogspot.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3857696409871553743.post-49840822871211204262011-02-06T23:43:34.345+05:302011-02-06T23:43:34.345+05:30अच्छा विश्लेषण। वैसे भी व्यवस्था बदले बगैर अब किसी...अच्छा विश्लेषण। वैसे भी व्यवस्था बदले बगैर अब किसी सुधार की किरण दूर दूर तक नजर नहीं आती।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.com